करुणा के सागर हैं भगवान शिव

भगवान शिव करुणा के सागर हैं। वे अपने भक्त पर बहुच जल्द करुणा बरसाते हैं।

By JagranEdited By: Publish:Mon, 29 Nov 2021 03:47 PM (IST) Updated:Mon, 29 Nov 2021 03:47 PM (IST)
करुणा के सागर हैं भगवान शिव
करुणा के सागर हैं भगवान शिव

संवाद सहयोगी, फरीदकोट

भगवान शिव करुणा के सागर हैं। वे अपने भक्त पर जितनी जल्दी करुणा बरसाते हैं उतनी जल्दी कोई देवता प्रसन्न नहीं होता। भगवान शिव को प्रसन्न करना बेहद आसान है। वे तो महज एक लोटा जल से ही प्रसन्न हो जाते हैं। भगवान शिव के अनेकों नाम है जिसमें एक नाम आशुतोष भी कहा गया है, अर्थात शीघ्र प्रसन्न होने वाले देव। ये विचार फरीदकोट के रोज एनक्लेव स्थित महामृत्युंजय महादेव मंदिर में आयोजित प्रवचन कार्यक्रम के दौरान स्वामी कमलानंद गिरिने व्यक्त किए।

उन्होंने कहा कि गीता में 700 श्लोक हैं जबकि शिव महापुराण में 24 हजार श्लोक वर्णित हैं। शिव महापुराण में प्रत्येक श्लोक का अर्थ भिन्न है। शिव क्रोधावतार नहीं बल्कि करुणावतार हैं। शिव की पूजा देवता तो करते ही हैं, दानव भी शिव के परम भक्त हैं। सच्चे मन से शिव महिमा सुनने व उनका ध्यान करने वाला भक्त सदैव सुखों को पाता है। देवों के देव होने के चलते भगवान शिव महादेव भी कहलाते हैं।

स्वामी जी ने कहा कि अक्सर देखा जाता है कि मंदिर में जाकर भी भक्त का ध्यान कहीं और ही होता है। मंदिर में बैठने का उसके पास बिल्कुल समय नहीं होता। बस आता है और आनन-फानन में माथा टेककर चला जाता है। मंदिर में जाओ तो कुछ देर वहां बैठो और प्रभु का ध्यान लगाओ। स्वामी जी ने कहा कि मनुष्य के मन में पलने वाली तृष्णा उसकी चिता का मूल कारण है। तृष्णा मनुष्य के संतोष को समाप्त कर देती है। संतोष समाप्त होने पर पैदा होने वाला असंतोष मानसिक तनाव का कारण बनता है। इसलिए मनुष्य को तृष्णा नहीं बढ़ानी चाहिए क्योंकि तृष्णा की पूर्ति कभी भी नहीं होती।

स्वामी जी ने कहा कि मन में ही स्वर्ग होता है और मन में ही नरक। व्यक्ति खुद ही घर-परिवार को स्वर्ग बनाता है और खुद ही नरक। व्यक्ति के स्वभाव को बदलना बड़ा कठिन है। मनुष्य की भावना पर सब कुछ निर्भर रहता है। महाराज जी ने कहा कि मनुष्य जैसे कर्म करेगा उसका वैसा ही फल मिलेगा। अर्थात जैसे बीज बोओगे वैसा फल पाओगे।

मनुष्य की हर सोच उसके जीवन के खेत में बोया गया एक बीज ही है। यदि मनुष्य अच्छी सोच के बीज बोएगा तो अच्छा फल मिलेगा। अगर बुरी सोच के बीच बोएगा तो बबूल ही मिलेगा। भविष्य को स्वर्णमयी बनाने के लिए उन बीजों का ध्यान देना होगा जो आज बो रहे हैं। प्रेम के बीज बोएंगे तो प्रेम के ही फल अंकुरित होकर आएंगे। क्रोध और गाली-गलौच के बीच बोएंगे तो खुद के लिए विषैले तथा व्यंग भरे वातावरण का निर्माण होगा। मनुष्य की सोच जैसी होगी उसके विचार भी वैसे बन जाएंगे।

स्वामी जी ने श्रद्धालुओं को नित्य प्रतिदिन भगवान सूर्य नारायण को अ‌र्घ्य देने की बात पर जोर देते हुए कहा कि भगवान सूर्यदेव को अ‌र्घ्य देने से तेज बढ़ता है। जो भक्त रोजाना सूर्यदेव को अ‌र्घ्य देते हैं, उनकी आंखों की रोशनी भी तेज रहती है। ऐसे साधक को कभी ऐनकें नहीं लगानी पड़ती। रोजाना सुबह सबसे पहले सूर्य देव व तुलसी को जल जरूर चढ़ाएं। जहां सूर्य देव को अ‌र्घ्य देने से आंखों की रोशनी बढ़ती है, वहीं तुलसी के पत्ते का सेवन करने से शरीर निरोग रहता है।

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