आज भी कायम है तूत की टहनियों से बनी टोकरियों का रुतबा
आज के आधुनिक समय में यहां प्रत्येक वस्तु मेड इन चाईना आसानी से प्राप्त हो जाती है
महिदर सिंह अर्लीभन्न, कलानौर :
आज के आधुनिक समय में यहां प्रत्येक वस्तु मेड इन चाईना आसानी से प्राप्त हो जाती है, वहीं तूत के पेड़ की टहनियों से बनने वाली टोकरियां चाइनीज वस्तुओं की मार से बची हुई हैं। या यूं कहें कि यह कुटीर उद्योग आज भी जीवंत है।
पिछले 55 साल से टोकरियां बनाने और बेचने का काम करते आ रहे 75 वर्षीय कारीगर तरलोक चंद ने बताया कि 20 साल की आयु में उन्होंने तूत पेड़ की टाहनियों से टोकरियां बनाने का गुर सीखा था। उन्होंने बताया कि पुराने समय में वह रोजाना दस से 12 टोकरियां आसानी से तैयार कर लेते थे। उस समय 50 पैसे की एक टोकरी बिकती थी। तरलोक चंद ने बताया कि टोकरियों के व्यवसाय से ही उन्होंने दो बेटे और एक बेटी का पालन पोषण किया है।
50 रुपये में बिकती है एक टोकरी
तरलोक चंद ने कहा कि महंगाई के युग में वह प्रति टोकरी बनाई 50 रुपये और तूत के पेड़ से तैयार की हुई टोकरी 100 रुपये, जबकि बड़ा टोकरा 150 रुपये में तैयार करके बेच रहे हैं। उन्होंने बताया कि वह इस उम्र में भी प्रति दिन चार टोकरियां तैयार कर लेते हैं। आज के कंप्यूटर युग में नई पीढ़ी टोकरे-टोकरियां बनाने से मुंह फेर चुकी है।
तरलोक चंद ने बताया कि कस्बा कलानौर में पिछले समय के दौरान करीब दस से अधिक लोग तूत की टहनियों टोकरा बनाने के व्यवसाय से जुड़े हुए थे, लेकिन बदलते समय के साथ टोकरियां बनाने का कारोबार छोड़ चुके हैं।
पांच साल तक खराब नहीं होती तूत की टोकरी
उन्होंने बताया कि पुराने बुजुर्ग आज भी टोकरियां टोकरे बनाने को प्राथमिकता दे रहे हैं और उसके पास टोकरियां तैयार करने वालों का तांता लगा रहता है। पेड़ की टहनियों से तैयार की टोकरी यदि पानी से न भीगे तो चार से पांच साल तक टोकरी खराब नहीं होती है। टोकरियां बनाने का कौशल भी पुराने बुजुर्गो के साथ-साथ खत्म होती जा रही है।