Punjab Assembly Election 2022: नशे की राजनीति, सत्ता का सुरूर, कांग्रेस खुुद ही हुई अपने मुद्दे की शिकार

Punjab Assembly Election 2022 पंजाब में अगले साल होनेवाले विधानसभा चुनाव में भी नशा बड़ा मुद्दा दिख रहा है। दरअसल पंजाब मेंं पार्टियां नशे की राजनीति करती रही हैं और इसमें सत्‍ता का गुरुर भी दिख रहा है। इन सबके बीच कांग्रेस को अपना ही मुद्दा भारी पड़ रहा है।

By Sunil Kumar JhaEdited By: Publish:Tue, 30 Nov 2021 01:52 PM (IST) Updated:Tue, 30 Nov 2021 06:50 PM (IST)
Punjab Assembly Election 2022: नशे की राजनीति, सत्ता का सुरूर, कांग्रेस खुुद ही हुई अपने मुद्दे की शिकार
पंजाब में नशा एक बार फिर चुनावी मुद्दा बन गया है। (जागरण)

चंडीगढ़, [कैलाश नाथ]। Punjab Assembly Election 2022:  राजनीति में अतीत कभी पीछा नहीं छोड़ता। 2015 की बात है, जब कांग्रेस के नेता राहुल गांधी ने सबसे पहले पंजाब में ड्रग्स का मुद्दा उठाया था। सत्तारूढ़ शिरोमणि अकाली दल और भारतीय जनता पार्टी ने इसके लिए राहुल गांधी का मजाक भी बनाया, लेकिन धीरे-धीरे यह मुद्दा इतना गर्म होता गया कि बेअदबी की तरह नशा भी राजनीति के केंद्र में आ गया। इसी दौरान ‘उड़ता पंजाब’ फिल्म भी बनी, जिसके बाद आम आदमी पार्टी ने ड्रग्स को 2017 के विधानसभा चुनाव में अपना प्रमुख राजनीतिक हथियार बनाया। पंजाब विधानसभा चुनाव 2022 (Punjab Assembly Election 2022) फिर चुनावी मुद्दा बनता दिख रहा है।   

2017 विधानसभा चुनाव के दौरान आम आदमी पार्टी (AAP) ने नशे के मामले में तत्कालीन कैबिनेट मंत्री बिक्रम सिंह मजीठिया पर जम कर हमले बोले। उन्हें जेल में डालने तक की बातें की गईं। हालांकि, आप के चुनाव हारने के बाद आप के राष्ट्रीय संयोजक अर¨वद केजरीवाल ने मजीठिया से लिखित में माफी भी मांग ली। 2022 के चुनाव में नशे का मुद्दा एक बार फिर गर्मा गया है। अंतर केवल इतना है, 2017 में कांग्रेस और आप ने इसे मुद्दा बनाया था, अब कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू ही विपक्ष की भूमिका निभा रहे हैं। नशा पांच वर्ष पहले सामाजिक मुद्दा बनकर उभरा था, लेकिन अब यह केवल राजनीतिक मुद्दा बनकर रह गया है।

मुख्यमंत्री बदला, लेकिन नहीं निकला समाधान

चार हफ्ते में नशे की कमर तोड़ने का दावा करके मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह 2017 में सत्ता में आए थे, लेकिन यही दावा उनके कुर्सी से हटने का कारण बन गया। कैप्टन ने नशे के मामलों की जांच के लिए स्पेशल टास्क फोर्स (एसटीएफ) का गठन किया। हाई कोर्ट के कहने पर एसटीएफ ने नशे के मामले की जांच भी की और हाईकोर्ट को सीलबंद लिफाफे में रिपोर्ट सौंपी। इस रिपोर्ट से पहले तक राजनीतिक रूप से सब कुछ ठीक था, लेकिन सीलबंद रिपोर्ट हाई कोर्ट को सौंपने के बाद नशे का मुद्दा हाशिए पर आने लगा। क्योंकि, हाई कोर्ट में यह रिपोर्ट खुली ही नहीं।

कांग्रेस का एक बड़ा वर्ग हमेशा ही यह चाहता रहा है कि यह रिपोर्ट जल्द खोली जाए। धीरे-धीरे मामला ‘कैप्टन और बादलों’ के बीच मिलीभगत का रूप लेने लगा। इस मामले ने इतना तूल पकड़ा कि कांग्रेस के मंत्रियों और विधायकों ने कैप्टन अमरिंंदर सिंह के खिलाफ बगावत कर दी और मुख्यमंत्री के खिलाफ अविश्वास प्रकट कर दिया। कैप्टन के 52 वर्ष के राजनीतिक करियर में यह मुद्दा 'कलंक' लगाने वाला रहा। उन्हें मुख्यमंत्री के पद से हटना पड़ा। कैप्टन के बाद भले ही सरकार की कमान चरणजीत सिंह चन्नी के हाथों में आई, लेकिन मुद्दा आज भी जस का तस ही बना हुआ है।

तो विपक्ष की भूमिका में हैंं नवजोत सिंह सिद्धू

नवजोत सिंह सिद्धू भले ही सत्ता पक्ष कांग्रेस के प्रदेश प्रधान हों, लेकिन वह जो मुद्दे उठाते हैं, उसमें उनके विपक्षी पार्टी के नेता होने की झलक साफ दिख रही है। इस मामले में सब कुछ एसटीएफ की रिपोर्ट के इर्द-गिर्द ही सिमट कर रह गया है। नवजोत सिद्धू ने तो यहां तक घोषणा कर दी है कि अगर एसटीएफ की रिपोर्ट को सार्वजनिक नहीं किया जाता है तो वह मरणव्रत पर बैठ जाएंगे। इसके विपरीत विपक्षी पार्टी आप ने ड्रग्स मामले पर चुप्पी साध रखी है। 2017 में ड्रग्स के प्रमुख हथियार बनाकर चुनाव लड़ने वाली आप केजरीवाल के माफी प्रकरण के बाद नशे पर कुछ भी बोलने को तैयार नहीं है। यही स्थिति भारतीय जनता पार्टी की भी है।

शिरोमणि अकाली दल के प्रधान सुखबीर बादल ड्रग्स मामले की जांच हाई कोर्ट के सिटिंग जज से करवाने की बात तो करते हैं, लेकिन उनका पूरा फोकस इस बात को लेकर है कि सिद्धू कैसे एसटीएफ की रिपोर्ट को सार्वजनिक करने और मरणव्रत पर बैठने की बात कर रहे हैं। सुखबीर बादल ने तो यहां तक आरोप लगा दिए हैं कि सरकार मजीठिया को ड्रग्स के झूठे मामले में फंसाने की तैयारी कर रही है।

कमेटी खोलेगी राज

सिद्धू की मरणव्रत की घोषणा के बाद गृह मंत्री रंधावा ने मुख्य सचिव अनिरुद्ध तिवारी की अगुवाई में जो तीन सदस्यीय कमेटी बनाई है, उसमें प्रधान सचिव (गृह) व डीजीपी भी शामिल हैं। इसकी रिपोर्ट एक सप्ताह में आ जाएगी। इससे बाद काफी हद तक तस्वीर स्पष्ट हो जाएगी।यह चार बिंदुओं की जांच करेगी, जो इस प्रकार हैं- - हाई कोर्ट को सीलबंद रिपोर्ट सौंपने के बाद एसटीएफ ने ड्रग्स मामले में काम करना बंद कर दिया, उसे किसने रोका था। - पटियाला और फतेहगढ़ साहिब के ड्रग्स मामलों को एसटीएफ ने टेकओवर क्यों नहीं किया। - गृह विभाग की ओर से एसटीएफ को बार-बार पत्र जारी करने के बावजूद उन्होंने कोई जवाब क्यों नहीं दिया - एजी दफ्तर ने एसटीएफ की रिपोर्ट हाईकोर्ट में जाने के बाद उसे खुलवाने के लिए क्यों नहीं प्रयास किए।

एनसीआरबी की रिपोर्ट चिंताजनक

नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की रिपोर्ट भी पंजाब सरकार की नीयत पर सवाल खड़े कहती है। रिपोर्ट के अनुसार चार्जशीट दाखिल करने के मामले में पंजाब राष्ट्रीय औसत से पीछे है। राष्ट्रीय औसत 85.2 प्रतिशत है, जबकि पंजाब में यह औसत 82 प्रतिशत है। यह रिपोर्ट दो माह पहले जारी की गई थी।

क्या है रिपाेर्ट में - 2019 में नशा तस्करी और ड्रग्स का प्रयोग करने के मामलों की संख्या 11,536 थी, जो 2020 में गिर कर 6,909 रह गई है। - इन मामलों में करीब 40 प्रतिशत की गिरावट आई है। - 2020 में ड्रग्स तस्करी के 4909 मामले और ड्रग्स का प्रयोग करने के 1870 मामले दर्ज किए गए। - 2017 से लेकर 2020 तक एनडीपीएस एक्ट के तहत 41,855 केस दर्ज हुए।

मार्च 2020 में कोविड के कारण पंजाब में कर्फ्यू और पूर्ण लाकडाउन लग गया था। इस बीच भी नशा तस्करी के मामले सामने आते रहे, जबकि विपक्ष सरकार पर यह आरोप लगा रहा है कि मामले ही कम दर्ज किए जा रहे हैं।

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