बदले-बदले से सरकारः नाराजगी पर किसी ने नहीं दिया ध्यान, CM के खुले दरबार में ठंडे पड़े बगावती सुर
विधायक जैसे ही मिलने पहुंचे फोटो क्लिक हुई और सोशल मीडिया पर आ गई। इनकी नाराजगी दूर हुई या नहीं यह तो पता नहीं लेकिन फोटो की चर्चा खूब रही।
चंडीगढ़, जेएनएन। नया साल नई उम्मीद के साथ चढ़ा। मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने भी नए साल में अपने सरकारी आवास में वापसी की। इसके साथ ही उन्होंने अपने घर के द्वार सभी के लिए खोल दिए। दरवाजा खुला, तो बड़ी संख्या में मंत्री, अफसर, विधायक उनसे मिलने पहुंचे। कैप्टन से मिलने वालों में वह लोग भी शामिल थे जो पानी पी-पीकर सरकार व मुख्यमंत्री को कोस रहे थे। सरकार की कार्यशैली पर सवाल उठाने वाले विधायक मदन लाल जलालपुर व हरदयाल सिंह कंबोज भी मुख्यमंत्री से मिलने के लिए कतार में खड़े हो गए। उन्होंने सीएम को चॉकलेट भी गिफ्ट की। इन विधायकों ने एक माह तक अपनी ही सरकार के विरुद्ध झंडा उठा रखा था। इसके बावजूद मुख्यमंत्री ने इनकी नाराजगी पर ध्यान नहीं दिया। विधायक जैसे ही मिलने पहुंचे, फोटो क्लिक हुई और सोशल मीडिया पर आ गई। इनकी नाराजगी दूर हुई या नहीं, यह तो पता नहीं, लेकिन फोटो की चर्चा खूब रही।
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बगावत का संयोग
शिरोमणि अकाली दल में यह बेहद अजीब संयोग है। अकाली दल की सरकार में जो भी वित्तमंत्री बनता है, वह पार्टी के खिलाफ बगावत का झंडा उठा लेता है। खामी पार्टी के नेता में है या वित्तमंत्री की कुर्सी में, लेकिन है यह हकीकत। पहले मनप्रीत बादल ने सुखबीर बादल के खिलाफ झंडा बुलंद किया और अकाली दल छोड़ दिया। वह तब अकाली सरकार में वित्तमंत्री थे। अब परमिंदर सिंह ढींडसा ने अकाली दल विधायक दल से इस्तीफा दे दिया है। वह सुखबीर बादल के खिलाफ बगावत पर उतर आए हैं। मनप्रीत के बाद ढींडसा भी अकाली दल की सरकार में वित्तमंत्री रहे। यह भी खास है कि अकाली दल के दोनों ही पूर्व वित्त मंत्रियों ने सुखबीर बादल से सीधी टक्कर ली। मनप्रीत अब कांग्रेस सरकार में वित्तमंत्री हैं, तो परमिंदर ढींडसा को अपना राजनीतिक भविष्य संवारना है।
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विपक्ष की उल्टी धारा
आम तौर पर विपक्ष सरकार को घेरता रहता है। विपक्ष पीछे-पीछे और सरकार आगे-आगे भागती नजर आती है, लेकिन सत्ता से बाहर जाने के करीब तीन साल बाद पंजाब में धारा उलटी बह रही है। पहली बार अपनी सरकार के दौरान उठाए गए कदम पर विपक्ष कठघरे में खड़ा नजर आ रहा है। मामला है महंगी बिजली का। सरकार के बिना किसी प्रयास के ही अकाली दल के प्रधान सुखबीर बादल जनता की अदालत में कठघरे में हैं। उन्होंने अपना दामन बचाने के लिए गेंद कांग्रेस में पाले में डालने की कोशिश की। बात पते की है कि वे निजी थर्मल प्लांटों से किए समझौते के लिए खुद को पाक-साफ बता रहे हैं। महंगी बिजली का ठीकरा सरकार पर फोड़ रहे हैं। वह पहली बार सामने आए हैं। अन्यथा ऐसा होता नहीं था। अभी बिजली की यह लड़ाई लंबी खिंचती दिख रही है। आप भी इसमें कूद गई है।
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कांग्रेस कल्चर की रंगत
बरिंदर ढिल्लों यूथ कांग्रेस के नए प्रदेश प्रधान चुने गए हैं। अभी उन्होंने पदभार भी नहीं संभाला था कि ‘कांग्रेसी कल्चर’ में ढलने लगे। पदभार संभालने के समारोह के लिए युवा कांग्रेस प्रधान की तरफ से फोन किए गए। फोन कोई दूसरा मिलाता और कहता ‘यूथ कांग्रेस के प्रदेश प्रधान बरिंदर ढिल्लों आपसे बात करना चाहते हैं।’ ढिल्लों के ये फोन चर्चा का विषय बने कि अभी-अभी यूथ कांग्रेस के प्रधान बने हैं, तो पीए फोन मिलाने लगा है। अगर कहीं विधायक बन गए होते तो क्या होता। बात यह है कि प्रदेश में सरकार अपनी हो, मुख्यमंत्री उनके पदभार ग्रहण समारोह में हिस्सा लेने के लिए आने वाले हों तो कांग्रेसी कल्चर में ढलना तो बनता ही है। युवा कांग्रेस से आने वाले कई नेता मंत्री बन चुके हैं। इसलिए अभी से अभ्यास शुरू हो गया है।