Punjab Assembly Election 2022: विधानसभा चुनाव से पहले सिर्फ जुबान पर किसान, नीतियों में नहीं

Punjab Assembly Election 2022 पंजाब में विधानसभा चुनाव वर्ष 2022 की शुरुआत में होने हैं। राज्य में किसानों को साधने की जुगत हर दल भिड़ाने लगा है लेकिन चुनाव से पहले किसानों की मांग हर दल की जुबान पर हैं पर नीतियों में नहीं।

By Kamlesh BhattEdited By: Publish:Thu, 25 Nov 2021 02:11 PM (IST) Updated:Thu, 25 Nov 2021 03:13 PM (IST)
Punjab Assembly Election 2022: विधानसभा चुनाव से पहले सिर्फ जुबान पर किसान, नीतियों में नहीं
जुबान पर किसान नीतियों में नहीं। सांकेतिक फोटो

इन्द्रप्रीत सिंह, चंडीगढ़। Punjab Assembly Election 2022: हर बार की तरह इस बार भी विधानसभा चुनाव से पहले सभी पार्टियों की जुबान पर किसान का नाम है। कर्ज माफी, दो गुणा आय और एमएसपी की गारंटी जैसी बातें भाषणों में गूंज रही हैं, लेकिन हकीकत इससे इतर है। पांच साल में सरकार कृषि नीति तक नहीं बना पाई। न आत्महत्या का सिलसिला बंद हुआ और न आय दो गुणा हो पाई। फसल बीमा योजना भी किसानों को राहत नहीं दे सकी। मुआवजे को लेकर किसान सारा साल प्रदर्शन करते रहे। विपक्ष कर्ज माफी पर सवाल उठाता रहा, लेकिन अब सभी पार्टियों के प्रयासों को आंकने का वक्त है। सरकार किसी भी पार्टी की बने, लेकिन बड़ा सवाल यही है कि क्या किसानों की किस्मत सच में बदल पाएगी?

एमएसपी की गारंटी नहीं, निश्चित आय है असली मुद्दा

श्री गुरु नानक देव जी के प्रकाश पर्व पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने तीन कृषि कानूनों को वापस लेने की घोषणा करके सभी को हैरत में डाल दिया। हैरत इसलिए क्योंकि पिछले एक साल से उनके समेत तमाम केंद्रीय मंत्री यही कह रहे थे कि कानूनों में सिर्फ संशोधन किया जा सकता है, इन्हें वापस नहीं लिया जा सकता। इसलिए यह चर्चा हो रही है कि क्या अब यह फैसला चुनाव को देखते हुए लिया गया है या इसके पीछे कोई और कारण है। प्रधानमंत्री ने अपने संक्षिप्त भाषण में फसलों पर न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) सहित अन्य मुद्दों पर एक कमेटी बनाने व इसे किसानों के साथ मिलकर हल करने की बात कही है। हालांकि, असल मुद्दा एमएसपी की गारंटी नहीं, बल्कि किसानों की एक निश्चित आय तय करना है, ताकि देश का सबसे ज्यादा जोखिम वाला पेशा करने वाले लोग कर्ज के तले आकर आत्महत्या जैसा कदम न उठाएं।

इसलिए जरूरी है निश्चित आय

अगर सरकारें अपने दफ्तरों में चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों की आय 25 हजार रुपये सुनिश्चित कर सकती है, तो ऐसी नीतियां क्यों नहीं बनाई जा रहीं कि किसानों को भी एक तय न्यूनतम आय मिले। आखिर वे हमारे देश की अन्न सुरक्षा को मजबूत बनाने का काम करते हैं। पीएम नरेन्द्र मोदी 2017 में किसानों की आय दो गुणा करने का एलान भी कर चुके हैं। किसानों की आय सुनिश्चित करना ही असल मुद्दा है। किसान अपनी फसल के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की गारंटी मांग रहे हैं, यानी वह जो कुछ उगाएं उसका उन्हें न्यूनतम दाम तो मिलना सुनिश्चित हो। ऐसा कई बार देश भर में देखने को मिल चुका है कि जब उन्हें अपने टमाटर, आलू सहित तमाम सब्जियों को सड़कों पर फेंकना पड़ा है, क्योंकि इन्हें तोड़ना, बोरियां में भरकर मंडी तक ले जाने का जो खर्च है, व्यापारी उससे भी कम कीमत देते हैं। ऐसे में अगर वह एमएसपी की गारंटी मांगते हैं तो उनकी यह मांग कितनी गलत है।

