गगनभेदी तोपों की आग से पस्त हुए थे दुश्मन सेना के हौसले

भारत-पाक 1971 के युद्ध में फाजिल्का सेक्टर को कमजोर समझकर दुश्मन सेना ने फाजिल्का की तरफ अपनी ज्यादा फोर्स बढ़ाते हुए तीन दिसंबर को कई क्षेत्रों पर कब्जा कर लिया

By JagranEdited By: Publish:Mon, 06 Dec 2021 09:57 AM (IST) Updated:Mon, 06 Dec 2021 09:57 AM (IST)
गगनभेदी तोपों की आग से पस्त हुए थे दुश्मन सेना के हौसले
गगनभेदी तोपों की आग से पस्त हुए थे दुश्मन सेना के हौसले

मोहित गिल्होत्रा, फाजिल्का : भारत-पाक 1971 के युद्ध में फाजिल्का सेक्टर को कमजोर समझकर दुश्मन सेना ने फाजिल्का की तरफ अपनी ज्यादा फोर्स बढ़ाते हुए तीन दिसंबर को कई क्षेत्रों पर कब्जा कर लिया, लेकिन बेरीवाला पुल पर अपना नियंत्रण नहीं कर पाई। लगातार बढ़ रही फोर्स के चलते यहां गगनभेदी तोपों को लगाया गया, जिन्होंने दस दिन तक आग उगली, जिसके चलते दुश्मन सेना के हौसले पस्त हुए और वह पीछे हटने के लिए मजबूर हो गए।

भले ही आज यह तोपें फाजिल्का में नहीं है, लेकिन इन तापों का एक हिस्सा आज भी समाधि स्थल पर रखा गया है, जिसे आसफवाला शहीदी समारक पर नमन करने वाले फाजिल्का की रक्षक तोप को भी नमन करते हैं। इतिहास के पन्नों की बात करें तो तीन दिसंबर 1971 को पाक रेंजरों ने गांव बेरीवाला के पुल पर कब्जा कर लिया। दुश्मन जब फाजिल्का की तरफ बढ़ा तो 4 जाट बटालियन के जवानों ने दुश्मन पर हमला करके कई इलाके छीन लिए, लेकिन बेरीवाला पुल काबू में नहीं आ सका। पाकिस्तान की नफरी बढ़ती गई और साबूना बांध पर पहुंच गया। इस दौरान पाक की ओर से 2500 जवान, 28 टैंक और भारी तोपों से लेस एक पैद बिग्रेड लगा दी गई। चार दिसंबर की रात तक दुश्मन गांव पक्का तक पहुंच गया, लेकिन तीन आसाम बटालियन ने उन्हें रोक लिया और साबूना बांध तक जवान पहुंच गए। उधर, सेना की 15 राजपूत बटालियन ने फाजिल्का का बचाव किया। गज्जी के समीप 15 राजपूत और 4 जाट बटालियन के जवानों ने गुरमुख खेड़ा गांव की तरफ से हमला किया तो बेरीवाला पुल से फाजिल्का की तरफ जाने वाला रास्ता बंद हो गया। इसके बाद सेना ने नगर में गोशाला, आइटीआइ, एसडी हाई स्कूल, सिविल अस्पताल, सरकारी एमआर कालेज, मोहल्ला नईं आबादी इस्लामाबाद सहित शहर और गांवों में कई स्थानों पर गगनभेदी तोपें लगाकर गोलाबारी शुरू कर दी। आइटीआइ परिसर में लगाई गई गगनभेदी तोप 14-एमएम सबसे अधिक कारगर सिद्ध हुई। दुश्मनों के दांत खट्टे करने के लिए इस तोप ने लगातार 10 दिनों तक आग उगली। यह तोप 1942 में जबलपुर आर्डिनेंस फैक्ट्री में तैयार की गई थी। 840 किलोग्राम वजनी और 40 एमएम केलीबर की इस तोप की मारक क्षमता 12.6 किलोमीटर तक थी। इन तोपों के चलते ही दुश्मन सेना के कदम पीछे हट गए और फाजिल्का पर फिर से सेना ने अपना कब्जा जमा लिया। फाजिल्कावासियों की रक्षक बनी इन तोपों को तिलक लगाया जाता और पूजा की जाती थी। आज भी इस तोप का एक हिस्सा आसफवाला के शहीदी समारक पर आने वाले लोगों के आकर्षण का केंद्र बना हुआ है। रात को उगलती आग, दिन में लोग बरसाते फूल

भारतीय सेना चाहती तो पाक के कब्जे वाले गांव बेरीवाला, बक्खूशाह, मोहम्मद पीरा आदि को इन तोपों के हमले से छुड़वा लेती, लेकिन भारतीय सेना ने अपनी सूझबूझ का उदाहरण देते हुए इसलिए नहीं हमला किया, क्योंकि अगर इन गांवों में तोपों के गोले फेंके जाते तो दुश्मन के साथ साथ फाजिल्का निवासियों का भी काफी नुकसान होना था। लेकिन भारतीय सैनिकों ने उन जगहों पर लगातार इन तोपों से टारगेट किया, जहां दुश्मन सेना छिपी हुई थी। इस दौरान रात के समय दुश्मन पर यह तोप गोले फेंकती और दिन के समय फाजिल्कावासी इन तोपों पर फूल चढ़ाकर जाते थे।

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