धान की सीधी बिजाई पर मौसम की मार

बारिश का मौसम बना होने को देखते हुए धान की सीधी बिजाई का काम प्रभावित हुआ है।

By JagranEdited By: Publish:Sun, 31 May 2020 04:32 PM (IST) Updated:Sun, 31 May 2020 06:23 PM (IST)
धान की सीधी बिजाई पर मौसम की मार
धान की सीधी बिजाई पर मौसम की मार

प्रदीप कुमार सिंह, फरीदकोट

पश्चिमी विक्षोभ की सक्रियता से प्री-मानसून हुई बारिश और बारिश का मौसम बना होने को देखते हुए धान की सीधी बिजाई का काम प्रभावित हुआ है। तेज बारिश की आशंका को देखते हुए किसानों द्वारा धान की सीधी बिजाई का काम रोक दिया गया है।

प्रगतिशील किसान गुरप्रीत सिंह चंदबाजा ने बताया कि इस बार वह 11 एकड़ क्षेत्रफल में धान की सीधी बिजाई कर रहे हैं। उनके अलावा उनके गांव व जिले के अन्य किसानों द्वारा इस बार बड़ी मात्रा में धान की सीधी बिजाई की जा रही है। पिछले चार दिनों से रूक-रूक हो रही बारिश के कारण धान की बिजाई का काम ठप है।

उन्होंने बताया कि धान की खेती के लिए चिकनी दोमट मिट्टी सर्वोत्तम मानी गयी है। इसके अलावा दोमट और बलुई दोमट मिट्टी में भी इसे आसानी से उगाया जा सकता है एवं अच्छी पैदावार ली जा सकती है। धान की सीधी बोआई के लिए भूमि का समतल होना बहुत आवश्यक है। यदि भूमि समतल ना हो तो उसे लेजर लैंड लेबलिग की सहायता से समतल बनाया जा सकता है। समतल भूमि में एक बार गर्मी की जुताई करके छोड़ दिया जाता है एवं कुछ दिनों बाद पाटा या पटेला लगाकर मिट्टी की एक बार पुन: जुताई करने के बाद उपयुक्त नमी में बुआई की जाती है। धान की सीधी बुआई मानसून आने के करीब एक से दो सप्ताह पूर्व करना अच्छा होता है। धान की सीधी बुआई जून के प्रथम सप्ताह तक अवश्य कर देनी चाहिए। बुवाई के लिए सीड ड्रिल का प्रयोग करें और जिन खेतों में फसलों के अवशेष हो तथा जमीन आच्छादित हो वहां पर टरबो हैपी सीडर से 2 से 3 इंच गहरी बुआई करें।

उन्होंने बताया कि धान की सीधी बुआई के लिए 20 से 25 किलोग्राम बीज, 80 किलोग्राम नाइट्रोजन, 60 से 70 किलोग्राम फास्फोरस और 30 से 40 किलोग्राम पोटाश प्रति हेक्टेयर की आवश्यकता होती है। नाइट्रोजन की आधी और फास्फोरस एवं पोटाश की पूरी मात्रा बुवाई के समय प्रयोग करें। नाइट्रोजन की शेष मात्रा को दो भागों में बुआई के 20 से 25 दिन बाद और 45 से 50 दिन बाद खड़ी फसल में टाप ड्रेसिग के रूप में देनी चाहिए। खेत में जिक की कमी होने की अवस्था में जिक सल्फेट की 20 से 25 किग्रा प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करें। बुआई के दौरान मशीन द्वारा धान के कुछ बीज सीधी लाइन के अलावा आस-पास छिटकर गिर जाते हैं, जिसे बुआई के 25 से 30 दिन बाद उखाड़कर सीधी कतार में खाली और उचित स्थान पर रोप दें।

धान की सीधी बुवाई में रोपित धान की तुलना में कम पानी की आवश्यकता होती है। जिससे पूरे फसल मौसम में 15 से 20 प्रतिशत पानी की बचत होती है। सीधी बुआई में आमतौर पर साप्ताहिक अंतराल पर पानी देने की आवश्यकता होती है। इनसेट

धान की सीधी बुवाई से लाभ

इस विधि से धान की बुआई करने पर 15 से 20 प्रतिशत पानी की बचत होती है। इस विधि से खेत में लगातार पानी रखने की आवश्यकता नही पड़ती है। इस विधि में रोपाई नहीं करनी पड़ती जिसके फलस्वरूप नर्सरी उगाने का खर्च, मजदूर का खर्च, समय और ईंधन की बचत होती है। फसल आमतौर पर 5 से 15 दिन पहले तैयार हो जाती है जिससे दूसरी फसल के लिए अधिक समय मिल जाता है और उपज में कोई कमी नहीं पायी जाती है। सीधी बुवाई विधि से धान की खेती करने में बीज की मात्रा कम लगती है। मिटटी में सूक्ष्मजीवों की सक्रियता बनी रहती है। इस विधि से ग्रीन हाउस गैस मुख्यता मिथेने गेस का उत्सर्जन कम किया जा सकता है।

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