बीमा कंपनी के एजेंट को इंश्योरेंस पॉलिसी का टर्म बदलना पड़ा भारी, 7 साल की पॉलिसी को कर दिया 15 साल
शिकायत में डॉ. नागपाल ने बताया कि उन्होंने सात साल के लिए उक्त कंपनी का आइसीआइसीआइ प्रू गगारंटेड सेविंग प्लान लिया था जिसके लिए उन्होंने 49200 रुपये का पहला प्रिमियम भी दे दिया था। कंपनी एजेंट पर विश्वास करके उन्होंने अधूरे दस्तावेजों पर हस्ताक्षर कर दिए थे।
वैभव शर्मा, चंडीगढ़। बीमा कंपनी के एजेंट ने जालसाजी कर अधूरे दस्तावेज पर डॉक्टर (उपभोक्ता) के हस्ताक्षर करवा लिए। एजेंट ने यह जालसाजी उसकी बीमा पॉलिसी का टर्म सात से बढ़ा कर 15 साल कर दिया। सेक्टर-8 स्थित आइसीआइसीआइ प्रूडेंशियल लाइफ इंश्योरेंस के एजेंट ने सेक्टर-21बी स्थित डॉ. नीरज नागपाल के साथ यह जालसाजी की थी। इसकी शिकायत डॉ. नागपाल ने चंडीगढ़ जिला उपभोक्ता आयोग में दी। शिकायत की सुनवाई करते हुए आयोग ने आइसीआइसीआइ प्रूडेंशियल लाइफ इंश्योरेंस पर 25 हजार रुपये हर्जाना लगाया। वहीं नौ फिसद प्रति वर्ष ब्याज दर (जबसे पॉलिसी ली गई थी) के साथ प्रिमियम अमाउंट वापस करने का आदेश दिया। वहीं, केस खर्च पर 15 हजार रुपये जमा करने का भी आदेश दिया।
शिकायत में डॉ. नागपाल ने बताया कि उन्होंने सात साल के लिए उक्त कंपनी का आइसीआइसीआइ प्रू गगारंटेड सेविंग प्लान लिया था, जिसके लिए उन्होंने 49,200 रुपये का पहला प्रिमियम भी दे दिया था। कंपनी एजेंट पर विश्वास करके उन्होंने अधूरे दस्तावेजों पर हस्ताक्षर कर दिए थे क्योंकि एजेंट का कहना था वह दस्तावेजों को भर देगा। एजेंट के साथ सात वर्ष की बात हुई थी लेकिन उसने बाद में प्रिमियम की अवधी को बढ़ा कर 15 साल कर दिया।
सात वर्षों तक भरते रहे प्रिमियम
डॉ. नागपाल ने बताया कि वह सात वर्षों तक 49,200 रुपये प्रिमियम राशि के तौर पर भरते रहे। प्लान की सात साल अवधी खत्म होने के बाद जब डाॅ. नागपाल सेक्टर-8 स्थित आइसीआइसीआइ प्रूडेंशियल लाइफ इंश्योरेंस के दफ्तर गए तो वहां पता लगा कि प्लान की अवधी 15 साल की है, जिस उन्होंने विरोध किया तो बैंक ने अपने एजेंट को सही ठहराते हुए उन्हें प्रिमियम की राशि देने से साफ मना कर दिया।
कंपनी के जवाब से आयोग सहमत नहीं
आयोग ने सेक्टर-8 स्थित आइसीआइसीआइ प्रूडेंशियल लाइफ इंश्योरेंस के मैनेजर को जवाब देने के लिए नोटिस जारी किया। आइसीआइसीआइ की ओर से जवाब दिया गया कि जो दस्तावेज उनके पास आए थे, उसमें प्रिमियम की अवधी 15 साल है, जबकि उस पर शिकायतकर्ता के हस्ताक्षर हैं। इसके साथ ही शिकायतकर्ता की आइसीआइसीआइ से पहले तीन पॉलिसी और हैं और ऐसे में उन्हाेंने दस्तावेजों को अच्छे से पढ़ा होगा। लेकिन आइसीआइसीआइ की दलील से आयोग सहमत नहीं हुआ और उस पर 25 हजार रुपये हर्जाना लगाया।