India pak war 1971: मेजर ललित ने गोलियों से सीना करवा लिया छलनी, नहीं होने दिया फाजिल्का पर कब्जा
India pak war 1971 13 व 14 दिसंबर की रात 15 राजपूत बटालियन के मेजर ललित मोहन भाटिया ने प्राणों की परवाह न कर पाक के रेंजरों को फाजिल्का से आगे नहीं बढ़ने दिया था।
फाजिल्का [मोहित गिल्होत्रा]। India pak war 1971: भारत-पाकिस्तान के बीच 3 दिसंबर, 1971 को शुरू हुए युद्ध में 13 व 14 दिसंबर की रात 15 राजपूत बटालियन के मेजर ललित मोहन भाटिया ने प्राणों की परवाह न कर पाक के रेंजरों को फाजिल्का से आगे नहीं बढ़ने दिया था। वह दुश्मन के बंकर में घुसकर उनकी एलएमजी बंद करवाकर शहीद हुए थे। उनकी कुर्बानी के चलते मेजर एलएम भाटिया को मरणोपरांत वीर चक्र से नवाजा गया।
इस युद्ध में छह अधिकारियों, दो जेसीओ व 54 जवानों को वीरगति प्राप्त हुई थी। पांच अधिकारी, दो जेसीओ व 103 सैनिक जख्मी हुए थे। एक जवान को मरणोपरांत महावीर चक्र, एक जवान को सेना मेडल व एक जवान को मेंशन इन डिस्पेचिस से नवाजा गया।
मेजर ललित मोहन भाटिया कलकत्ता (कोलकाता) के रहने वाले थे। जब भारत-पाक सीमा पर युद्ध हुआ, तो पाक सेना ने फाजिल्का पर कब्जा कर लिया था। इसके चलते मेजर भाटिया की यूनिट को पाकिस्तानी आउटपोस्ट (फाजिल्का सेक्टर) पर कब्जा करने का लक्ष्य दिया गया। हालांकि उनकी यूनिट को सौंपी गई यह जिम्मेदारी आसान नहीं थी, क्योंकि पाकिस्तान ने 2500 रेंजर, 28 टैंक और भारी तोपों से लेस एक पैदल बिग्रेड तैनात कर रखी थी। इसके चलते पाक ने बेरीवाला पुल पर कब्जा कर लिया था।
दुश्मन एलएमजी बंकर से खतरनाक फायरिंग कर रहा था। इस बीच, मेजर भाटिया खुद दुश्मन के बंकर तक पहुंचे और वहां दो दुश्मनों को मार गिराया। इस दौरान वहां हुई लड़ाई के दौरान मेजर भाटिया दुश्मनों पर भारी पड़े, लेकिन अचानक दुश्मन की गोलियां मेजर भाटिया के सीने पर लगीं और वह गंभीर रूप से घायल हो गए तथा जख्मों की ताव न झेलते हुए वह भारत मां के लिए शहीद हो गए। उनकी यूनिट ने पाकिस्तान बंकर पर कब्जा कर लिया। मेजर भाटिया व नायक धीरगपाल सिंह के उत्साह ने भारतीय सेना में इस कदर उत्साह भरा कि भारतीय सेना ने दुश्मन पर एकदम हमला करके दुश्मन से दो टैंक व भारी मात्रा में हथियार भी पकड़ लिए।
सिपाही थान सिंह भी नहीं थे किसी से कम
युद्ध के दौरान भले ही भारतीय सेना के कई जवानों ने दुश्मनों की गोलियों से अपना शरीर छलनी करवा लिया, लेकिन उन्होंने रण क्षेत्र में पीठ नहीं दिखाई। गोलियों से शरीर छलनी हो, फिर भी तीन दिन तक दुश्मनों का मुकाबला करना सिपाही थान सिंह की बहादुरी की एक मिसाल है। भले ही सिपाही थान सिंह वीर गति को प्राप्त हुए, लेकिन उन्होंने दुश्मन को एक इंच भूमि पर भी कब्जा करने की हिम्मत नहीं करनी दी।
...इन्होंने भी युद्ध में दी शहादत
जहां मेजर ललित भाटिया और सिपाही थान सिंह ने दुश्मनों को पीछे हटने पर मजबूर किया, वहीं तोपची हरबंस सिंह व हवालदार गंगाधर ने भी दुश्मनों पर हमला करते हुए उन्हें खदेडऩे में अहम भूमिका निभाई। लांस नायक दृगपाल को शौर्य के लिए महावीर चक्र से नवाजा गया। वीर लेिफ्टनेंट केजे फिलिप्स की टांग कट गई। मगर, उन्होंने पीठ नहीं दिखाई और दुश्मनों के सामने डटे रहे। शहीदों की समाधि आसफवाला की वार मेमोरियल में इन जवानों की याद में प्रतिमाएं लगाई गई हैं और शहीद जवानों की तस्वीरें सजाई गई हैं। यहां हर साल 17 दिसंबर को शहीदों की याद में सजदा किया जाता है।
हरियाणा की ताजा खबरें पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
पंजाब की ताजा खबरें पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें