ब्लैक फंगस के इलाज की एंटी फंगल दवा की कालाबाजारी शुरू

ब्लैक फंगस यानी म्यूकरमाइकोसिस के इलाज में काम आने वाली एंटी फंगल दवाइयों व इंजेक्शन की कालाबाजारी की जा रही है। शहर के 95 फीसद केमिस्ट शॉप पर एंटी फंगल दवा व इंजेक्शन उपलब्ध नहीं हैं जिस कारण अस्पतालों में आ रहे इस बीमारी के मरीजों के इलाज में डाक्टरों को दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। कुछ लोग इन एंटी फंगल दवा व इंजेक्शन की कालाबाजारी कर रहे हैं।

By JagranEdited By: Publish:Tue, 18 May 2021 06:23 AM (IST) Updated:Tue, 18 May 2021 06:23 AM (IST)
ब्लैक फंगस के इलाज की एंटी फंगल दवा की कालाबाजारी शुरू
ब्लैक फंगस के इलाज की एंटी फंगल दवा की कालाबाजारी शुरू

विशाल पाठक, चंडीगढ़

ब्लैक फंगस यानी म्यूकरमाइकोसिस के इलाज में काम आने वाली एंटी फंगल दवाइयों व इंजेक्शन की कालाबाजारी की जा रही है। शहर के 95 फीसद केमिस्ट शॉप पर एंटी फंगल दवा व इंजेक्शन उपलब्ध नहीं हैं, जिस कारण अस्पतालों में आ रहे इस बीमारी के मरीजों के इलाज में डाक्टरों को दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। कुछ लोग इन एंटी फंगल दवा व इंजेक्शन की कालाबाजारी कर रहे हैं। कई केमिस्ट संचालक इनकी स्टॉकिग कर महंगे दाम पर बेच रहे हैं, जिस कारण बाजार में इन दवाइयों व इंजेक्शन की भारी कमी सामने आ रही है। पीजीआइ के माइक्रोबायोलॉजी विभाग के हेड प्रो. अरुणालोक चक्रवर्ती ने खुद बताया कि यहां म्यूकरमाइकोसिस के जो मरीज इलाज के लिए आ रहे हैं। वे खुद उनके लिए दवाइयों व इंजेक्शन के बारे में अपने जानकारों से संपर्क कर रहे हैं, लेकिन इन एंटी फंगल दवाइयों और इंजेक्शन का स्टॉक कहीं नहीं मिल रहा है। पहले सिर्फ उत्तर भारत में थी ये बीमारी

प्रो. अरुणालोक चक्रवर्ती ने बताया कि ब्लैक फंगस की बीमारी पहले सिर्फ उत्तर भारत के लोगों में पाई जाती थी, लेकिन कोरोना संक्रमण और स्टेरॉयड के अधिक इस्तेमाल के चलते ये बीमारी देश भर में पैर पसार रही है। जिस कारण एंटी फंगल दवाइयों व इंजेक्शन की मांग बढ़ गई है। ऊपर से इसका इलाज और इसकी दवाइयां व इंजेक्शन महंगे हैं। ऐसे में इनकी जमकर कालाबाजारी की जा रही है। प्रशासन इस ओर कब उठाएगा कदम

रेमडेसिविर इंजेक्शन की कालाबाजारी पर रोक लगाने के लिए प्रशासन ने कदम उठाए थे। अब शहर में ब्लैक फंगस के मरीज बढ़ रहे हैं। ऐसे में इस बीमारी के इलाज में काम आने वाली दवाइयों और इंजेक्शन की स्टॉकिग और कालाबाजारी को रोकने के लिए चंडीगढ़ प्रशासन और स्वास्थ्य विभाग कब कदम उठाएगा। हालात ये हैं कि पीजीआइ में रोजाना इस बीमारी के तीन से चार मरीज आ रहे हैं। इसके अलावा शहर के सरकारी अस्पताल गवर्नमेंट मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल में भी ब्लैक फंगस के मरीजों की संख्या बढ़ने लगी है। पीजीआइ ने कहा स्टेरॉयड का ज्यादा इस्तेमाल गलत

कोरोना संक्रमित मरीजों को स्टेरॉयड की ज्यादा मात्रा में डोज देने के कारण म्यूकरमाइकोसिस का खतरा बढ़ रहा है। पीजीआइ ने भी इस पर निर्देश जारी किए हैं। निर्देश के मुताबिक जो कोरोना संक्रमित डायबिटीज के मरीज हैं। उन्हें टेबलेट की जगह इंसुलिन देने के लिए कहा गया है। इसके अलावा ऐसे मरीजों को स्टेरॉयड कि जो डोज दी जानी है वह 6 मिलीग्राम डेक्सामेथासोन होनी चाहिए। यह कहना है पीजीआइ के माइक्रोबायोलॉजी विभाग के हेड प्रोफेसर अरुणालोक चक्रवर्ती का। उन्होंने बताया कि कोरोना संक्रमित मरीजों को 5 से 10 दिन तक ही स्टेरॉयड देना चाहिए। इसके बावजूद ऐसे मरीजों को 10 से 15 दिन तक स्टेरॉयड दिया जा रहा है। जोकि बाद में ब्लैक फंगस यानी म्यूकरमाइकोसिस का कारण बन रहा है। ब्लैक फंगस के इलाज में काम आती है ये दवाइयां व इंजेक्शन

-एमफोटेरिसिन बी

-पोसाकोनजोल

-इसाव्यूकोनजोल

-पोसाकोनजोल कोट्स

ब्लैक फंगस की बीमारी में जो दवाइयां व इंजेक्शन काम आते हैं वह शहर के 95 फीसद केमिस्ट शॉप पर ये दवाइयां उपलब्ध नहीं हैं। पीछे से स्टॉक नहीं आ रही है। जबकि रोजाना सात से आठ लोग इन एंटी फंगल दवाइयों के बारे में पूछने के लिए आते हैं। यहां तक की दूसरे राज्यों से भी लोग इसके लिए संपर्क कर रहे हैं।

अजय, सिटी केमिस्ट, सेक्टर-20

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