तंत्र के गण : जब एक-दूसरे से बात करने से भी डर रहे थे लोग, तब राकेश सांगर को थी रक्तदान की फिक्र

कोरोना संकट के कारण जब लाकडाउन लगा तो लोगों ने एक-दूसरे से मिलना बंद कर दिया था।

By JagranEdited By: Publish:Thu, 21 Jan 2021 08:04 AM (IST) Updated:Thu, 21 Jan 2021 08:04 AM (IST)
तंत्र के गण : जब एक-दूसरे से बात करने से भी डर रहे थे लोग, तब राकेश सांगर को थी रक्तदान की फिक्र
तंत्र के गण : जब एक-दूसरे से बात करने से भी डर रहे थे लोग, तब राकेश सांगर को थी रक्तदान की फिक्र

जागरण संवाददाता, चंडीगढ़ :

कोरोना संकट के कारण जब लाकडाउन लगा तो लोगों ने एक-दूसरे से मिलना बंद कर दिया था। उस समय सरकारी अस्पतालों में मरीजों के लिए ब्लड की कमी हो गई। यहां तक कि रेगुलर रक्तदाताओं ने भी कोरोना के डर से ब्लड देने से मना कर दिया था। उस समय राकेश सांगर सामने आए और उन्होंने अस्पतालों में उत्पन्न इस दिक्कत को दूर करने का बीड़ा उठाया। मार्च से अगस्त माह तक सांगर अपने श्री शिव कांवड़ महासंघ चेरीटेबल ट्रस्ट के अन्य सदस्यों के साथ मिलकर रक्तदाताओं को सुरक्षित पीजीआइ और अन्य सरकारी अस्पतालों में रक्तदान के लिए लेकर जाते और वापस घर छोड़ते रहे।

अगस्त माह में जब प्रशासक वीपी सिंह बदनौर ने कहा कि रक्त की कमी से आपदा की स्थिति पैदा न हो जाए, इस पर सांगर ने फिर ट्राईसिटी में रक्तदान शिविर लगाने की शुरुआत की। उनके शिविर से लोकल एसोसिएशनों को जोड़ा गया है। तब से लेकर अब तक रेगुलर रक्तदान शिविर लगातार आयोजित किए जा रहे हैं।

शिव कांवड़ संघ के अध्यक्ष राकेश सांगर का कहना है कि पिछले साल कोरोना काल के दौरान उनकी ओर से कुल 189 रक्तदान शिविर लगाए गए, जिसमें 8361 लोगों ने रक्तदान किया है। अब भी उनका अभियान जारी है। सांगर की खूबी यह है कि अगर किसी अनजान व्यक्ति से से दस मिनट बात कर लेते हैं तो उसे भी जागरूक कर रेगुलर ब्लड डोनर बना देते हैं। करीब दस हजार डोनर्स हैं संपर्क में

श्री शिव कांवड़ महासंघ चेरीटेबल ट्रस्ट के अध्यक्ष राकेश सांगर सुबह पांच बजे से रात 11 बजे तक रक्तदाताओं को रक्तदान शिविर लगाने के बारे में ही जागरूक करते रहते हैं। उनके प्रयास के कारण ही इस समय ट्रस्ट के पास दस हजार डोनर्स के नाम रजिस्टर्ड हैं। यह डोनर्स आपातकालीन स्थिति में किसी भी समय फोन आने पर जरूरतमंद के पास एक से डेढ़ घंटे के बीच पहुंच जाते हैं। साल 2019 में पीजीआइ से रिटायर्ड हुए थे सांगर

सांगर साल 2019 में पीजीआइ से ही रिटायर्ड हुए हैं। अब वह जरूरतमंद मरीजों तक रक्तदाताओं पहुंचाने पर ही फुल टाइम कर रहे हैं। कई लोग सांगर को चलता फिरता ब्लड बैंक भी कहते हैं। अध्यक्ष सांगर का कहना है कि उनके जीवन का लक्ष्य ही रक्तदान करवान ही है। पहली बार 1995 में किया था रक्तदान

सांगर ने बताया कि उन्होंने पहली बार 1995 में रक्तदान किया था। उस समय वह पीजीआइ में ही कार्यरत थे। फिरोजपुर के एक व्यक्ति का ब्रेन ट्यूमर था। डाक्टरों ने दो यूनिट ब्लड के मांगे थे ब्लड न मिलने के कारण उसकी पत्नी रो रही थी। उस समय उन्होंने अपने दोस्त के साथ मिलकर पहली बार रक्तदान किया था। तभी से उनका रक्तदान करवाने और शिविर लगवाने का सफर शुरू हो गया है। (चंडीगढ़ से राजेश ढल्ल)

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