मोटर एक्सीडेंट क्लेम देने के मामलों में सरकारें नहीं गंभीर, हाई कोर्ट ने पंजाब, हरियाणा एवं चंडीगढ़ से मांगा जवाब

मोटर एक्सीडेंट क्लेम के मामलों में मुआवजा बिना किसी परेशानी के पीड़ितों को मिलना सुनिश्चित करने के लिए पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने पंजाब हरियाणा व चंडीगढ़ से जवाब तलब किया है। कोर्ट ने यह अंतिम अवसर दिया है।

By Kamlesh BhattEdited By: Publish:Tue, 23 Feb 2021 04:47 PM (IST) Updated:Tue, 23 Feb 2021 04:47 PM (IST)
मोटर एक्सीडेंट क्लेम देने के मामलों में सरकारें नहीं गंभीर, हाई कोर्ट ने पंजाब, हरियाणा एवं चंडीगढ़ से मांगा जवाब
पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट की फाइल फोटो।

जेएनएन, चंडीगढ़। मोटर एक्सीडेंट क्लेम के मामलों में बीमा कंपनियों द्वारा जारी मुआवजा बिना किसी परेशानी के पीड़ितों को मिलना सुनिश्चित करने के लिए पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने पंजाब, हरियाणा व चंडीगढ़ से जवाब तलब किया है। कोर्ट के आदेश के दो महीने के बाद भी किसी भी राज्य ने इस मामले में कोर्ट में पक्ष नहीं रखा।

हाई कोर्ट के जस्टिस अनिल खेत्रपाल ने इस पर नाराजगी जताते हुए कहा कि यह एक जनहित का मामला है। सरकार ऐसे मामलों को गंभीरता से नहीं ले रही। कोर्ट ने पंजाब, हरियाणा व चंडीगढ़ को इस मामले में जवाब दायर करने का अंतिम अवसर देते हुए साफ कर दिया कि अगर मामले की अगली सुनवाई से पहले उचित जवाब दायर नहीं किया गया तो मामले की अगली सुनवाई पर 24 मार्च को दोनों राज्यों के मुख्य सचिव और चंडीगढ़ के प्रशासक के सलाहकार को हाई कोर्ट में खुद पेश होकर जवाब देना होगा।

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याचिका दाखिल करते हुए एचडीएफसी एग्रो जनरल इंश्योरेंस कंपनी ने मुआवजा भुगतान की प्रक्रिया को खामियों से भरा बताते हुए इसमें बदलाव की मांग की है। कंपनी ने कहा कि वर्तमान प्रक्रिया एक ओर तो कंपनियों के लिए परेशानी पैदा करती है, दूसरी ओर अनावश्यक याचिकाओं को भी जन्म देती हैं। वर्तमान में चेक बनाकर बीमा कंपनी इसे मुआवजा राशि के रूप में जारी करती है। कई बार ऐसा होता है कि चेक किसी और नाम से होता है, जिसे राशि का भुगतान करना होता है उसके नाम में फर्क आ जाता है। ऐसे में मामला लटक जाता है और फिर से अर्जियां दाखिल करनी पड़ती हैं।

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साथ ही कई बार एमएसीटी (मोटर एक्सीडेंट क्लेम ट्रिब्यूनल) के पास चेक पड़ा रह जाता है और इसकी तारीख निकल जाती है। फिर से याचिकाओं का दौर आरंभ हो जाता है। कई बार मुआवजा किसी और का होता है और नाम एक होने के चलते चेक किसी और के पास पहुंच जाता है जो विवाद को जन्म देता है।

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याची ने कहा कि इस प्रक्रिया को आसान बनाने की जरूरत है। सुझाव देते हुए कहा गया कि एमएसीटी और मुआवजा तय करने वाले ट्रिब्यूनल अपना अकाउंट खोलें, जिसमें बीमा कंपनियां मुआवजे की राशि जमा करवाएं। मुआवजा याचिका दाखिल करने वाले अपने खाते से जुड़ी जानकारी याचिका में शामिल करें और मुआवजा तय होने के बाद राशि को सीधा उनके खाते में डाल दिया जाए तो विवादित याचिकाओं में कमी आएगी।

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