पर्दे के पीछे: Navjot Singh Sidhu क्या सबसे मिलते हैं, परगट सिंह बोले- मित्र तो हैं, पर मिलते नहीं, पढ़ें पंजाब की और भी खबरें

राजनीति में कई ऐसी खबरें होती हैं जो अक्सर सुर्खियों में नहीं आती। पंजाब राजनीति से जुड़ी पर्दे के पीछे की ऐसी ही हल्की-फुल्की जिनके निहितार्थ बड़े होते हैं। आइए पर्दे के पीछे कालम में कुछ ऐसी ही खबरों पर नजर डालते हैं।

By Kamlesh BhattEdited By: Publish:Sun, 13 Jun 2021 12:01 PM (IST) Updated:Sun, 13 Jun 2021 02:15 PM (IST)
पर्दे के पीछे: Navjot Singh Sidhu क्या सबसे मिलते हैं, परगट सिंह बोले- मित्र तो हैं, पर मिलते नहीं, पढ़ें पंजाब की और भी खबरें
नवजोत सिंह सिद्धू व परगट सिंह की फाइल फोटो।

चंडीगढ़ [इन्द्रप्रीत सिंह]। मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह के साथ विधायकों के विवाद को सुलझाने के लिए बनाई गई कमेटी के सामने सबसे बड़ा मुद्दा यह आया कि कैप्टन से मिलना आसान नहीं है। यह बयान कैप्टन के विरोधियों ने तो दिया ही, उनके समर्थन वाले विधायकों ने भी दिया। कई विधायकों ने नवजोत सिंह सिद्धू का समर्थन कर दिया।

हालांकि जब नवजोत सिंह सिद्धू के सबसे करीबी विधायक और पूर्व ओलंपियन परगट सिंह से इस बारे में बात की गई तो उन्होंने भी कहा कि कैप्टन को लोगों से मिलना चाहिए। संवाद से ही कई मुद्दे हल हो जाते हैं। जब उनका ध्यान सिद्धू की ओर दिलाया कि क्या वह सबसे मिलते हैं तो इसका जवाब तो परगट के पास भी नहीं था। परगट इतना तो जानते ही हैं मिलने के मामले में तो सिद्धू कैप्टन से भी आगे हैं। उन्होंने कहा, मेरा मित्र जरूर है, पर मिलता मुझसे भी नहीं है।

स्टेज पर बिठाकर खिसकाई कुर्सी

राजनीति भी अजीब शय है। कभी परायों को करीब ले आती है तो कभी अपनों को दूर कर देती है। अकाली दल और बसपा में गठजोड़ के लिए आयोजित कार्यक्रम के दौरान भी ऐसा ही देखने को मिला। कहने को शिअद प्रधान सुखबीर बादल ने प्रो प्रेम सिंह चंदूमाजरा और पूर्व स्पीकर चरणजीत सिंह अटवाल को स्टेज पर अपने साथ बिठाया हुआ था जबकि उनके करीबी रिश्तेदार बिक्रम स्टेज पर नहीं थे जब सुखबीर बादल ने बसपा को दी गई बीस सीटों की सूची पढ़ी तो ये दोनों सीनियर नेता ज्यादा खुश नजर नहीं आए। पर्दे के पीछे की बात यह है कि चंदूमाजरा अपने छोटे बेटे के लिए मोहाली से सीट मांग रहे थे जबकि अटवाल अपने बेटे इंद्र इकबाल सिंह अटवाल के लिए पायल से टिकट की आस लगाए बैठे थे। ये दोनों सीटें बसपा के खाते में चली गईं। यानी इनके बेटों को मिलने वाली विधायक पद की कुर्सी खिसक गई।

तलब करते ही निकल आए पैसे...

पंजाब में दलित राजनीति इस समय शीर्ष पर है। पोस्ट मैट्रिक स्कॉलरशिप के तीन साल से प्राइवेट कॉलेजों के रुके हुए 1570 करोड़ रुपये लेने कॉलेजों ने विद्यार्थियों के रोल नंबर रोक दिए। जिसका राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग के चेयरमैन विजय सांपला ने नोटिस लिया। उन्होंने मुख्य सचिव को नोटिस जारी किया। जब दो रिमाइंडर देने के बाद भी चीफ सेक्रेटरी विनी महाजन ने जवाब नहीं दिया तो उन्होंने उन्हें दिल्ली तलब कर लिया। जैसे ही नोटिस जारी हुआ, सरकार ने भी पैसा जारी करने के आदेश जारी कर दिए। कॉलेजों के मालिकों के साथ वित्तमंत्री ने फोटो भी खिंचवा ली। सांपला पंजाब से ही हैं और भाजपा में दलित राजनीति का चेहरा हैं। जब से भाजपा ने पंजाब में दलित सीएम देने का वादा किया है वह कुछ ज्यादा ही सक्रिय हो गए हैं, इसलिए उन्होंने दलितों में पैठ बनाने के प्रयास तेज कर दिए हैं।

आदत पड़ी है...धीरे धीरे ही बदलेगी

स्टेज पर जिन शब्दों का उच्चारण आम तौर पर रोजाना ही करना पड़ता हो और अचानक हालात बदल जाएं तो कभी कबार बड़ी गलती के रूप में सामने आ जाते हैं। ऐसा ही शिरोमणि अकाली दल और बसपा के साथ समझौते के समागम में हुआ। चूंकि पिछले 25 साल से अकाली दल और भाजपा का गठजोड़ चल रहा है जिसमें उन्होंने तीन बार सरकार बनाकर कार्यकाल पूरा किया है। लेकिन शनिवार को जब नया गठजोड़ अकाली दल और बसपा का बन गया तो अकाली नेताओं के मुंह को भाजपा की इतनी आदत हो गई कि उनके मुंह से बहुजन समाज पार्टी निकला ही नहीं। स्टेट सेक्रेटरी की भूमिका निभा रहे डॉ. दलजीत सिंह चीमा ने जब बहुजन समाज पार्टी की जगह भारतीय जनता पार्टी बोला तो तुरंत ही माफी मांगी। कहा, आदत है, धीरे-धीरे ही जाएगी।

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