पंजाब में धान की सीधी बिजाई से किसान रहे फायदे में, लागत कम, 75 फीसद पानी भी बचाया
पंजाब में इस बार काफी संख्या में किसानाें ने धान की सीधी बिजाई की। इससे उनको काफी फायदा हुआ है। इससे उनकी खेती पर लागत कम हुई है। इसके साथ ही धान की खेती में पहले की अपेक्षा 75 फीसद तक कम पानी लगा।
चंडीगढ़, [इन्द्रप्रीत सिंह]। पंजाब में धान की सीधी बिजाई ने किसानों के लिए एक नई राह तो खोल ही दी है। इसके साथ ही सबसे बड़ी राहत यह मिली है कि इस तकनीक से किसान जमीन का पानी बचाने में भी कामयाब हो गए हैं। अगर यह तकनीक बाकी के किसान भी अपनाते हैं तो प्रदेश में भूजल गिरने का जो कलंक उनके माथे पर लगता है वह भी धुल जाएगा। सीधी, बेड बनाकर और मेंढ बनाकर की गई बिजाई से धान की फसल के लिए पहले की अपेक्षा कुल पानी का मात्र 25 से 35 फीसद ही प्रयोग करना पड़ा है। यानि धान की सीधी बिजाई से किसानों को फायदा हुआ तथा साथ ही 75 फीसद तक पानी भी बचा।
अभी किसानों ने ट्रायल के रूप में ही की थी इस तकनीक से खेती, प्रति एकड़ दो क्विंटल धान की उपज बढ़ी
प्रदेश में सीधी बिजाई करने वाले किसानों ने जागरण को बताया कि इससे ना केवल उनकी पैदावार में प्रति एकड़ औसत दो क्विंटल की वृद्धि हुई है बल्कि रोपाई पर होने वाला 5000 रुपये प्रति एकड़ और जमीन को कद्दू करने(जमीन पर पानी खड़ा करके उस पर ट्रैक्टर चलाकर जमीन के पोर्स बंद करना) के लिए खर्च होने वाला 1000 रुपये प्रति एकड़ डीजल खर्च भी बचा है।
फतेहगढ़ साहिब के गांव डडियाणा के अवतार सिंह ने एक एकड़ पर सीधी बिजाई के जरिए धान लगाकर ट्रायल किया। वैसे गांव में उनके समेत हरमीत सिंह आदि ने भी ऐसा किया और कुल 50 एकड़ पर ये ट्रायल हुआ। उन्होंने अपने दो एकड़ जमीन पर सीधी बिजाई के जरिए धान लगाया था। उन्होंने बताया कि फसल देखकर अनुमान है कि उनके द्वारा पारंपरिक तरीके से की जा रही धान की खेती के मुकाबले में दो क्विंटल ज्यादा ही झाड़ निकलेगा।
उन्होंने कहा कि अगर यह दो क्विंटल कम भी निकलता है तो भी वह अगले साल अपनी सारी 15 एकड़ जमीन पर सीधी बिजाई ही करेंगे। इससे उनका प्रति एकड़ खर्च पांच हजार रुपये का खर्च भी बचता है। इसके अलावा पानी की 70 फीसद से ज्यादा की बचत होती है। पारंपरिक खेती में पानी लगाने के लिए अक्सर किसानों को रात-रात खेतों में ही बैठना पड़ता था क्योंकि सरकार बिजली रात को ही ज्यादा देती रही है लेकिन सीधी बिजाई में अब यह सारी परेशानी खत्म हो गई है।
कृषि कर्मन अवार्ड से सम्मानित गांव साधूगढ़ के सुरजीत सिंह ने पिछले साल पांच एकड़ जमीन पर मेंढ बनाकर उस पर धान की बुवाई की थी। इस साल उन्होंने अपनी 40 एकड़ जमीन पर इस तरह बुवाई की है। उन्होंने बताया कि तीन दिन पहले ही खेती विभाग के अधिकारियों के सामने सारी फसल की कटाई की गई और औसतन 35.4 क्विंटल प्रति एकड़ पैदावार हुई है। लुधियाना के हरिंदर लक्खोवाल ने अपनी 20 एकड़ जमीन पर सीधी बिजाई की थी। उनकी भी पैदावार औसतन 35 क्विंटल प्रति एकड़ निकली है। इससे पहले प्रति एकड़ पैदावार औसत 33 क्विंटल ही होती थी।
पहले मेरी बात मान लेते तो बचाया जा सकता था पानी : डा. दलेर सिंह
इस तकनीक को पिछले दो दशकों से खेतीबाड़ी विभाग के पूर्व डिप्टी डायरेक्टर डा. दलेर सिंह प्रचारित कर रहे हैं लेकिन खेती वैज्ञानिकों ने उनके इस प्रयास को कभी ज्यादा महत्व नहीं दिया। उन्होंने बताया कि यहां तक कि पंजाब एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर डॉ बीएस ढिल्लों ने भी इसे नकार दिया था लेकिन इस साल जब कोरोना के चलते लेबर यूपी और बिहार में वापस चली गई तो किसानों ने बहुत सारे क्षेत्रों में ट्रायल के तौर पर सीधी बिजाई, बेड और मेंढ बनाकर धान लगाई। आज इसके परिणाम सबके सामने हैं।
उन्होंने कहा कि अगर उनकी इस तकनीक को साल 2000 में ही अपना लिया होता तो पंजाब में आज हर इलाके में फिर से हैंडपंप चलने लगते। उन्होंने बताया कि धान के कारण पानी नीचे नहीं जा रहा है बल्कि कद्दू करके जमीन के पोर्स बंद करने से पानी रिचार्ज नहीं हो रहा है। दलेर ¨सह ने कहा कि पंजाब सरकार को कद्दू करके धान लगाने पर तुरंत पाबंदी लगानी चाहिए।