मानव जीवन में ही मिलता है भक्ति करने का सुयोग

श्री कल्याण कमल आश्रम हरिद्वार के अनंत श्री विभूषित 1008 महामंडलेश्वर स्वामी कंलानंद गिरि ने प्रवचन किए।

By JagranEdited By: Publish:Fri, 26 Nov 2021 03:21 PM (IST) Updated:Fri, 26 Nov 2021 03:21 PM (IST)
मानव जीवन में ही मिलता है भक्ति करने का सुयोग
मानव जीवन में ही मिलता है भक्ति करने का सुयोग

जासं,फरीदकोट

श्री कल्याण कमल आश्रम हरिद्वार के अनंत श्री विभूषित 1008 महामंडलेश्वर स्वामी कमलानंद गिरि जी महाराज ने कहा कि मनुष्य जीवन ही ऐसा अनमोल जीवन है जिसमें भगवत भक्ति करने का सर्वोत्तम सुयोग है। मनुष्य ही ऐसा प्राणी है जिसे सत्य-असत्य का बोध है। महामंडलेश्वर स्वामी कमलानंद गिरि ने ये विचार रोज एनक्लेव स्थित श्री महामृत्युंजय महादेव मंदिर में प्रवचनों की अमृतवर्षा करते हुए व्यक्त किए।

उन्होंने कहा कि श्रीमद्भागवत में चित को ही जीव के बंधन व मुक्ति का कारण बताया गया है। इस चित में ही भगवान की अलौकिक झांकी के दर्शन कर सकते हैं।

उन्होंने कहा कि यदि हम अपने दिल से भगवान को धारण करेंगे, भगवान को प्राप्त करने की इच्छा करेंगे, भगवान के बारे में सुनेंगे, जब भी किसी से मिलेंगे भगवान के बारे में कहेंगे तथा भगवान के बारे में ही चितन करेंगे ऐसा करने से हमारे दिल में स्वत: भगवान की मंगलमय दर्शन होते रहेंगे। वैसे तो शास्त्रों में भक्ति के हजारों अंग है। मगर कथा श्रवण, कीर्तन व स्मरण सरल, सहज, सर्वोत्तम है।

स्वामी जी ने श्रद्धालुओं को मानव जीवन का महत्व बताते हुए कहा कि जिदगी तीन पन्ने की किताब का नाम है। उसमें पहला पृष्ठ है जन्म का, जो मनुष्य को लिखा हुआ ही मिला है। तीसरे पृष्ठ का नाम है मृत्यु, वे भी लिखा हुआ ही मिला है। दूसरे नंबर का पन्ना है जीवन का, जो मनुष्य को कोरा ही मिलता है उस पर क्या लिखना है ये मनुष्य पर निर्भर करता है। मजे की बात तो ये है कि उस पृष्ठ पर मनुष्य जो लिखेगा, जैसा लिखेगा उसी के आधार पर तीसरे नंबर का पन्ना मिलने वाला है। अर्थात मृत्यु का ये पृष्ठ निश्चित है, मगर ये पृष्ठ उज्जवल मिलेगा या मलिन, इसका निर्णय मनुष्य खुद जीवन के दूसरे पन्ने में लिखकर कर सकता है। अर्थात मनुष्य को कोरे जीवन में खुशियों का रंग खुद ही भरना पड़ता है।

स्वामी कमलानंद गिरि ने श्री रामायण पर चर्चा करते हुए कहा कि कहा कि जिस घर में रामायण रहती है, वहां भूत-पिशाचों का कभी वास नहीं होता। उस घर में भूत-प्रेत भूलकर भी नहीं जाते। वहां दरिद्रा का वास भी कभी नहीं रहता क्योंकि वहां वीर हनुमान जी की फेरी रहती है। जितने यंत्र, मंत्र हैं वे सभी रामायण में विद्यमान हैं। जो भक्त श्रीराम कथा से प्रीति करता है उसके समान कोई बड़भागी नहीं है।

उन्होंने कहा कि जब तक तीन चीजें एक साथ न हों तो तब तक श्री राम कथा समझ में नहीं आती है। सबसे पहले श्रद्धा, दूसरा सत्संग और तीसरा परमात्मा प्रति प्रेम होना। श्रद्धा, सत्संग और ईष्ट प्रेम जब मिले तो राम कथा समझ में आती है। ऐसा रामायण में लिखा है। जिन्हें श्री राम के प्रति प्रेम नहीं है। प्रीति भाव नहीं है। सत्संग में प्रीति व श्रद्धा नहीं है, उन्हें ये कथा समझ नहीं आती है।

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