प्रश्नपत्रों की प्रिंटिंग पर खर्चे लाखों रुपये, अब परीक्षा की रद

सीबीएसई के बाद पंजाब स्कूल शिक्षा बोर्ड (पीएसईबी) ने पांचवीं आठवीं और दसवीं की परीक्षाएं रद कर दी हैं।

By JagranEdited By: Publish:Fri, 16 Apr 2021 08:26 AM (IST) Updated:Fri, 16 Apr 2021 08:26 AM (IST)
प्रश्नपत्रों की प्रिंटिंग पर खर्चे लाखों रुपये, अब परीक्षा की रद
प्रश्नपत्रों की प्रिंटिंग पर खर्चे लाखों रुपये, अब परीक्षा की रद

जागरण संवाददाता, मोहाली : सीबीएसई के बाद पंजाब स्कूल शिक्षा बोर्ड (पीएसईबी) ने पांचवीं, आठवीं और दसवीं की परीक्षाएं रद कर दी हैं। हालांकि ये फैसला पंजाब सरकार की ओर से बैठक के बाद आया है। लेकिन परीक्षाओं को लेकर बोर्ड की ओर से पूरी तैयारी की जा चुकी थी। प्रश्नपत्रों से लेकर परीक्षाओं के लिए सेंटर सब फाइनल हो चुके थे। ध्यान रहे कि पिछले माह ही बोर्ड ने परीक्षाओं की डेटशीट बदली थी। बोर्ड के चेयरमैन डा. योगराज ने कहा कि इस बावत फैसला हो गया है। 12वीं की परीक्षाओं को टाला जाएगा या नहीं फिलहाल यह फैसला नहीं हुआ है।

उधर, पीएसइबी कर्मचारी यूनियन ने परीक्षा रद होने पर सरकार पर हमला बोला। पीएसईबी यूनियन के अध्यक्ष परमिदर सिंह खंडूरा ने कहा कि बोर्ड पहले ही वित्तीय संकट से जूझ रहा है। सरकार के पास बोर्ड का साढ़े तीन सौ करोड़ रुपये बकाया है। अगर परीक्षाएं नहीं होगी तो फीसें कहा से आएंगी। कर्मचारियों को वेतन देने के लिए मुश्किल होगी। सरकार बोर्ड के लिए कोई आर्थिक पैकेज घोषित करे। परमिदर सिंह ने कहा कि बीमारी को लेकर जो फैसला किया गया है वे किसी हद तक ठीक है, लेकिन इससे होनहार स्टूडेंट्स का तो नुकसान होगा, ही साथ ही एवरेज बच्चे भी तय नहीं कर पाएंगे कि उन्हें क्या करना है।

ये जिदगी का नया तजुर्बा भविष्य तय करना होगा

ये जिदगी का एक नया तजुर्बा है। दसवीं की परीक्षा अहम होती है। ये एक बेस है। इससे पता चलता है कि स्टूडेंट ने आगे क्या करना है। अब अभिभावकों को चाहिए कि वे अपने बच्चे की क्षमता को देख कर आगे की भविष्य सुनिश्चित करें।

राम कुमार, अध्यापक परीक्षाएं रद होने से होनहार और आम बच्चे एक ही लीक पर आ गए हैं। परीक्षाएं होनी चाहिए थी चाहे कुछ कड़े नियम होते। लेकिन महामारी है। इस लिए जो फैसला सरकार ने लिया होगा सोच समझ कर लिया होगा। बच्चों को अब आगे का सोचना होगा क्योंकि दसवीं भविष्य की नींव होती है। इसलिए अपनी क्षमता के अनुसार आगे को सोचें।

जीएस बेदी, शिक्षक

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