स्कूल न खोलना गलत, बच्चों की सेहत पर पड़ रहा बुरा असर

यह कहना है इंडियन एकेडमी ऑफ पीडियाट्रिक के प्रेसिडट डा. पीयूष गुप्ता का। वह दिल्ली के यूनिवर्सिटी कॉलेज आफ मेडिकल साइंस में पीडियाट्रिक विभाग के हेड हैं। यह बात उन्होंने शनिवार को नार्थ जोन पेडिकॉन-2021 कार्यक्रम में कही।

By JagranEdited By: Publish:Sun, 26 Sep 2021 08:00 AM (IST) Updated:Sun, 26 Sep 2021 08:00 AM (IST)
स्कूल न खोलना गलत, बच्चों की सेहत पर पड़ रहा बुरा असर
स्कूल न खोलना गलत, बच्चों की सेहत पर पड़ रहा बुरा असर

जासं, , चंडीगढ़ : बच्चों के वैक्सीनेशन के इंतजार में स्कूल न खोलना पूरी तरह गलत है। घर पर बैठे बच्चों के स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ रहा है। बच्चों में मानसिक तनाव के अलावा उनके शारीरिक विकास पर भी असर पड़ रहा है। एक स्टडी में यह बात सामने आई है कि कोरोना काल की पाबंदियों के दौर में बच्चों में मोटापे (ओबेसिटी) की समस्या बढ़ी है। यह कहना है इंडियन एकेडमी ऑफ पीडियाट्रिक के प्रेसिडट डा. पीयूष गुप्ता का। वह दिल्ली के यूनिवर्सिटी कॉलेज आफ मेडिकल साइंस में पीडियाट्रिक विभाग के हेड हैं। यह बात उन्होंने शनिवार को नार्थ जोन पेडिकॉन-2021 कार्यक्रम में कही। कार्यक्रम में पीजीआइ चंडीगढ़ के अलावा देशभर के सीनियर पीडियाट्रिशियन मौजूद थे।

पेडिकॉन कार्यक्रम में शनिवार को 150 स्पीकर और 600 डेलीगेट्स ने हिस्सा लिया। जहां बच्चों के मानसिक और शारीरिक विकास में मार्डन साइंस के योगदान पर आयोजित सेशन में मुख्य वक्ता के तौर पर सेंट्रल इंडियन एकेडेमी आफ पीडियाट्रिक के जनरल सेक्रेटरी डॉ. जीवी बासवराज, डॉ. रमेश कुमार, डॉ. पुरना कुरकुरे, डॉ. संगीता यादव, डॉ. गौरव गुप्ता, डॉ. गुंजन बावेजा और डॉ. कन्या मुखोपाध्याय मौजूद थे। बच्चे हर रोज दो घंटे मोबाइल पर बिताते हैं

पीजीआइ चंडीगढ़ के पीडियाट्रिक विभाग के प्रोफेसर अरुण बंसल ने कहा कि कोरोना काल की पाबंदियों के बीच बच्चों की निगाह मोबाइल फोन से नहीं हटी। एक स्टडी में यह बात सामने आई है कि लॉकडाउन के दौरान बच्चे हर रोज औसतन दो घंटे मोबाइल फोन का इस्तेमाल जरूर करते पाए गए। इसके कारण उनके आंखों की रोशनी और कान में ईयरफोन लगाने की वजह से सुनने की क्षमता पर बुरा असर पड़ा। जरूरी नहीं कि संभावित तीसरी लहर में सिर्फ बच्चे ही प्रभावित हों

इंडिया एकेडमी आफ पीडियाट्रिक के प्रेसिडेंट डॉ. पीयूष गुप्ता ने कहा कि जो लोग यह सोच रहे हैं कि कोरोना की संभावित तीसरी लहर का सर्वाधिक असर बच्चों पर ही पड़ेगा, यह सोचना पूरी तरह गलत है। अगर तीसरी लहर आती है, तो बच्चों के अलावा बाकी वर्ग के लोगों पर भी इसका असर पड़ेगा। डॉक्टर अरुण बंसल ने कहा कि पीजीआइ के सीरो सर्वे में 70 फीसद बच्चों में एंटीबॉडीज पाई गई है। इसका मतलब यह है कि बच्चे भी कोरोना संक्रमित हुए थे, लेकिन ए-सिंप्टमेटिक होने के कारण बच्चों में संक्रमण का असर कम रहा। बच्चों में रोग प्रतिरोधक क्षमता अच्छी होती है, जिसकी वजह से वे खुद ही रिकवर कर गए।

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