पराली जलाने के दुष्प्रभावों की जानकारी देना जरूरी
पराली और अन्य कचरे को जलाने से पर्यावरण जानवरों इंसानों के लिए घातक है।
जागरण संवाददाता, फरीदकोट
पराली और अन्य कचरे को जलाने से पर्यावरण, जानवरों, इंसानों और वनस्पतियों पर घातक प्रभाव पड़ता है, साथ ही मिट्टी के पोषक तत्व भी नष्ट हो जाते हैं। किसानों को जहां खुद पराली में आग न लगाने के घातक प्रभावों के बारे में जागरूक करना होगा, वहीं अन्य लोगों को भी पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरूक करना होगा। यह बात डीसी विमल कुमार सेतिया ने कृषि एवं किसान कल्याण विभाग फरीदकोट द्वारा जिले के गांवों में प्रचार वैन भेजकर किसानों को जागरूक करने के बाद व्यक्त की। इस अवसर पर बलविदर सिंह मुख्य कृषि अधिकारी व अमनदीप केशव कृषि एवं किसान कल्याण विभाग भी उपस्थित रहे।
डीसी ने किसानों से अपील करते हुए कहा कि इस बार फरीदकोट जिले को पराली न जलने वाला जिला बनाया जाना है, इसलिए उन्हें किसानों का पूरा सहयोग चाहिए। उन्होंने किसानों से कहा कि वे कृषि एवं किसान कल्याण विभाग फरीदकोट द्वारा लगाई गई सब्सिडी का लाभ उठाएं, ताकि खेत में पारली को मिलाए या फिर बेले के माध्यम से गांठें बनाई जाएं। इसे जलाने से प्रदूषण पैदा होता है, और वह कोरोना से पीड़ित मरीजों, बुजुर्गों और बच्चों के लिए घातक साबित हो सकता है। डीसी ने कहा कि कटाई का समय सुबह 9 बजे से सुबह 7 बजे तक है।
मुख्य कृषि अधिकारी डा. बलविदर सिंह और प्रोजेक्ट डायरेक्टर अत्मा डा. अमनदीप केशव ने बताया कि पहले चरण में जिले के समूह गांवों में किसानों को वन ले जाया जाएगा, ताकि पराली में आग न लगाई जा सके। इन वैनों के माध्यम से किसान आडियो, पत्रक,पोस्टर और साहित्य के माध्यम से पर्यावरण को स्वच्छ बनाने और खेत में पराली को आग नहीं लगाने के लिए जागरूक करेंगे।