तीन साल में फाजिल्का के 230 में से 200 स्कूल बने स्मार्ट

कोरोना महामारी के कारण भले ही स्कूल बंद हैं लेकिन शिक्षा विभाग का मुख्य फोक्स बच्चों की पढ़ाई पर ही है।

By JagranEdited By: Publish:Sun, 30 May 2021 10:06 AM (IST) Updated:Sun, 30 May 2021 10:06 AM (IST)
तीन साल में फाजिल्का के 230 में से 200 स्कूल बने स्मार्ट
तीन साल में फाजिल्का के 230 में से 200 स्कूल बने स्मार्ट

मोहित गिल्होत्रा, फाजिल्का : कोरोना महामारी के कारण भले ही स्कूल बंद हैं, लेकिन शिक्षा विभाग का मुख्य फोक्स बच्चों की पढ़ाई पर ही है। अध्यापक पूरी मेहनत के साथ आनलाइन माध्यम से बच्चों को शिक्षित करने में जुटे हैं। इसका ही नतीजा है कि आठवीं क्लास के 14038 विद्यार्थियों में से 14022 विद्यार्थी पास हुए और दसवीं क्लास के 14305 विद्यार्थियों में से 14298 विद्यार्थी पास हुए हैं, जिससे फाजिल्का जिले का दसवीं का नतीजा 99.95 प्रतिशत और आठवीं का नतीजा 99.89 प्रतिशत रहा है। उक्त बातें जिला शिक्षा अधिकारी सेकेंडरी डा. त्रिलोचन सिंह सिद्धू ने दैनिक जागरण को दिए साक्षात्कार के दौरान कही। डीईओ डा. त्रिलोचन सिंह ने बताया कि भले की समय मुश्किल का है, लेकिन शिक्षा मंत्री विजेंद्र सिगला के दिशानिर्देश और शिक्षा सचिव कृष्ण कुमार के नेतृत्व में बच्चों को पढ़ाई के साथ जोड़ने के लिए लगातार गतिविधियां की जा रही हैं, जिसमें अभिभावक भी महत्वपूर्ण सहयोग दे रहे हैं। बच्चों को कोरोना महामारी के प्रकोप से बचाने के लिए पंजाब सरकार व शिक्षा विभाग का उन पर विशेष ध्यान है, जबकि अध्यापक कोरोना वारियर्स रूप में सेवाएं देते हुए लगातार उनको पढ़ाई करवा रहे हैं।

डीईओ सेकेंडरी डा. त्रिलोचन सिंह सिद्धू ने बताया कि जुलाई 1991 में उन्होंने शिक्षा विभाग में बतौर लेक्चरर के रूप में सेवाएं देनी शुरू की, जिसके बाद समय-समय पर विभिन्न स्कूलों में सेवाएं देने के बाद साल 2010 में उन्हें बतौर प्रिसिपल के रूप में कार्य सौंपा गया, जबकि अब साल 2020 में डीईओ के रूप में जिम्मेदारी दी गई है, जिसको वह पूरी तरह से निभाएंगे। बच्चों को शिक्षा के साथ जोड़ने के लिए हर संभव प्रयास किए जाएंगे और उनका पहला लक्ष्य यही होगा। कोरोना संकट में बच्चों को किस तरह दी जा रही शिक्षा?

स्कूल बंद होने के चलते प्राइमरी कक्षाओं के बच्चों को उनकी कक्षा की इंचार्ज की ओर से पढ़ाई करवाई जा रही है, जबकि सेकेंडरी कक्षा के बच्चों की जूम एप पर क्लासें लगाई जा रही हैं। इसके अलावा पूरी कक्षा के बच्चों का एक ग्रुप बनाया गया है, जिसमें अध्यापक लिक भेजकर सभी बच्चों को जूम एप के जरिए पढ़ाई करवाते हैं।

घर पर पढ़ाई जैसे माहौल के लिए क्या प्रयास?

आनलाइन शिक्षा के माध्यम से बच्चों को पढ़ाई करवाने के अलावा अध्यापकों की ओर से उन्हें होमवर्क भी दिया जा रहा है। इसके अलावा आनलाइन कविता मुकाबले, पेंटिग मुकाबले, दस्तार मुकाबले व धार्मिक विषयों पर क्विज मुकाबले करवाए जा रहे हैं, जिसमें बच्चे मोबाइल से वीडियो बनाकर संबंधित अध्यापक को भेजकर भाग ले रहे हैं। जिले में कितने सेकेंडरी स्कूल बन चुके स्मार्ट?

शिक्षा विभाग की ओर से दो से तीन साल पहले सरकारी स्कूलों को स्मार्ट बनाने के लिए प्रोजेक्ट तैयार किया गया था। जिले के 230 सेकेंडरी स्कूलों में से 200 स्कूलों को स्मार्ट स्कूल के रूप में तब्दील किया जा चुका है, जिसमें बच्चों के लिए हर प्रकार की सुविधा मुहैया करवाई गई है। इसके अलावा जो 30 स्कूल पेंडिग हैं, उनका कार्य भी आखिरी चरण में चल रहा है। क्या आनलाइन परीक्षा से बच्चे शिक्षा से दूर हो रहे हैं?

नहीं, ऐसा कुछ नहीं है। बच्चे लगातार शिक्षा के साथ जुड़े हुए हैं और परीक्षा पास करने वाले बच्चे अब दाखिले भी करवा रहे हैं। जिले के आठ ब्लाकों में पिछले साल छठी से लेकर 12 तक के 77 हजार बच्चों ने दाखिला लिया था। जबकि अध्यापकों का रूझान अब सरकारी स्कूलों की तरफ तेजी से बढ़ा है और इस साल 28 मई 2021 तक 87455 बच्चों ने सरकारी स्कूलों में दाखिला ले लिया है, यानि 13.58 प्रतिशत बच्चों ने अतिरिक्त दाखिला लिया है, यह दाखिला मुहिम अभी जारी है। अभिभावकों से किस तरह के सहयोग की उपेक्षा?

बच्चों को समय पर क्लास ज्वाइन करवाना, अध्यापकों द्वारा दिए गए कार्यो को करने के लिए बच्चों को प्रेरित करना और बच्चों द्वारा किए जाने वाले कार्यो को परदर्शी तरीकों से करवाना इस समय अभिभावकों की सबसे अहम जिम्मेदारी है।

chat bot
आपका साथी