कैप्टन अमरिंदर सिंह को केजरीवाल पर गुस्सा क्यों आता है?, पढ़ें... पंजाब की राजनीति से जुड़ी और भी खबरें

राजनीति में कई ऐसी चुटीली बातें होती हैं जो अक्सर मीडिया में सुर्खियां नहीं बन पाती। आइए बात पते की कॉलम के जरिये कुछ ऐसी ही रोचक खबरों पर नजर डालते हैं...

By Kamlesh BhattEdited By: Publish:Sat, 08 Aug 2020 03:08 PM (IST) Updated:Sat, 08 Aug 2020 03:09 PM (IST)
कैप्टन अमरिंदर सिंह को केजरीवाल पर गुस्सा क्यों आता है?, पढ़ें... पंजाब की राजनीति से जुड़ी और भी खबरें
कैप्टन अमरिंदर सिंह को केजरीवाल पर गुस्सा क्यों आता है?, पढ़ें... पंजाब की राजनीति से जुड़ी और भी खबरें

चंडीगढ़ [कैलाश नाथ]। मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह की छवि साफ, सपाट और स्पष्ट बात करने वाले नेताओं की है। आम तौर पर कैप्टन को गुस्सा नहीं आता है, लेकिन अगर आता है तो उनकी शब्दावली में ही उनके गुस्से का स्पष्ट बोध हो जाता है। जहरीली शराब को लेकर विपक्ष ने मुख्यमंत्री पर सीधे-सीधे हमला बोला, कैप्टन ने विपक्ष के हमले को झेला भी और जवाब भी दिया, लेकिन गुस्सा नहीं किया।

कैप्टन को गुस्सा तब आया जब दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने ट्वीट कर जहरीली शराब मामले में सीबीआइ जांच की मांग की। यह मांग पंजाब में भी लगभग सभी सियासी दलों द्वारा पहले ही की जा रही थी, लेकिन केजरीवाल ने जैसे ही ट्वीट कर सीबीआइ जांच की मांग की कैप्टन आक्रामक हो गए। बात पते की यह है कि पंजाब का कोई नेता बोले तो बोले, लेकिन बाहर का नेता अगर कुछ बोले तो मुख्यमंत्री को गुस्सा आ जाता है।

युवा संभालेंगे मोर्चा

शिरोमणि अकाली दल के स्वर्णिम इतिहास का एक अध्याय 'मोर्चे' से भी जुड़ा हुआ है। 'मोर्चा' अकाली दल का अभिन्न अंग भी है, लेकिन 2020 में अकाली दल की रणनीति कुछ बदली-बदली नजर आ रही है। अब मोर्चे की कमान अकाली दल नहीं युवा अकाली दल के हाथों में जाती हुई दिखाई दे रही है। जहरीली शराब को लेकर जो भी धरना या प्रदर्शन किया जा रहा है, वह युवा अकाली दल की ओर से किया जा रहा है। हालांकि इन धरना प्रदर्शन को कमांंड जरूर वरिष्ठ नेताओं द्वारा किया जा रहा है। बात पते की यह है कि अकाली दल ने यूं ही अपनी रणनीति नहीं बदली। वरिष्ठ नेताओं को लोगों से वह समर्थन नहीं मिल पा रहा है जो पूर्व में मिलता था। इसी वजह से वरिष्ठ अकाली नेताओं ने खुद को पीछे रखकर समय और लोगों का विचार बदलने का इंतजाम करना शुरू कर दिया है।

याद आए 'राम'

पांच अगस्त को अयोध्या में श्री राम मंदिर का भूमि पूजन किया गया। इस आयोजन की तैयारियों कई दिनों से चल रही थीं। लोगों में इस दिन को लेकर खासा उत्साह था, लेकिन कांग्रेस में राम मंदिर को लेकर चुप्पी थी। पंजाब में कांग्रेस के हिंदू नेता पार्टी लाइन के भंवरजाल में फंसे हुए थे। फिर जैसे ही प्रियंका और राहुल गांधी ने राम मंदिर को लेकर ट्वीट किया तो कैप्टन अमरिंदर सिंह ने भी ट्वीट करने में देरी नहीं लगाई। इसके बाद सोशल मीडिया पर कांग्रेसी नेताओं व मंत्रियों ने संदेश डालने शुरू कर दिए। कांग्रेसियों की ओर से अचानक 'श्री राम' का नाम लेने से कई लोगों को आश्चर्य भी हुआ। बात पते की यह है कि पंजाब के हिंदू नेता श्री राम का नाम इसलिए नहीं ले रहे थे कि कहीं पार्टी की लाइन न बिगड़ जाए। इसीलिए वह पार्टी हाईकमान का ही मुंह देख रहे थे।

वेलकम टू राजभवन

राज्यसभा सदस्य प्रताप सिंह बाजवा और शमशेर सिंह दूलो ने राज्यपाल वीपी सिंह बदनौर को मिलकर जहरीली शराब के मामले की जांच सीबीआइ से करवाने का मांग पत्र सौंपा। बाजवा और दूलो ऐसे नेता हैं जिनकी करीब चार माह में पहली बार राजभवन में एंट्री हुई। अन्यथा लंबे समय से पंजाब के नेताओं के लिए राजभवन के द्वारा कोविड-19 के कारण बंद पड़े हुए हैं। कांग्रेस के प्रधान सुनील जाखड़ जब कृषि अध्यादेश के खिलाफ मांग पत्र लेकर राजभवन गए थे तो उनकी एंट्री तक नहीं हुई थी। उन्हेंं गेट पर ही अपना मांग पत्र राज्यपाल के स्टाफ को सौंपना पड़ा। शिरोमणि अकाली दल के प्रधान सुखबीर बादल को तो एक बार राज्यपाल से मिलने का कार्यक्रम ही कोविड-19 के कारण रद करना पड़ा था। यही नहीं अकाली दल के प्रधान सुखदेव सिंह ढींडसा से भी राज्यपाल ने मांग पत्र गेट पर ही आकर लिया। है न बात पते की।

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