कारगिल शहीद की मां को दस साल बाद मिली पेंशन, बेटे के शहीद होने के बाद 80 साल की बुजुर्ग कर रही थी मजदूरी
पंजाब के जिला मानसा की रहने वाली 80 साल की बुजुर्ग जिसका बेटा कारगिल युद्ध में शहीद हो गया था उसे अपना पेट पालने के लिए मजदूरी करनी पड़ रही थी। मामला एक्स सर्विसमैन ग्रिवेंसिज सेल मोहाली के पास पहुंचा जिसके बाद बुजुर्ग को 10 साल बाद पेंशन लगी है।
मोहाली, [रोहित कुमार]। देश के लिए अपने प्राणों का बलिदान देने वाले एक (Kargil martyr) कारगिल शहीद बेटे की 80 साल की बुजुर्ग मां मेहनत मजदूरी करके अपना गुजरा करने को मजबूर है। इस बुजुर्ग महिला को सरकार (govt) की तरफ से किसी प्रकार की आर्थिक सहायता नहीं दी जा रही थी। इसके बाद मामला मोहाली (Mohali) की एक्स सर्विसमैन ग्रिवेंसिज सेल के पास पहुंचा तो पंजाब के मानसा जिले की रहने वाली बुजुर्ग महिला को उसका हक पेंशन (Pensions) दिलवाने के लिए दिन-रात एक कर दिया। लंबे प्रत्यनों के बाद कारगिल शहीद लांस नायक निर्मल सिंह की मां जगीर कौर को पेंशन मिली है।
सेल के अध्यक्ष लेफ्टिनेंट कर्नल एसएस सोही ने बताया आर्मी ट्रिब्यूनल ने इस मामले में शहीद की मां को 8815 रुपये प्रति माह पेंशन लगाई है। सोही ने कहा कि वे बाकी के बेनीफिट दिलवाने के लिए भी लड़ाई लड़ रहे हैं। उम्मीद है कि बाकी सभी सुविधाएं भी जल्द शहीद की बुजुर्ग मां को मिलेगी।
शहीद की पत्नी साथ ले गई सबकुछ
सोही ने बताया कि कि ये मामला 30 अगस्त 2020 को उनके पास पहुंचा था। जगीर कौर के पति की भी मौत हो चुकी है। बुजुर्ग की इस हालत के बारे में उन्हें एक वीडियो के जरीये जानकारी मिली। 80 साल की बुजुर्ग लेबर का काम कर रही है। हालांकि शहीद निर्मल सिंह के परिवार को सेना और पंजाब सरकार की ओर से बनती सहायता दी गई थी। लेकिन ये सबकुछ शहीद की विधवा पत्नी परमजीत कौर अपने साथ ले गई।
निर्मल सिंह के शहीद होने के बाद भी नहीं लौटी पत्नी
शहीद निर्मल सिंह की पत्नी शादी के बाद कभी भी अपने सुसराल में नहीं रही। निर्मल सिंह ने पत्नी को वापस घर लाने के लिए कई बार पंचायत लेकर अपने ससुराल भी गया, लेकिन परमजीत नहीं मानी। पत्नी को वापस लाने के लिए निर्मल सिंह ने केस भी दायर किया था। इसके बाद आठ जून 1999 को कारगिल युद्ध के दौरान निर्मल सिंह शहीद हो गया। सोही ने बताया कि निर्मल की शहीदी के बाद पत्नी परमजीत कौर सभी बेनीफिट भी ले गई और दूसरी शादी भी कर ली। लेकिन शहीद की मां को कुछ नहीं मिला। उन्होंने धूरी और मानसा की आदलतों में जाकर सभी सुबूत जुटाए। इसके बाद वह दस साल बाद बुजुर्ग जगीर कौर को 8815 रुपये पेंशन दिलवाने में कामयाब हुए।