मकौड़ा पत्तन पर बांध बनाकर पाक जाने वाला पानी रोकेगा भारत

रावी नदी के माध्यम से पाकिस्तान जा रहे उज्ज नदी के पानी को रोकने के लिए अब मकौड़ा पत्तन पर भी बैराज बनाया जाएगा।

By Kamlesh BhattEdited By: Publish:Sat, 23 Feb 2019 10:45 AM (IST) Updated:Mon, 25 Feb 2019 10:18 AM (IST)
मकौड़ा पत्तन पर बांध बनाकर पाक जाने वाला पानी रोकेगा भारत
मकौड़ा पत्तन पर बांध बनाकर पाक जाने वाला पानी रोकेगा भारत

चंडीगढ़ [इन्द्रप्रीत सिंह]। रावी नदी के माध्यम से पाकिस्तान जा रहे उज्ज नदी के पानी को रोकने के लिए अब मकौड़ा पत्तन पर भी बैराज बनाया जाएगा। ऐसा करके पंजाब में इस पानी को इस्तेमाल किया जा सकेगा। इस प्रोजेक्ट पर 200 करोड़ रुपये खर्च होंगे। गुरदासपुर में स्थित मकौड़ा पत्तन पर ही उज्ज नदी रावी में आकर मिलती है।

पंजाब के सिंचाई मंत्री सुखबिंदर सिंह सरकारिया ने दैनिक जागरण से बातचीत में कहा कि वे इस बारे में केंद्रीय जल संसाधन मंत्री नितिन गडकरी से बात कर चुके हैं और उन्हें यह प्रोजेक्ट पसंद भी आ गया है। उनसे मिलने के लिए समय मांगा है, मुझे उम्मीद है कि 27 फरवरी को हमारी मीटिंग होगी।

सरकारिया ने पाकिस्तान जाने वाले भारत के हिस्से के पानी को रोकने संबंधी वीरवार को गडकरी के ट्वीट पर कहा कि रावी नदी पर शाहपुर कंडी डैम बनाने के प्रोजेक्ट पर काम शुरू कर दिया गया है। शाहपुर कंडी से छोड़े जाने वाले पानी को माधोपुर हैडवक्र्स से 35 किलोमीटर नीचे मकौड़ा पत्तन के पास फिर से रोककर इसे चैनलाइज करने की योजना है।

शाहपुर कंडी से नीचे जम्मू कश्मीर से आने वाली छोटी सी नदी उज्ज का पानी रावी में पड़ता है। इसके अलावा तीन बरसाती नाले जलानिया, तरना व शिंगारवां भी इसमें पड़ते हैं। ऑफ सीजन में इनमें पानी काफी कम होता है लेकिन बरसात के दिनों में पानी काफी होता है। हमारे पास इस पानी को रोकने के लिए कोई व्यवस्था नहीं है। विभाग ने इस पानी को पंजाब में इस्तेमाल करने के लिए काफी रिसर्च की है।

सिंचाई व पीने के लिए इस्तेमाल होगा पानी

सरकारिया ने बताया कि यदि इस प्रोजेक्ट को केंद्र सरकार मंजूर कर लेती है तो न केवल हम पाकिस्तान को जा रहे अपने हिस्से के पानी को रोक सकते हैं बल्कि इससे दीनानगर, गुरदासपुर, कलानौर, अजनाला व अमृतसर को पीने का साफ पानी भी मुहैया करवाया जा सकता है। इन शहरों की जरूरत मात्र 300 क्यूसेक रोजाना है जबकि यहां ऑफ सीजन में भी 600 क्यूसेक पानी मौजूद है। चैनलाइज होने के बाद इसमें 2000 क्यूसेक पानी हो जाएगा जिसे सिंचाई के लिए भी प्रयोग किया जा सकता है।

भारत के हिस्से का ही है पानी

सिंचाई मंत्री ने इस बात से इन्कार किया कि इससे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हुई सिंधू जल संधि पर कुछ असर पड़ेगा। उन्होंने बताया कि विभाजन के बाद रावी, सतलुज व ब्यास नदियां हमारे हिस्से आई हैं और झेलम, चिनाव व सिंधू पाकिस्तान के हिस्से। रावी नदी पर रंजीत सागर डैम बना है लेकिन डाउन स्ट्रीम पर न तो हमारे पास शाहपुर कंडी बना है और न ही मकौड़ा पत्तन पर हम पानी रोक सकते हैं। ऐसे में बरसात के दिनों में पानी ज्यादा होने के कारण रावी नदी में छोडऩे के अलावा और कोई विकल्प नहीं होता। मुझे लगता है भारत सरकार अब काफी सक्रिय है और 200 करोड़ रुपये की लागत से बनने वाले इस प्रोजेक्ट को मंजूरी मिल जाएगी।

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