फैक्ट्री को देने के बाद बची पराली खेत में मिलाते हैं
पराली जलाने से पर्यावरण ही नहीं मानव सेहत को भी नुकसान पहंचता है।
जागरण संवाददाता, फरीदकोट
पराली जलाने से पर्यावरण ही नहीं मानव सेहत को भी नुकसान पहुंचता है। जरूरत है कि हम सभी किसान भाई पर्यावरण के प्रति सचेत हो और पराली जलाने को न कहे। यह कहना है गांव चमेली के प्रगतिशील किसान गुरचरण सिंह चमेली का।
उन्होंने कभी भी अपने पूरे खेत की पराली नहीं जलाई, कुछ साल पहले जरूरत से ज्यादा होने वाली पराली को वह जला देते थे, परंतु जब उन्हें पराली से होने वाले नुकसान के बारे में सभी जानकारी हासिल हुई और दिखाई पड़ी, तो उन्होंने पराली जलाने का न कह दी और उन्होंने अपने बेटे व पोते को भी इसका महत्व समझाया। गत वर्ष उनके खेत में जिले के कृषि अधिकारी भी आए थे, जिन्होंने पराली जलाए जाने से होने वाले फायदे के बारे में बताया।
गुरचरण सिंह 30 एकड़ में धान की खेती करते हैं। पिछले कुछ सालों से वह अपनी पराली एकत्र कर गत्ता फैक्ट्री को बेच देते हैं। जो पराली बच जाती है, उसे खेत में मिला देते हैं जिससे खेत की उपजाऊ शक्ति बढ़ती हैं जिससे फसल लागत घटती है। वह सभी किसानों से अपील करते है कि वह पर्यावरण व मानव हित में पराली को आग न लगाए। इससे मानवता को बड़े पैमाने पर नुकसान पहुंचता है। ------------------ तीन साल से पराली नहीं जला रहे हाकम सिंह जागरण संवाददाता, फरीदकोट
पराली को जलाने से पर्यावरण को ही नुकसान नहीं पहुंचता बल्कि मानव सेहत पर भी इसका बुरा असर पड़ता है। ऐसे में जरूरत है कि हमारे जैसे दूसरे किसान पराली न जलाने का संकल्प लें। पराली को खेत में मिलाने से खेत की उपजाऊ शक्ति बढ़ती है। यह कहना है कि तीन साल से पराली को आग न लगाने का संकल्प लेने वाले किसान हाकम सिंह का।
हाकम सिंह पराली को खेत में फैलाने के साथ जुताई कर गेहूं की बिजाई करते हैं। यह प्रगतिशील किसान कृषि विभाग और किसान कल्याण, फरीदकोट के साथ संपर्क में है, जो कृषि विशेषज्ञों की सलाह के अनुसार अपनी खेती करता है।
हाकम सिंह ने बताया कि वह एसएमएस लगे सुपर सीडर की मदद से गेहूं व धान की कटाई करता है, जिससे फसल के अवशेष बेहद छोटे हो जाते है, जिन्हें खेत में मिलने में ज्यादा परेशानी नहीं होती है।
जिला मुख्य कृषि अधिकारी बलविदर सिंह ने कहा कि किसान हाकम सिंह उनसे कृषि के बारे में समय-समय पर जानकारी लेते रहते हीं। किसान द्वारा अपने खेत में एसएमएस से धान की कटाई की जाती है। उन्होंने अन्य किसानों से वैकल्पिक कृषि उपकरणों का उपयोग करने की भी अपील की, ताकि खेतों में फसलों के अवशेष जलाने से बचा जा सके।