Punjab New Cabinet Ministers Story : पंजाब की नई कैबिनेट की असली कहानी, हाईकमान का दबदबा कायम करने का प्रयास

Punjab New Cabinet Ministers Story पंजाब की नई कैबिनेट के गठन में जितनी माथापच्‍ची हुई उसमें जातीय संतुलन व सभी वर्गों को स्‍थान देने के साथ आलाकमान की अपनी चिंता भी थी। दरअसल कांग्रेस हाईकमान इसके जरिये पंजाब कांग्रेस की अपना दबदबा कायम करने की कोशिश है।

By Sunil Kumar JhaEdited By: Publish:Sun, 26 Sep 2021 09:03 AM (IST) Updated:Sun, 26 Sep 2021 10:47 AM (IST)
Punjab New Cabinet Ministers Story : पंजाब की नई कैबिनेट की असली कहानी, हाईकमान का दबदबा कायम करने का प्रयास
पंजाब के मुख्‍यमंत्री चरणजीत सिंह चन्‍नी और कांग्रेस के पूर्व राष्‍ट्रीय अध्‍यक्ष राहुल गांधी। (फाइल फोटो)

इन्द्रप्रीत सिंह, चंडीगढ़। Punjab New Cabinet Ministers Story: त्‍वरित टिप्‍पणी- पंजाब में पांच -छह दिन की मशक्कत के बाद कांग्रेस पार्टी ने पंजाब कैबिनेट के नामों को मंजूरी दी है उसमे जाति, धर्म और वर्गों पर ही चर्चाएं हो रही हैं लेकिन असल बात यह है कि इतनी मशक्कत का असली मकसद कांग्रेस हाईकमान का दबदबा फिर से कायम करना है। साढ़े चार साल के दौरान जिस तरह से हाईकमान की पकड़ कमजोर हो गई थी, राहुल गांधी ने उसे दोबारा से बनाने का प्रयास किया है। कैबिनेट की सूची तैयार करने में मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी, उपमुख्यमंत्री सुखजिंदर सिंह रंधावा और कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू अपनी-अपनी चला रहे थे लेकिन जिस तरह की सूची बनी है उससे साफ है कि इसमें हाईकमान ने न तो मुख्यमंत्री की ज्यादा चलने दी है और न ही नवजोत सिद्धू की।

खासतौर पर राहुल गांधी ने अपनी यूथ ब्रिगेड को आगे किया है। विजय इंद्र सिंगला, भारत भूषण आशु, अमरिंदर सिंह राजा वडिंग, कुलजीत नागरा ये सभी वह चेहरे हैं जो राहुल गांधी के करीबी माने जाते हैं। 2012 के चुनाव में राहुल गांधी ने अपने कोटे से जिन छह युवाओं को आगे किया था उनमें नागरा और राजा व¨ड़ग भी शामिल थे।

मंत्रियों के विभागों को लेकर भी पार्टी हाईकमान का दखल इसी तरह रहने की संभावना है। राहुल अपने करीबी विधायकों को बड़े विभाग दिलाने का काम करेंगे। ऐसा पहली बार है कि ब्यूरोक्रेसी की नियुक्ति में भी हाईकमान सीधा दखल दे रहा है। आमतौर पर यह मुख्यमंत्री पर छोड़ा जाता है कि वह अपनी टीम बनाएं लेकिन यहां ऐसा देखने को नहीं मिल रहा है। जिस एडवोकेट जनरल (एजी) की नियुक्ति किसी भी मुख्यमंत्री का पहला आदेश होता है, उसी पोस्ट को लेकर कई नाम चलकर पीछे हो गए हैं।

मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी और नवजोत सिंह सिद्धू भी किसी एक नाम पर सहमत नहीं हो पा रहे हैं। सिद्धू चाहते थे कि सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज कुलदीप सिंह के बेटे डीएस पटवालिया को इस पद पर नियुक्‍त किया जाए और ऐसा लगभग फाइनल हो गया था लेकिन चन्नी के अड़ने के बाद बार काउंसिल के पूर्व अध्यक्ष अनमोल रतन सिद्धू का नाम चल पड़ा।

यही बात डायरेक्टर जनरल आफ पुलिस के पद को लेकर भी बनी हुई है। सिद्धू एस चट्टोपाध्याय को इस पद पर लगाना चाहते थे लेकिन मुख्यमंत्री इकबालप्रीत सिंह सहोता को बनाने पर जोर दे रहे थे। आखिर इस मामले में चन्नी की चली और कहा जा रहा है कि इसके लिए भी हाईकमान ने ही मंजूरी दी थी।

कैबिनेट की सूची और विभागों के अधिकारियों को देखकर बेशक लग रहा है कि हर वर्ग को प्रतिनिधित्व देने की कोशिश की जा रही है लेकिन अपने अपने लोगों को लगाने को लेकर जिस तरह से कांग्रेस अलग-अलग खेमों में बंटती जा रही है उससे यह नहीं लगता कि आने वाले चुनाव तक पार्टी एकजुट रह पाएगी। हां, इतना तय है कि इसी बहाने राहुल गांधी ने अपनी पकड़ मजबूत जरूर कर ली है।

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