तूल पकड़ रहा श्री गुरु ग्रंथ साहिब की बेअदबी का मामला, अकाली दल को मिल रही संजीवनी
बेअदबी के मुद्दे पर 2017 में कांग्रेस सत्ता में तो आ गई लेकिन उसने श्री गुरु ग्रंथ साहिब की बेअदबी करने वालों को चार साल से ज्यादा समय बीतने के बावजूद कटघरे में खड़ा नहीं किया। जिसके चलते अब यही मुद्दा कांग्रेस के गले की फांस बन गया है।
इन्द्रप्रीत सिंह। पंजाबी में एक कहावत है, जिसका हिंदी में अर्थ है कि अपने घर में आग लगने पर ही इससे हुई बर्बादी का पता चलता है। यह शायद कांग्रेस को अब समझ में आने लगा है। श्री गुरु ग्रंथ साहिब की बेअदबी के मसले को लेकर कांग्रेस परिवार में छिड़ी कलह इसी मुद्दे को लेकर राजनीतिक हाशिए पर पहुंच चुके शिरोमणि अकाली दल को रास आने लगी है। पिछले करीब साढ़े चार साल से लड़खड़ा रही पार्टी अब उठने की कोशिश करने लगी है। पार्टी नेताओं के बयान, उनके धरने, प्रदर्शन और प्रदेश की कांग्रेस सरकार पर हमलावर रुख भी इसी ओर इशारा कर रहा है।
वर्ष 2015 में अकाली दल और भारतीय जनता पार्टी सरकार के कार्यकाल में श्री गुरु ग्रंथ साहिब की बेअबदी के मामले पर राज्य विधानसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस और आम आदमी पार्टी ने जिस तरह से हमलावर रुख अपनाया, उससे पार्टी का कोर पंथक वोट हाथ से जाता रहा। इसका नतीजा यह हुआ कि लगातार दस साल राज करने वाला अकाली दल वर्ष 2017 के चुनाव में विपक्ष की भूमिका में भी नही आ सका। आता भी कैसे, गुरु ग्रंथ साहिब की बेअदबी जैसे संवेदनशील मामले में अकाली-भाजपा सरकार ने जिस तरह की लचर भूमिका निभाई, उसने श्री गुरु ग्रंथ साहिब में विश्वास करने वाले सभी लोगों का विश्वास तोड़ दिया। इसके बाद तो अकाली दल में फूट पड़ गई। सुखदेव सिंह ढींडसा, रंजीत सिंह जैसे कद्दावर नेता सुखबीर बादल का साथ छोड़ गए। इसका असर 2019 के संसदीय चुनाव पर भी पड़ा। शिअद में बादल परिवार केवल अपनी दो सीटें बठिंडा और फिरोजपुर ही बचा सका। बठिंडा में हरसिमरत कौर बादल तीसरी बार जीत गईं तो फिरोजपुर से सुखबीर बादल चुनाव जीत गए, लेकिन पार्टी बुरी तरह से हार गई।
बेअदबी के मुद्दे पर 2017 में कांग्रेस सत्ता में तो आ गई, लेकिन उसने श्री गुरु ग्रंथ साहिब की बेअदबी करने वालों को चार साल से ज्यादा समय बीतने के बावजूद कटघरे में खड़ा नहीं किया। जिसके चलते अब यही मुद्दा कांग्रेस के गले की फांस बन गया है। मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह को उनके राजनीतिक विरोधियों ने ही नहीं, बल्कि उनके अपने खास मंत्रियों ने भी इसी मुद्दे पर चुनौती दी है। इसी मुद्दे के चलते कांग्रेस में कलह छिड़ी हुई है जो अकाली दल को बड़ी रास आ रही है। हालांकि शिरोमणि अकाली दल को जो बड़ी राहत मिली थी वह हाई कोर्ट के फैसले से मिली। श्री गुरु ग्रंथ साहिब की बेअदबी का विरोध करने वाले लोगों पर पुलिस की ओर से चलाई गोली वाले कांड के मामले में अदालत ने जांच कर रही एसआईटी को न केवल रद कर दिया, बल्कि यह भी ताकीद किया कि इसके प्रमुख आईजी कुंवर विजय प्रताप सिंह को नई बनने वाली जांच कमेटी का सदस्य बिल्कुल न बनाया जाए। इसके अलावा अपने फैसले में अदालत ने इस पूरे मामले पर जिस तरह की टिप्पणियां की हैं, वह ठीक वैसी हैं जिसका पार्टी को इंतजार था। इस फैसले ने अकाली दल को राहत की सांस दी। राजनीतिक जमीन पर कब्जा करने के इरादे से उठने की हिम्मत कर रहे नेताओं में एकदम से जैसे जान आ गई।
आपदा को अवसर में बदला : राजनीतिक पार्टियों का एकमात्र लक्ष्य सत्ता प्राप्ति है। एक राह रुक जाए तो दूसरी चुनने में वह जरा सी देरी भी नहीं करते। ऐसा ही अकाली दल ने भी किया। हर विधानसभा हलके में रैलियों का कार्यक्रम तैयार किया गया। तीन-चार की ही थीं कि कोरोना की दूसरी लहर आपदा बनकर खड़ी हो गई। पार्टी ने इसी आपदा को अवसर में बदलने में देरी नहीं की। शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के सहारे पार्टी ने राजनीतिक हित साधने शुरू कर दिए हैं। आजकल पार्टी प्रधान सुखबीर बादल हर हलके में कोविड सेंटर का उद्घाटन कर रहे हैं। ये कोविड सेंटर शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी की ओर से खोले जा रहे हैं।
यह ऐसा दांव है जिसमें चित आए या पट, फायदा तो पार्टी का ही होना है। कोविड से निपटने के लिए कांग्रेस की प्रदेश सरकार और केंद्र की एनडीए सरकार को निशाने पर लेकर वह एसजीपीसी के सेंटरों का उद्घाटन ही नहीं कर रहे, बल्कि आम लोगों को यह बता भी रहे हैं कि मुसीबत के समय कैसे ये सेंटर उनके काम आ सकते हैं। निश्चित तौर पर इस तरह के सामाजिक काम पार्टी से नाराजगी को दूर करने में भी काम आएंगे।
वैक्सीन का मसला : केंद्र सरकार से सस्ते दामों पर वैक्सीन खरीद कर महंगे दामों पर प्राइवेट अस्पतालों को बेचने का मुद्दा तो कांग्रेस सरकार ने विपक्ष को बैठे बिठाए दे दिया जिसको सबसे ज्यादा शिरोमणि अकाली दल ने ही भुनाया है। पार्टी प्रधान सुखबीर बादल ने मीडिया के जरिए इसे हाइलाइट करके मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह के मंत्री और चीफ सेक्रेटरी को निशाने पर लिया। पहले उन्होंने एक प्रेस कांफ्रेंस करके मुख्य सचिव विनी महाजन के उस ट्वीट को सार्वजनिक किया जिसमें चीफ सेक्रेटरी ने प्राइवेट अस्पतालों से वैक्सीन लगवाने को कहा। यही नहीं, सोमवार को उन्होंने स्वास्थ्य मंत्री बलबीर सिद्धू के आवास के पास दो घंटे धरना भी दिया। वैसे यह धरना कम, एक सियासी रैली ज्यादा थी। शिअद के ये प्रयास आने वाले नौ महीनों में उन्हें सत्ता की सीढ़ियां चढ़ा पाएंगे, यह तो तभी पता चलेगा।
[राज्य ब्यूरो प्रमुख, पंजाब]