यूटी कैडर एजुकेशन यूनियन की मांग, कोरोना ड्यूटी में जान गंवाने वाले स्टाफ मेंबर को मिले 50 लाख का मुआवजा

कोरोना महामारी में डिजास्टर मैनेजमेंट एक्ट के तहत ड्यूटी दे रहे चंडीगढ़ सरकारी स्कूल टीचिंग और नॉन टीचिंग स्टाफ काे यदि कुछ हाे जाता है तो उनके लिए 50 लाख रुपये का मुआवजा अनिवार्य रूप से होना चाहिए। यह मांग यूटी कैडर एजुकेशन यूनियन ने की है।

By Ankesh ThakurEdited By: Publish:Sat, 15 May 2021 12:56 PM (IST) Updated:Sat, 15 May 2021 12:56 PM (IST)
यूटी कैडर एजुकेशन यूनियन की मांग, कोरोना ड्यूटी में जान गंवाने वाले स्टाफ मेंबर को मिले 50 लाख का मुआवजा
यूटी कैडर एजुकेशन यूनियन के प्रेसिडेंट स्वर्ण सिंह कंबोज।

चंडीगढ़, जेएनएन। कोरोना महामारी में डिजास्टर मैनेजमेंट एक्ट के तहत ड्यूटी दे रहे चंडीगढ़ सरकारी स्कूल टीचिंग और नॉन टीचिंग स्टाफ काे यदि कुछ हाे जाता है तो उनके लिए 50 लाख रुपये का मुआवजा अनिवार्य रूप से होना चाहिए। यह मांग यूटी कैडर एजुकेशन यूनियन ने प्रशासक वीपी सिंह बदनौर से की है।

यूनियन प्रेसिडेंट स्वर्ण सिंह कंबोज ने बताया कि शिक्षा विभाग के तीन सौ के करीब टीचिंग और नॉन टीचिंग स्टाफ की ड्यूटी कोविड-19 में लगी हुई है। जिसमें अब तक एक अध्यापक की मौत हो चुकी है। इसके अलावा भी शिक्षा विभाग के सेक्टर-19 स्थित कार्यालय में ड्यूटी देते हुए जिला शिक्षा अधिकारी हरबीर आनंद और गवर्नमेंट मॉडल हाई स्कूल सेक्टर-46 में अध्यापिका अंजू का भी देहांत कोरोना महामारी के चलते हुआ है। ऐसे में अब प्रशासन के पास कोविड से जान गंवाने वाले या फिर किसी भी आपातकाल से निपटने के लिए अलग से फंड या मुआवजे का प्रावधान होना चाहिए।

अनुकंपा का मिलना चाहिए फायदा

स्वर्ण सिंह कंबोज ने कहा कि ड्यूटी देते हुए यदि किसी कर्मचारी या अधिकारी की मौत हो जाती है तो अनुकंपा के आधार पर उसके परिवार के किसी सदस्य को नौकरी मिलती है लेकिन यह लाभ सिर्फ रेगुलर कर्मचारियों को ही मिलता है। शिक्षा विभाग में सैकड़ों टीचर्स समग्र शिक्षा अभियान और कांट्रेक्ट पर सेवाएं दे रहे हैं। यदि उनमें से किसी का भी देहांत होता है तो उन्हें भी अनुकंपा का लाभ मिलना चाहिए।

डीईओ के देहांत के बाद उनके बेटे को नौकरी की उठी थी मांग

पांच सितंबर 2020 को जिला शिक्षा अधिकारी हरबीर आनंद के देहांत के बाद ज्वाइंट एक्शन कमेटी ने उनके बेटे को अनुकंपा के आधार पर विभाग में नौकरी देने की मांग उठाई थी, लेकिन आठ महीने का समय बीतने के बाद भी इस मामले में प्रशासन ने कोई निर्णय नहीं लिया है। 

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