Punjab Assembly Elections 2022: पंजाब में हिंदू वोट बैंक पर राजनीतिक दलों की नजर, जानें किस पार्टी की क्या है रणनीति

Punjab Assembly Elections 2022 पंजाब विधानसभा चुनाव वर्ष 2022 की शुरुआत में होने हैं। ऐसे में सभी राजनीतिक दलों की निगाह हिंदू वोट बैंक पर टिक गई है। सभी राजनीतिक दल इसके लिए रणनीति बनाने में जुटे हैं।

By Kamlesh BhattEdited By: Publish:Mon, 11 Oct 2021 05:59 AM (IST) Updated:Mon, 11 Oct 2021 06:57 AM (IST)
Punjab Assembly Elections 2022: पंजाब में हिंदू वोट बैंक पर राजनीतिक दलों की नजर, जानें किस पार्टी की क्या है रणनीति
पंजाब में हिंदू वोट बैंक पर राजनीतिक दलों की नजर।

चंडीगढ़़। Punjab Assembly Elections 2022: पंजाब विधानसभा चुनाव का मैदान तैयार हो गया है। अब सभी राजनीतिक पार्टियों ने अपने-अपने वोट बैंक को संभालने और दूसरे के वोट बैंक में सेंधमारी करनी शुरू कर दी है। इन सब राजनीतिक घटनाओं के बीच कांग्रेस और शिरोमणि अकाली दल की नजर हिंदू वोट बैंक पर है तो किसान आंदोलन के कारण राजनीतिक रूप से निशाने पर आए भारतीय जनता पार्टी की उम्मीद पूर्ण रूप से हिंदुओं पर ही टिक गई है। भाजपा को लगता है कि केवल शहरी हिंदू ही हैं जो कि उनकी 2022 में लाज बचा सकता है। राजनीतिक दलों के लिए यह मजबूरी भी है, क्योंकि 38.49 फीसद हिंदू और 31.94 फीसद अनुसूचित जाति (जिसमें हिंदू और सिख दोनों ही हैं) हमेशा ही सरकार बनाने में अहम भूमिका निभाते हैं। हिंदुओं को लेकर चल रही गतिविधियों को लेकर हमारे विशेष संवाददाता कैलाश नाथ की रिपोर्ट।

कांग्रेस की चिंता, हिंदू हो रहे हैं दूर

तमाम विरोध के बावजूद कांग्रेस ने नवजोत सिंह सिद्धू को प्रदेश प्रधान की कुर्सी पर बैठाया और मुख्यमंत्री की कमान एससी वर्ग से आने वाले चरणजीत सिंह चन्नी के हाथों में दी। कांग्रेस ने ओपी सोनी को हिंदू कोटे से उप मुख्यमंत्री जरूर बनाया, लेकिन अब कांग्रेस की चिंता इस बात को लेकर है कि हिंदू वोट बैंक कैप्टन अमरिंदर के जाने के बाद उनसे छिटक रहा है। इसे लेकर कांग्रेस ने एक सर्वे भी करवाया है। इसमें यह निकल कर आया है कि हिंदू वोट बैंक जिस तरफ जाता है। सरकार उसी पार्टी की बनती है। इस सर्वे के बाद से ही कांग्रेस खासी चिंतित नजर आ रही है। कांग्रेस के पास जट्ट नेताओं की कोई कमी नहीं है।

चरणजीत सिंह चन्नी को मुख्यमंत्री बनाने के बाद अनुसूचित जाति चेहरा भी पार्टी के पास तैयार हो गया है, लेकिन कांग्रेस के पास कोई भी ऐसा हिंदू चेहरा नहीं है जो कि पूरे पंजाब में मान्य है। सुनील जाखड़ जरूर हिंदुओं के मजबूत चेहरे के रूप में देखे जाते थे, लेकिन इस समय कांग्रेस में वह अलग-थलग हैं। भारत भूषण आशु ने खुद को लुधियाना तक ही सीमित रखा हुआ है। ऐसे में कांग्रेस की चिंता है कि किस प्रकार से हिंदुओं को अपने से दूर होने से रोका जाए, क्योंकि हिंदू या तो भाजपा के पास जाता है या फिर वह कांग्रेस के हक में रहता है। कांग्रेस की चिंता इस बात को लेकर भी है कि प्रमुख प्रतिद्वंद्वी पार्टी सुखबीर बादल लगातार हिंदुओं को अपने साथ जोड़ने की कोशिश में लगे हुए हैं।

मंदिरों में माथा टेक सुखबीर आ रहे हिंदुओं के करीब

शिरोमणि अकाली दल और बहुजन समाज पार्टी की सरकार में एक अनुसूचित जाति और एक हिंदू मुख्यमंत्री होगा। यह घोषणा अकाली दल के प्रधान सुखबीर बादल पहले ही कर चुके हैं। सुखबीर अब लगातार अपनी घोषणा पर आगे बढ़ने की कोशिश में जुटे हुए हैं। नवरात्र में माता चिंतपूर्णी में माथा टेकने के अलावा अकाली दल के प्रधान इन दिनों मंदिरों के चक्कर लगा रहे है।

वहीं, सुखबीर बादल लगातार हिंदुओं को महत्व भी दे रहे हैं। कांग्रेस और भाजपा से टूट कर आने वाले नेताओं को न सिर्फ वह पार्टी में शामिल कर रहे हैं बल्कि हिंदू नेताओं को तरजीह भी दे रहे है। अकाली दल के प्रधान यह बात अच्छी तरह से जानते हैं कि भाजपा के साथ गठबंधन में रहते हुए उन्हें हिंदुओं की वोटें मिल जाती थीं, लेकिन गठबंधन टूटने के बाद इसकी संभावना कम थी। यही कारण है कि नवरात्र में जब सुखबीर माता चिंतपूर्णी के दर्शन करने के लिए गए तो सिख समुदाय में इसकी चर्चा हुई लेकिन वह लगातार मंदिरों के चक्कर लगा रहे हैं। भाजपा से बर्खास्त किए जाने के बाद अकाली दल ने अनिल जोशी को पार्टी में लिया। जोशी की बतौर हिंदू नेता अच्छी छवि रही है। भाजपा को हिंदुओं का ही आसरा भारतीय जानता पार्टी पूर्ण रूप से हिंदुओं और अनुसूचित जाति पर निर्भर है।

कृषि कानून के विरोध में हो रहे किसान आंदोलन के कारण भाजपा को इस बात की कतई उम्मीद नहीं है कि गांवों में व सिखों में उन्हें तरजीह मिलनी है। यही कारण है कि भाजपा ने अपनी नजर उन 45 सीटों पर लगा रखी है जहां पर 60 फीसद से अधिक हिंदू आबादी है। वहीं, 38 सीटें वह हैं जहां पर 60 फीसदी से अधिक हिंदू और अनुसूचित जाति की आबादी है। भाजपा यह बात अच्छी तरह से समझ रही है कि चुनाव से पहले अगर कृषि कानूनों का हल नहीं निकल पाया तो उनके पास सीमित विकल्प होंगे। ऐसे में शहरी हिंदू ही उनके लिए आक्सीजन का काम करेगा। एक तबका जहां किसानों के साथ खड़ा है वहीं, एक तबका ऐसा भी है जोकि किसान आंदोलन के कारण परेशानी का सामना कर रहा है।

व्यापारी वर्ग भले ही खुलकर बोलने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा है, लेकिन चुनाव में वह भाजपा के साथ ही खड़ा होता है। वहीं, कांग्रेस ने चाहे एससी को मुख्यमंत्री बनाकर भाजपा का एससी कार्ड छीनने की कोशिश की हो लेकिन एससी वर्ग में भाजपा ने तेजी से पैठ बनाई है। ऐसे में भाजपा 2022 को लेकर एससी और हिंदुओं पर नजर टिकाए हुए है।

मुख्यमंत्री का चेहरा न होना पड़ रहा है भारी

आम आदमी पार्टी पर मुख्यमंत्री पद का चेहरा न होना भारी पड़ रहा है। आपसी खींचतान के कारण आप बिखरी हुई नजर आ रही है। आप के सामने सबसे बड़ी चुनौती मुख्यमंत्री के चेहरे को लेकर है। क्योंकि भगवंत मान खुद को मुख्यमंत्री का चेहरा बनाना चाहते है लेकिन पार्टी ने अभी तक इसकी कोई घोषणा नहीं की है। मुख्यमंत्री का चेहरा भले ही भारतीय जनता पार्टी के पास भी नहीं हो लेकिन इसका सबसे अधिक दबाव आप पर दिखाई दे रहा है।

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