मिलिए चंडीगढ़ के सुभाष वैध से, रामलीला में 28 साल से निभा रहे रावण का किरदार, लोगों के लिए पेश की मिसाल

सुभाष बताते हैं कि श्रीरामलीला में मैंने मुस्लिम समुदाय के भाई शाम मोहम्मद को देखा था। वह अलग-अलग अभिनय करता था। उस समय भी हिंदू-मुस्लिम अलग-अलग होने की बातें भी सुनी थी लेकिन शाम मोहम्मद ने लोगों को लिए एक मिसाल पेश की थी।

By Ankesh ThakurEdited By: Publish:Tue, 21 Sep 2021 03:18 PM (IST) Updated:Tue, 21 Sep 2021 03:18 PM (IST)
मिलिए चंडीगढ़ के सुभाष वैध से, रामलीला में 28 साल से निभा रहे रावण का किरदार, लोगों के लिए पेश की मिसाल
सुभाष वैध सेक्टर-26 स्थित जय भारत ड्रामेटिक क्लब के सदस्य हैं।

जागरण संवाददाता, चंडीगढ़। रामलीला सिर्फ धार्मिक ग्रंथ या कहानी नहीं बल्कि यह समाज को जोड़ने वाला इतिहास है। यही कारण है कि रामलीला से हिंदू और मुस्लिम समुदाय के लोग जुड़ते है। मैं भी रामलीला के समाजिक संदेशों से प्रेरित हुआ और 14 साल की उम्र में पहले श्रवण और उसके बाद लक्ष्मण और अब 28 साल से रावण का किरदार निभा रहा हूं। यह कहना है सुभाष वैध का।

सुभाष वैध सेक्टर-26 स्थित जय भारत ड्रामेटिक क्लब के सदस्य हैं। सुभाष 1972 से सेक्टर-26 में रामलीला मंचन में कई किरदार निभा चुके हैं। उन्होंने कहा कि बहुत खुशी होती है जब मुस्लिम समुदाय के लोग भी रामलीला में अभिनय करते थे और श्रीरामलीला की स्टेज बनाने से लेकर उसे स्थापित रखने के लिए के लिए सहयोग करते हैं। 

शाम मोहम्मद से हुआ प्रेरित

सुभाष बताते हैं कि श्रीरामलीला में मैंने मुस्लिम समुदाय के भाई शाम मोहम्मद को देखा था। वह अलग-अलग अभिनय करता था। उस समय भी हिंदू-मुस्लिम अलग-अलग होने की बातें भी सुनी थी, लेकिन शाम मोहम्मद कहता था कि श्रीरामलीला में समाज में रहने और परिवार के लिए कुछ करने का संदेश है। जिसके लिए मैं अभिनय करने और उससे जुड़ने की रूचि रखता हूं। सुभाष ने बताया कि एक बार लक्ष्मण रेखा का मंचन चल रहा था और मैं लक्ष्मण था। उस समय अचानक परदे में आग लग गई और मंच पर कलाकारों से लेकर दर्शकों में डर का माहाैल पैदा हो गया, लेकिन शाम मोहम्मद ने हिम्मत दिखाई और अकेले ही आग बुझा दी। आग बुझाते वक्त उसका हाथ भी जल गया। मैंने समाज के लिए परदे की आग बुझाई है। उस आग को बुझाते हुए उनके सारे हाथ आग से झुलस गए लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और श्रीरामलीला की स्टेज को सुरक्षित रखा। शाम मोहम्मद कहते थे कि भगवान श्रीराम ने पिता का आदेश मानने के लिए 14 साल का वनवास स्वीकार कर लिया, भाई लक्ष्मण ने अपने भाई के प्यार के लिए उसके साथ जाना स्वीकार किया। बहन के लिए रावण ने सीता को उठाया और लंका रखा। विभीषण और सुग्रीव से लेकर मेघनाथ और कुभकर्ण में भाई के प्रति द्वेष और प्यार को दिखाया गया। यह सब कुछ समाज से जुड़ने का संदेश देते है। 

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