गांव मुमारा के अस्सी फीसदी किसान तीन सालों से नहीं जला रहे है पराली

पराली का सदुपयोग किस तरह से किसान भाई कर सकते है इसका बड़ा उदाहरण गांव मुमारा है।

By JagranEdited By: Publish:Fri, 08 Oct 2021 05:37 PM (IST) Updated:Fri, 08 Oct 2021 05:37 PM (IST)
गांव मुमारा के अस्सी फीसदी किसान तीन सालों से नहीं जला रहे है पराली
गांव मुमारा के अस्सी फीसदी किसान तीन सालों से नहीं जला रहे है पराली

जागरण संवाददाता, फरीदकोट

पराली का सदुपयोग किस तरह से किसान भाई कर सकते है, इसका बड़ा उदाहरण गांव मुमारा है। गुरुबाणी का संदेश, पराली जलाने से मानव सेहत व पर्यावरण को होने वाले नुकसान व कृषि विभाग के जागरूकता अभियान से प्रेरित होकर गांव के अस्सी फसदी से ज्यादा किसानों ने पिछले तीन सालों से पराली जलाने को न कह दी है।

पराली को आग लगाने की जगह उसे खेत में मिलाकर उसे से जमीन की उर्वरा शक्ति बढ़ रहे गांव के पर्यावरण प्रेमी किसानों को

जन हितैषी पहल पर उन्हें जिला प्रशासन और कृषि विभाग ने सम्मानित भी किया है। गांव के सरपंच सुखप्रीत सिंह का कहना है, कि गांव की पंचायत व अन्य प्रगतिशील किसानों का भरसक प्रयास है, कि इस बार गांव में पराली को आग लगाने की एक भी घटना न घटित हो।

सरपंच सुखप्रीत सिंह ने बताया कि धान के पुआल को जलाने से होने वाले नुकसान की पूरी जानकारी हासिल करने के बाद उन्होंने खुद और ग्रामीणों ने तीन साल पहले यह संकल्प लिया कि वे अपने खेतों से धान और गेहूं के अवशेष यानी पराली को आग नहीं लगाएंगे, क्योंकि पुआल जलने से खेत में किसान हितैषी कीड़े जलते हैं, जो जमीन की उर्वरा शक्ति को बढ़ाते हैं और मर जाते हैं। खेतों में आर्गेनिक मैटर को बढ़ाने वाला आर्गेनिक कार्बन खत्म हो जाता है। पुआल में मौजूद पोषक तत्व जल कर नष्ट हो जाते हैं, हवा प्रदूषित हो जाती है जिससे इंसानों और जानवरों के लिए सांस लेना मुश्किल हो जाता है।

उन्होंने कहा कि वह और ग्रामीण लंबे समय से कृषि एवं किसान कल्याण फरीदकोट विभाग के साथ समन्वय बनाकर रहते हैं और वे समय-समय पर विभाग के विशेषज्ञों से जानकारी प्राप्त करते रहते हैं कि खेत में पुआल का रखरखाव कैसे किया जा सकता है। उन्होंने बताया कि पिछले साल विभाग के विशेषज्ञों की सलाह पर उन्होंने पराली की गांठें बनाकर गोलेवाला गांव में स्थापित गौशाला को चारे के रूप में उपयोग के लिए भेज दिया था। इससे पशुओं को चारा उपलब्ध होने के साथ पर्यावरण प्रदूषित नहीं हुआ।

सुपर सीडर से गेहूं की बुआई का पैदावार पर नहीं पड़ता असर

सरपंच सुखप्रीत ने बताया कि सुपर सीडर से भी गेहूं की बुआई की पैदावार पर कोई असर नहीं पड़ता है। इसके अलावा पराली का निस्तारण केवल खेत, जमीन में बेले के माध्यम से और आधुनिक खेती के साधनों के माध्यम से किया जा सकता है। सरपंच सुखप्रीत सिंह ने अन्य किसानों से आग्रह किया कि वे अपने खेतों में फसल कचरे में आग न लगाए क्योंकि इससे पूरे पर्यावरण, मानव जीवन पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है और पैदा होने वाले धुएं के कारण जानमाल का काफी नुकसान होता है।

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