बिजली बनाने के लिए बेच रहे पराली, बचा रहे पर्यावरण
मशीनी युग में तमाम साधन होने के बाद भी कई किसान पराली को आग लगाकर पर्यावरण दूषित कर रहे हैं
संस, फिरोजपुर : मशीनी युग में तमाम साधन होने के बाद भी कई किसान पराली को आग लगाकर पर्यावरण दूषित कर रहे हैं, लेकिन गांव नूरपुर सेठां के किसान हरचरन सिंह सामा न सिर्फ पराली को बिजली बनाने के लिए बेच रहे हैं, बल्कि दूसरे किसानों को भी इसके लिए प्रेरित कर रहे हैं।
सामा और उनके दो भाइयों की गांव में 300 एकड़ जमीन है। सामा का कहना है कि धान की कटाई के बाद नाड़ को आग लगाने के बजाय कुछ पैसे खर्च करके पर्यावरण को बचाने के लिए अपना योगदान दे रहे हैं। वह पिछले कई सालों से धान की फसल के नाड़ को आग लगाने के बजाय उस की गांठ बनवाकर उठवा रहे हैं। उन्होंने धान की कटाई के उपरांत रीपर के साथ धान के नाड़ को स्टैगर मशीन से गांठ बनाकर उठवाते हैं और ठेकेदार इस पराली को बिजली बनाने वाली फैक्ट्री तक पहुंचाते हैं और वहां से किसानों को भुगतान किया जाता है। इस प्रक्रिया के द्वारा बड़ी संख्या में लोगों को रोजगार मिला है। एक तरफ फैक्ट्री वाले जहां सरकार को बिजली की सप्लाई दे रहे हैं और बड़े मुनाफे कमा रहे हैं। वहीं दूसरी तरफ मेहनतकश लोगों को उनकी पराली का पूरा मूल्य दे रहे हैं। बेलर मशीनों वाले किसानों से पंद्रह सौ से दो हजार रुपए प्रति एकड़ की रकम ले रहे हैं। किसान हरचरन सिंह ने कहा कि कुछ किसान आंदोलन की आड़ में धान के नाड़ को आग लगा रहे हैं जोकि बहुत निदनीय बात है। पराली न जलाने वाले किसानों को आर्थिक मदद दे सरकार : सामा
किसान सामा ने सरकार से मांग है कि लोगों को पराली न जलाने के लिए उत्साहित करने के लिए योग्य कार्य किए जाएं और पराली न जलाने वाले किसानों को विशेष तौर पर आर्थिक मदद दी जाए।