प्रो. दिगंबर को एटीएस पब्लिक सर्विस अवॉर्ड से नवाजा

पीजीआइ के पलमोनरी मेडिसिन विभाग के हेड व सीनियर प्रोफेसर डॉ. दिगंबर को एटीएस पब्लिक सर्विस अवॉर्ड-2021 से नवाजा गया है।

By JagranEdited By: Publish:Fri, 30 Apr 2021 08:56 AM (IST) Updated:Fri, 30 Apr 2021 08:56 AM (IST)
प्रो. दिगंबर को एटीएस पब्लिक सर्विस अवॉर्ड से नवाजा
प्रो. दिगंबर को एटीएस पब्लिक सर्विस अवॉर्ड से नवाजा

जागरण संवाददाता, चंडीगढ़ : पीजीआइ के पलमोनरी मेडिसिन विभाग के हेड व सीनियर प्रोफेसर डॉ. दिगंबर को एटीएस पब्लिक सर्विस अवॉर्ड-2021 से नवाजा गया है। ये अवॉर्ड उन्हें अमेरिकन थोरैसिक सोसायटी ने दिया है। लोक सेवा पुरस्कार इनडोर और आउटडोर वायु गुणवत्ता में सुधार, तंबाकू के उपयोग के उन्मूलन, फेफड़ों की बीमारी की रोकथाम, संचार योग्य श्वसन रोगों के प्रबंधन में सुधार या नैतिक प्रसव में सुधार और संबंधित क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवा की पहुंच से संबंधित सार्वजनिक स्वास्थ्य में योगदान को मान्यता देता है। ये अवार्ड फेफड़ों की बीमारियों, नींद की बीमारी या महत्वपूर्ण देखभाल के लिए दिया जाता है। प्रो दिगंबर बेहेरा देश में पलमोनरी और क्रिटिकल केयर में डीएम सुपर-स्पेशियलिटी कोर्स (पोस्ट-डॉक्टोरल) शुरू करने वाले अग्रदूतों में से एक थे। उन्होंने एक स्टेट-ऑफ-द-आर्ट विभाग, एक डब्ल्यूएचओ सहयोग केंद्र फॉर क्रॉनिक रेस्पिरेटरी डिजीज में रिसर्च एंड कैपेसिटी बिल्डिग का नेतृत्व किया था। उनके मार्गदर्शन में इस विभाग ने पलमोनोलॉजी के विभिन्न क्षेत्रों पर शोध किया। वह संसाधन सीमित सेटिग में सीओपीडी और अस्थमा जैसी पुरानी श्वसन बीमारियों के प्रबंधन के लिए दिशानिर्देश विकसित करने में शामिल है।

तपेदिक और फेफड़े के कैंसर के विशेष संदर्भ में नैदानिक अनुसंधान के क्षेत्र में उनका योगदान सराहनीय है। इन प्रमुख क्षेत्रों के अलावा, उनके अन्य क्षेत्रों के अनुसंधान में इनडोर वायु प्रदूषण, आइएलडी और सीओपीडी और अस्थमा शामिल हैं। चिकित्सा के क्षेत्र में उनके योगदान के आधार पर उन्हें 2020 में भारत सरकार ने पद्मश्री से सम्मानित किया गया है। डॉ. बेहेरा के 30 से अधिक राष्ट्रीय और आठ अंतरराष्ट्रीय पुरस्कारों के साथ 580 से अधिक शोध प्रकाशित हैं। उन्होंने श्वसन रोगों और टीबी, अस्थमा और फेफड़ों के कैंसर पर दो पाठ्य पुस्तकें लिखी हैं। नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ ट्यूबरकुलोसिस एंड रेस्पिरेटरी डिजीज के निदेशक के रूप में तपेदिक के नैदानिक और बुनियादी अनुसंधान कार्यो पर उनका मुख्य अध्ययन है।

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