फाजिल्का में आज भी मौजूद हैं 139 साल पहले बने रेल चक्कर के निशान

फाजिल्का में रेलगाड़ी की शुरुआत 1897 में की गई थी। इस समय ही रेल इंजन का मूंह दूसरी तरफ घुमाने के लिए ही रेल चक्कर शुरू कर दिया गया था।

By JagranEdited By: Publish:Tue, 21 Sep 2021 10:49 PM (IST) Updated:Tue, 21 Sep 2021 10:49 PM (IST)
फाजिल्का में आज भी मौजूद हैं 139 साल पहले बने रेल चक्कर के निशान
फाजिल्का में आज भी मौजूद हैं 139 साल पहले बने रेल चक्कर के निशान

संवाद सूत्र, फाजिल्का : फाजिल्का में रेलगाड़ी की शुरुआत 1897 में की गई थी। इस समय ही रेल इंजन का मूंह दूसरी तरफ घुमाने के लिए ही रेल चक्कर शुरू कर दिया गया था। हालांकि देश विभाजन के बाद एक और रेल चक्कर (रेल टर्नटेबल) बनाया गया, लेकिन 1897 में शुरू रेल टर्नटेबल का ज्यादातर समान आज भी फाजिल्का की रेलवे लाइनों के पास पड़ा है। यह समान इंग्लैंड की एक कंपनी की तरफ से 139 साल पहले तैयार किया गया था। इसकी खोज फाजिल्का के इतिहासकार लछमण दोस्त ने की है।

उन्होंने बताया कि फाजिल्का में पहली बार 1897 में ट्रेन पहुंची थी, जो दक्षिण पंजाब रेलवे कंपनी द्वारा दिल्ली-बठिड-समासटा लाइन थी, यह लाइन मुक्तसर और फाजिल्का तहसीलों के बीच से होकर गुजरती थी और समासटा (अब पाकिस्तान में) से कराची तक जाती थी। इसी कंपनी की तरफ से ही 1905 में लुधियाना, फाजिल्का वाया समासटा, मैकलोडगंज (जिसके नाम बाद में सादिक गंज रखा गया) खोली गई थी। उन्होंने बताया कि 1897 में शुरू हुई रेलगाड़ी को मुक्तसर की तरफ दोबारा मोड़ने के लिए फाजिल्का के रेलवे स्टेशन से कुछ ही दूरी पर और मौजम रेलवे क्रॉसिग के निकट एक गोल चक्कर बनाया गया था। विभाजन के 7 साल बाद बना दूसरा रेल चक्कर

रेल चक्कर का सामान 1882 में काऊंन शैलडन एंड कंपनी कार्सिल इंगलैंड में तैयार किया गया था। उक्त कंपनी द्वारा तैयार समान का काफी हिस्सा रेलवे लाइनों के निकट (मौजूदा रेलवे चक्कर के पास) आज भी मौजूद है। इस समान पर काऊंस शैलडन एंड कंपनी लिमिटेड नंबर 1220 कार्लिस इंग्लैंड दर्ज है। इनके बीच सन् 1882 लिखा हुआ है। इसके अलावा रेल चक्कर में प्रयोग की गई रेलवे लाइनें, पहिए, धुरा और काफी समान पड़ा है, जो भारत विभाजन के बाद उखाड़ दिया गया। देश विभाजन से तकरीबन सात साल बाद एक और रेलवे चक्कर बनाया गया। रेलगाड़ी का मुंह घुमाने के लिए इस रेल चक्कर का प्रयोग तब तक किया गया, जब तक रेल इंजन भाप या कोयले से चलता था, लेकिन अब डीजल इंजन आ जाने के कारण इस रेल चक्कर का प्रयोग बंद कर दिया गया।

हैरीटेज का दर्जा देने की मांग

फाजिल्का में अनेक ऐतिहासिक इमारते हैं। इनके साथ साथ यह पुराना रेल चक्कर भी ऐहितासिक है। उन्होंने बताया कि इसका समान करीब 139 साल पहले तैयार किया गया था। अगर इसकी पूरी तरह से संभाल की जाए तो इस समान के साथ साथ बंद पड़ा रेल चक्कर भी लोगों को अपनी तरफ आकर्षित करने की क्षमता रखता है। इतिहासकार लछमण दोस्त ने रेलवे विभाग व भारत सरकार से मांग की है कि इन्हें हैरीटेज का दर्जा दिया जाए, ताकि सरहदी जिला फाजिल्का में पर्यटकों की संख्या में इजाफा हो सके। उन्होंने बताया कि अगर फाजिल्का में पर्यटकों की संख्या में इजाफा होता है तो फाजिल्का आर्थिक तौर पर काफी मजबूत होगा और इससे होने वाली आय से सरकार को भी फायदा मिलेगा।

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