त्यौहारों के पीछे छुपे संदेश व स्वदेशी भाव का रखें ध्यान : विक्रम समयाल
त्यौहारों का मौसम शुरू हो चुका है।
संवाद सहयोगी, दीनानगर : त्यौहारों का मौसम शुरू हो चुका है। हम सब त्यौहार उत्साह से मनाने की तैयारियां भी कर रहे होंगे। लेकिन इन सब त्यौहारों के मनाने की रीति, नीति व इसके पीछे छुपे संदेश को भी समझना आवश्यक है, नहीं तो यह त्यौहार एक मात्र कार्यक्रम बनकर रह जाता है। ऐसा हम न होने दें। यह विचार विद्या भारती के पठानकोट, गुरदासपुर के सचिव व पंजाब प्रांत के प्रशिक्षण प्रमुख विक्रम समयाल ने व्यक्त किए। आजकल पावन नवरात्र चल रहे हैं। इसमें हम देवियों के विभिन्न रूपों की आराधना करते हैं। कुल मिलाकर देवियों की पूजा-अर्चना एक आध्यात्मिक पक्ष तो है ही इसके पीछे का भाव नारी के प्रति अपनी दृष्टि कैसी हो यह भी संदेश देता है। हमारी मान्यता भी यही रही हैं यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता:। अर्थात जहां स्त्रियों की पूजा होती है वहां देवता निवास करते हैं। कंजक पूजन करते समय हम अपने बच्चों को इस संदेश के बारे में भी बताएं।
इसी तरह प्रतिवर्ष मनाया जाने वाला विजयादशमी का पर्व महज राम-रावण का युद्ध ही नहीं माना जाना चाहिए। बुराई पर अच्छाई की जीत के प्रतीक इस पर्व में छिपे हुए संदेश समाज को दिशा, उत्साह व प्रेरणा दे सकते हैं। इसी प्रकार दीपावली, भैया दूज, शरद पूर्णिमा, करवा चौथ इत्यादि त्यौहारों को धूमधाम से मनाते हुए इस विषय की ओर अवश्य ध्यान दें। सबसे जरूरी बात सब त्यौहार मनाते समय स्वदेशी का अवश्य ध्यान रखें। पिछले कुछ वर्षों से इस विषय पर समाज जागरूक तो हुआ हैं लेकिन बार बार स्मरण करवाने की आवश्यकता हैं। स्वदेशी पटाखों, दीयों के साथ साथ स्वदेशी खानपान, भाषा, वेशभूषा को भी बढ़ावा देने की आवश्यकता हैं।