Punjab Politics: राजनीतिक तीर्थयात्राओं का दौर, हर कोई अलग देवता को खुश करने की कोशिश में

Punjab Politics नवजोत सिंह सिद्धू और चरणजीत सिंह चन्नी के बीच चल रहे शीत युद्ध से कई मंत्री नाराज हैं। हालांकि वह खुलकर इस लड़ाई में नहीं उतर रहे लेकिन जब भी आपस में बैठते हैं तो नवजोत सिद्धू के व्यवहार को लेकर वह तीखी टिप्पणियां करते हैं।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Publish:Wed, 10 Nov 2021 09:19 AM (IST) Updated:Wed, 10 Nov 2021 09:21 AM (IST)
Punjab Politics: राजनीतिक तीर्थयात्राओं का दौर, हर कोई अलग देवता को खुश करने की कोशिश में
इस माह के आरंभ में केदारनाथ की यात्रा पर गए चरणजीत सिंह चन्नी और नवजोत सिंह सिद्धू। फाइल

चंडीगढ़, इन्द्रप्रीत सिंह। Punjab Politics राज्य कांग्रेस के पूर्व प्रधान सुनील जाखड़ ने दो नवंबर को नवजोत सिंह सिद्धू और चरणजीत सिंह चन्नी की एक साथ की गई केदारनाथ यात्रा पर ट़्वीट करते हुए उन्हें ‘राजनीतिक’ तीर्थयात्री बताया और कहा कि हर कोई अलग देवता को खुश करने की कोशिश कर रहा है।

वैसे तो उनकी यह टिप्पणी अपनी ही पार्टी के दो शीर्ष नेताओं के बीच चल रही वर्चस्व की जंग को लेकर थी, लेकिन उनकी यह टिप्पणी अन्य पार्टियों के नेताओं पर भी स्टीक बैठती है जो इन दिनों मंदिरों, गुरुद्वारों और डेरों की चौखटों पर माथे रगड़ रहे हैं। नेता जानते हैं कि वह जनता से सत्ता में आने के बाद जितने भी काम करने के वादे कर लें, लेकिन जिस दिन वोट पड़ेंगे उस दिन लोग इन वादों के बजाय धार्मिक भावनाओं को प्राथमिकता देते हुए वोट करेंगे।

केदारनाथ दर्शन के लिए साथ-साथ पहुंचे पंजाब सीएम चरणजीत सिंह चन्नी व नवजोत सिंह सिद्धू।

मतदाताओं को इस तरह भरमाने में अब कोई भी पार्टी का नेता पीछे नहीं है। मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी और नवजोत सिंह सिद्धू को लेकर पंजाब मामलों के प्रभारी हरीश चौधरी की केदारनाथ यात्र हो या फिर मुख्यमंत्री चन्नी का रामतीर्थ मंदिर में जाना। शिरोमणि अकाली दल के प्रधान का सात अक्टूबर को माता चिंतपूर्णी के चरणों में माथा टेकने जाना हो या उसके बाद अमृतसर के प्राचीन शिवाला मंदिर और रामतीर्थ जाना, सभी इसी दृष्टि से देखे जाने चाहिए। आम आदमी पार्टी के नेता और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल भी इस मामले में कहां पीछे रहने वाले हैं। वह भी जालंधर के देवी तालाब मंदिर पहुंच गए। सभी नेता चुनाव से पहले हर ईष्ट को मनाने में जुटे हुए हैं। उद्देश्य सभी का एक ही है कि वह किसी तरह सत्ता के द्वार तक पहुंच जाएं। बात हो रही थी कि अपने अपने पीर को मनाने की.. लेकिन पार्टी में जो एक दूसरे से रूठे हुए हैं उनका क्या। सभी पार्टियों के हाईकमान के लिए यह बड़ी दिक्कत है।