जैविक खेती में हैं संभावनाएं

अपने संबोधन में प्रधानमंत्री ने एक बड़ा पक्ष जैविक खेती का रखा है। पंजाब में इस क्षेत्र में असीम संभावनाएं हैं। पैदावार बढ़ाने के चक्कर में हमने अपनी जमीन को जिस तरह रासायनिक खाद व दवाएं डालकर जहरीला कर लिया है, वह भी बड़ा मुद्दा है। पंजाब में यदि जैविक कृषि पर गंभीरता से काम किया जाए, तो यह आय बढ़ाने का बढ़िया साधन साबित हो सकता है। पंजाब, हरियाणा में जिस तरह से कैंसर फैल रहा है, उसमें इस जहरीली खेती कितनी जिम्मेदार है, इस पर भी बात करनी होगी। खुद किसान वर्ग इससे पीड़ित है। मालवा की कपास पट्टी पर जिस तरह से जहरीली दवाओं का छिड़काव हो रहा है, उससे किसान भी अछूते नहीं हैं। राज्य के सबसे ज्यादा किसान आत्महत्या वाले जिलों का सर्वे करने में एक तथ्य यह भी सामने आया है कि जिस घर में भी कोई कैंसर का शिकार हो रहा है, उसके इलाज में होने वाला खर्च भी किसानों को आत्महत्या की ओर धकेल रहा है। प्रसिद्ध पर्यावरणविद डा. वंदना शिवा कहती हैं कि उनकी रिपोर्ट के मुताबिक जो हाल मालवा पट्टी का है वही, महाराष्ट्र में विदर्भ का है और वही आंध्रप्रदेश का भी है। इसके आलावा खेती अवशेषों को संभालने की क्या नीति हो, अब यह मुद्दा केवल किसानों का नहीं रह गया है।

हवा में रह गए वादे

2017 के चुनाव के दौरान कैप्टन अमरिंदर सिंह ने वादा किया था कि विभिन्न फसलों के लिए प्राइस स्टेबलाइजेशन फंड एक्ट बनाया जाएगा। इसमें यह प्रविधान था कि सरकार एक कार्पस फंड कायम करेगी और अगर कोई फसल एमएसपी से कम पर बिक रही है, तो एमएसपी और बाजारी मूल्य के अंतर को इस फंड से भरा जाएगा। यह राशि किसान के खाते में डाली जाएगी। सरकार ने यह एक्ट पारित भी किया, लेकिन साढ़े साल बीतने के बावजूद इसके न तो नियम बनाए गए, न फंड कायम किया गया। न ही इस बात का प्रविधान किया गया कि इसके लिए पैसा कहां से आएगा। सरकार का दावा था कि किसानों को कर्ज मुक्त किया जाएगा, ताकि उनकी आय का ज्यादातर हिस्सा जो ब्याज में चला जाता है, उसे वह बचा सकें, लेकिन इसमें सिर्फ पांच एकड़ तक के किसानों के दो लाख रुपये तक के कर्ज ही माफ किए गए।

इस बार क्या कह रही पार्टियां कांग्रेस: पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू किसानी को लाभप्रद बनाने के लिए बड़ी योजनाओं की घोषणा कर रहे हैं। हालांकि, अभी कोई ठोस योजना का उल्लेख उन्होंने नहीं किया है। शिअद: शिरोमणि अकाली दल के अध्यक्ष सुखबीर बादल ने कहा था कि वह फलों और सब्जियों को भी न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) के दायरे में लाएंगे और किसानों की आय बढ़ाएंगे। आप: आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल कह चुके हैं कि उनकी सरकार बनी तो किसानों को आत्महत्या नहीं करने देंगे, पर उन्होंने इसके लिए रोडमैप नहीं बताया। भाजपा: भाजपा की तरफ से भी अभी सिर्फ इतना ही कहा गया है कि पार्टी हमेशा किसानों के हित में फैसले लेती रही है। आगे भी वह उनकी आय दो गुणा करने के प्रयास जारी रखेगी।

कृषि आधारित उद्योगों से बढ़ेगी आय

कृषि नीतियों के विशेषत्र दविंदर शर्मा का कहना है कि किसानी में अब मुख्य मुद्दा रोजगार है। खेती का पेशा अब लाभप्रद नहीं रहा, इसलिए युवाओं का रुझान विदेश की ओर है। वे अपनी जमीन बेचकर किसी न किसी तरीके से विदेश जा रहे हैं। यह ट्रेंड अभी पंजाब में है, लेकिन इसे दूसरे प्रदेशों में फैलने में देर नहीं लगेगी। हमें खेती और उससे संबंधित उद्योगों को स्थानीय स्तर पर लगाकर ग्रामीण युवाओं को रोजगार देना होगा, ताकि उन्हें विदेश जाने से रोका जा सके। पिछले कई सालों से पराली निस्तारण को लेकर किसान, सरकारें, अदालतें माथापच्ची कर रही हैं, लेकिन खेती अवशेषों के निस्तारण पर होने वाले खर्च को खेती एवं लागत मूल्य आयोग विभिन्न फसलों की कीमत तय करने में शामिल ही नहीं करता, जिस कारण किसान अतिरिक्त खर्च अपनी जेब से देने को तैयार नहीं। इसका भी स्थायी समाधान निकालना होगा।

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