ब्यूरोक्रेसी और राजनीति में उलझा एडवाइजर का पद
राज्यों में जिस तरह से चीफ सेक्रेटरी का पद सबसे पावरफुल होता है।
जागरण संवाददाता, चंडीगढ़ : राज्यों में जिस तरह से चीफ सेक्रेटरी का पद सबसे पावरफुल होता है। इस पर आसीन होने के लिए सीनियर अधिकारी जुगत भिड़ाते रहते हैं। वैसे ही चंडीगढ़ में एडवाइजर का पद सबसे अहम होता है। सभी बड़े फैसलों पर इनकी छाप होती है। पूरा प्रशासन एडवाइजर के अधीन कार्य करता है, लेकिन इस पद पर रहकर कार्यकाल पूरा कर पाना बड़ी बात हो गई है। यह पद ब्यूरोक्रेसी और राजनीति के बीच उलझा रहता है। मौजूदा एडवाइजर मनोज परिदा सहित तीनों अधिकारियों को इसी खींचतान में अपनी कुर्सी गवानी पड़ी। एडवाइजर का सत्ता पक्ष के साथ तालमेल बिगड़ा तो कुर्सी पर ट्रांसफर के बादल मंडराने लगते हैं। विजय देव और मनोज परिदा के ट्रांसफर में सीधे-सीधे भाजपा के वरिष्ठ नेताओं की नाराजगी को वजह माना जा रहा है। विजय देव हर कार्य के लिए खुद ग्राउंड लेवल पर उतर जाते थे। लोगों के बीच बढ़ती इसी लोकप्रियता और प्रशासक को कई मायनों में बायपास करना उन्हें भारी पड़ा। खुद सांसद किरण खेर ने उनके ट्रांसफर का श्रेय लिया था। अब मनोज परिदा के कई फैसले भी भाजपा के स्थानीय नेताओं को खटक रहे थे। सीएचबी की नीड बेस्ड से जुड़ी मीटिग एडवाइजर ने अपने स्तर पर तय कर दी थी। यह भाजपा नेताओं को रास नहीं आया। इसकी शिकायत भी प्रशासक वीपी सिंह बदनौर से लेकर दिल्ली तक की गई थी। मनींदर सिंह बैंस रेस में आगे
नए एडवाइजर के लिए अधिकारी जमकर जोर आजमाइश कर रहे हैं। असम कैडर के अधिकारी मनींदर सिंह बैंस चंडीगढ़ आने के लिए ज्यादा जोर लगा रहे हैं। चंडीगढ़ उनका होम टाउन है। वह पहले भी डेपुटेशन पर चंडीगढ़ आ चुके हैं। इस दौरान वह सीएचबी के चेयरमैन रहे थे। उनके साथ सत्यगोपाल का नाम भी चल रहा है। साथ ही अरुणाचल प्रदेश के चीफ सेक्रेटरी नरेश अरोड़ा के नाम की भी चर्चा है। इसके अलावा भी कई नामों की चर्चा है, लेकिन अभी तय कुछ नहीं हुआ है। कभी भी नए एडवाइजर के आदेश केंद्र सरकार कर सकती है।