पंजाब में कई राजनीतिक समीकरण बिगाड़ेगी शिअद-भाजपा गठबंधन की टूट

पंजाब में शिरोमणि अकाली दल और भाजपा का गठबंधन टूटने से सियासी तस्‍वीर में काफी बदलाव होगा। दोनों दलाें के गठबंधन के टूटने के बाद राज्‍य में कई राजनीतिक समीकरण बदलेंगे। इससे 2022 में होनेवाले विधानसभा चुनाव पर भी असर पड़ेगा।

By Sunil Kumar JhaEdited By: Publish:Mon, 28 Sep 2020 06:00 AM (IST) Updated:Mon, 28 Sep 2020 07:17 AM (IST)
पंजाब में कई राजनीतिक समीकरण बिगाड़ेगी शिअद-भाजपा गठबंधन की टूट
पंजाब भाजपा अध्‍यक्ष अश्विनी शर्मा और शिअद अध्‍यक्ष सुखबीर सिंह बादल। (फाइल फोटो)

चंडीगढ़, [इन्द्रप्रीत सिंह]। शिरोमणि अकाली दल और भारतीय जनता पार्टी का 24 साल पुराने गठबंधन के टूटने का पंजाब की सियासत पर व्‍यापक असर पड़ेगा। इसका असर गांव से लेकर राष्ट्रीय स्तर पर असर पड़ना लाजिमी है। पंजाब में सक्रिय सभी राजनीतिक दलों के पर भी इसका प्रभाव पड़ना लगभग तय माना जा रहा है। पड़ोसी राज्यों में भी इसका असर देखने को मिल सकता है। राजनीतिक गलियारों में एक सवाल उठ रहा है कि क्या गठबंधन टूटने का असर 2022 के विधानसभा पर भी पड़ेगा। 

राष्ट्रीय की बजाए अब प्रांतीय मुद्दों पर होगा अकाली दल को फोकस

1998 में जब राजग के गठन में अकाली दल के संरक्षक और पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल की अहम भूमिका रही। उन्होंने इनेलो नेता ओम प्रकाश चौटाला, चंद्रबाबू नायडू और नितीश कुमार को एक मंच पर लाने के लिए अहम भूमिका निभाई। अब गठबंधन टूटने का असर प्रांतीय स्तर राजनीति पर पर पड़ेगा। क्योंकि अकाली दल की कमान अब सुखबीर बादल के हाथ में है और उन्होंने राजग से नाता तोड़ लिया है।

भाजपा गांवों में पैर जमाने के लिए आगे बढऩे की तैयारी में

पार्टी सूत्रों के अनुसार अकाली दल दो पिछले कुछ समय से राष्ट्रीय राजनीति में ज्यादा फोकस कर रहा था अब उसका ध्यान क्षेत्रीय मुद्दों ज्यादा होगा। इसी रणनीति के तहत अकाली दल आगे बढ़ेगा। कृषि विधेयकों को लेकर पार्टी ने जिस प्रकार आक्रामक भूमिका अपना रखी है वह उसके बिखरे हुए वोट बैंक को समेटने में काम कर सकती है।

गांव स्तर पर पार्टी का काडर भाजपा से नाता तोडऩे को लेकर खुश है। अब वह खुलकर भाजपा की केंद्रीय नीतियों की आलोचना कर सकता है जो कि पहले वह नहीं कर पा रहा था। सुखबीर बादल के खुद के बयान जिस तरह से तीखे होते जा रहे हैं उसे देखकर पार्टी काडर की स्थिति का अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं है।

आप के हाथ से फिसल सकता है दूसरे दलों से नाराज होकर आया काडर

वहीं, दूसरी तरफ गठबंधन टूटने को भाजपा काडर एक संभावना के रूप में देख रहा है। क्योंकि, दो दशक पूर्व केंद्र में भाजपा की जो स्थिति थी उसे देखते हुए कोई दल भाजपा के साथ जुडऩा नहीं चाहता था परंतु अब स्थितियां बदल गई हैैं। पिछले दो लोकसभा चुनाव में भाजपा ने बेहतर प्रदर्शन किया है। केंद्र में भाजपा के पास इतना बहुमत है कि उसे किसी भी सहयोगी दल की जरूरत नहीं है।

आप के हाथ से फिसल जाएंगे दूसरे दलों के नाराज नेता

गठबंधन टूटने का असर आम आदमी पार्टी पर भी होना लाजमी है। पार्टी दूसरी पार्टियों के नाराज काडर के कारण अपने पांव लगातार पंजाब में फैला रही है। पंजाबी शुरू से ही ऐसे केंद्र सरकार से टकराने वाली पार्टियों के साथ रहे हैैं। अब जब अकाली दल इस कमान को फिर से संभाल रहा है और लगाता फैडरल ढांचे के मुद्दे खड़े कर रहा है तो निश्चित तौर पर उसका खिसका हुआ वोट बैंक जो आम आदमी पार्टी या दूसरे दलों में चला गया था वापिस आ सकता है। दरअसल, आम आदमी पार्टी भी इतने सालों से अपने आप से ज्यादा लड़ती नजर आ रही है। पार्टी विधायकों का एक बड़ा गुट अलग हो गया है। उनके पास भी अब अकाली दल में जाने के रास्ते खुल गए हैं।

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