सिद्धू और चन्नी के बीच चल रहे शीत युद्ध से कई मंत्रियों को लगता है कि साढ़े चार साल तक सरकार की जो छवि खराब रही थी, चरणजीत सिंह चन्नी उसे सुधारने में लगे हुए हैं। जब भी जनता की भलाई के लिए कोई बड़ा एलान करते हैं, उसी दिन नवजोत सिद्धू कोई न कोई ऐसी बात कर देते हैं कि सरकार के किए कराए पर पानी फिर जाता है। जिस दिन मुख्यमंत्री ने तीन रुपये प्रति यूनिट बिजली की कीमत कम करके 3316 करोड़ रुपये का लाभ लोगों को दिया, उसी दिन सिद्धू ने कह दिया कि लोगों को लालीपाप नहीं चाहिए। सस्ती बिजली के एलान तो किए जा रहे हैं, पैसा कहां से आएगा। इसी तरह चन्नी ने पेट्रोल-डीजल के रेट घटाए, उस दिन सिद्धू ने फिर से एडवोकेट जनरल और डीजीपी को हटाने का मुद्दा उठा दिया। कांग्रेस की फिर से सरकार बनने पर मुख्यमंत्री बनने की इच्छा पार्टी के कई अन्य नेताओं में भी है। सुनील जाखड़, सुखजिंदर रंधावा, प्रताप सिंह बाजवा समेत कुछ अन्य नेता भी यह इच्छा पाले बैठे हैं।

ऐसा भी नहीं है कि ऐसा केवल कांग्रेस में ही हो रहा है। आम आदमी पार्टी भी इससे अछूती नहीं है। उसके पंजाब प्रधान भगवंत मान भी खुद को मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित करवाने को लेकर लालायित हैं। पार्टी सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल बीते दिनों पंजाब के तीन चक्कर लगा चुके हैं, लेकिन वह उनके नाम की घोषणा नहीं कर रहे जिस कारण भगवंत मान पार्टी से रूठे हुए बताए जाते हैं। दरअसल जब भी किसी बड़े नाम को पार्टी में शामिल करने की कवायद शुरू होती है, मान रूठकर घर बैठ जाते हैं। वैसे आजकल फिल्म अभिनेता सोनू सूद को आम आदमी पार्टी में शामिल करने की चर्चा चल रही है, इसलिए भगवंत मान घर से ज्यादा निकल नहीं रहे हैं। इससे पहले प्रसिद्ध होटल कारोबारी और समाजसेवी एसपी सिंह ओबराय, पूर्व ब्यूरोक्रेट केसी सिंह आदि के नाम की भी चर्चा हुई थी कि उनको पार्टी में शामिल किया जा रहा है। तब भी भगवंत मान का रवैया इसी तरह का रहा था। अब उनकी फील्ड में सक्रियता काफी कम दिखाई पड़ने लगी है, जबकि चुनाव के दिन नजदीक आते जा रहे हैं।

इसी बीच एक दिलचस्प चीज भी देखने को मिल रही है। दरअसल अरविंद केजरीवाल जितनी बार भी पंजाब आए हैं, वह नवजोत सिंह सिद्धू पर टिप्पणी करने से बचते रहे हैं। नवजोत सिद्धू भी आजकल प्रमुख विरोधी पार्टी आम आदमी पार्टी को निशाने पर लेने की बजाय अपनी ही पार्टी को निशाने पर ले रहे हैं। आम आदमी पार्टी के कई नेता कहते हैं कि पार्टी के दरवाजे नवजोत सिद्धू के लिए बंद हैं, लेकिन अरविंद केजरीवाल अपनी हर आमद पर सिद्धू पर कुछ भी न बोलकर जो खिड़की खुली छोड़ देते हैं, क्या वह सिद्धू के घुसने के लिए है या फिर इसका मतलब कुछ और है। यह तो वक्त ही बताएगा।

[राज्य ब्यूरो प्रमुख, पंजाब]

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