Chandigarh: मर्यादा सामाजिक और राष्ट्रीय आवश्यकताः मुनि विनयकुमार आलोक

मुनि विनय कुमार आलोक ने अणुव्रत भवन सेक्टर-24 में आयोजित जनसभा को संबोधित करते हुए कहा कि नियम तोड़ने से हमेशा अनुशासनहीनता बढ़ती है और समाज में अव्यवस्था पैदा होती है। समाज में भौतिकता की लगातार कमी के कारण धीरे धीरे मर्यादाएं टूट रही हैं।

By Ankesh KumarEdited By: Publish:Fri, 09 Apr 2021 01:19 PM (IST) Updated:Fri, 09 Apr 2021 01:19 PM (IST)
Chandigarh: मर्यादा सामाजिक और राष्ट्रीय आवश्यकताः मुनि विनयकुमार आलोक
मुनि विनय कुमार आलोक की फाइल फोटो।

चंडीगढ़, जेएनएन। अनुशासन ही मनुष्य को पशु से मानव बनाता है। अनुशासन और मर्यादा सामाजिक और राष्ट्रीय आवश्यकता है। ऐसे में हमें हमेशा गुरुओं की आज्ञा का पालन करना चाहिए। अनुशासनप्रिय होने पर ही हर विद्यार्थी की शिक्षा पूर्ण समझी जानी चाहिए। मर्यादाएं राष्ट्रीय जीवन का प्राण है। यदि प्रशासन, स्कूल समाज, परिवार सभी जगह सब लोग मर्यादा में रहेंगे और अपने कर्तव्य का पालन करेंगे, अपनी जिम्मेदारी समझेंगे तो कहीं किसी प्रकार की गड़बड़ी या अशांति नहीं होगी। ये शब्द मुनि विनय कुमार आलोक ने अणुव्रत भवन सेक्टर-24 में आयोजित जनसभा को संबोधित करते हुए कहे।

उन्होंने कहा कि नियम तोड़ने से हमेशा अनुशासनहीनता बढ़ती है और समाज में अव्यवस्था पैदा होती है। समाज में भौतिकता की लगातार कमी के कारण धीरे धीरे मर्यादाएं टूट रही हैं। हर समय में बुराई पनपी है चाहे श्रीकृष्ण, श्रीराम, आचार्य श्री तुलसी हर समय में बुराई ने अपनी जड़ें मजबूत की हैं। लेकिन बुराई एक भी स्थायी नहीं रही क्योंकि बुराई का कोई वजूद नहीं होता। 

बचपन की सीख है सबसे अहम

मुनि विनय कुमार ने कहा कि बड़े होकर मर्यादा और अनुशासन को सीखना और उसमें रहना बहुत ज्यादा मुश्किल है। यदि बच्चे को बचपन में ही मर्यादा और अनुशासन का पाठ पढ़ाया जाए तो वह हमेशा लाभ देगा। बचपन में मर्यादा और अनुशासन सिखाने की जिम्मेदारी माता-पिता तथा गुरुओं की होती हैं। विद्यालय जाकर अनुशासन मर्यादा की भावना का विकास होता है। अच्छी शिक्षा विद्यार्थी को अनुशासन का पालन करना सिखाती है। वास्तव में मर्यादित-शिक्षा के लिए विद्यालय ही सर्वोच्च स्थान है। विद्यार्थियों को यहां पर अनुशासन की शिक्षा अवश्य मिलनी चाहिए ताकि उनका सामाजिक दृष्टि से संपूर्ण विकास हो सके।

उन्होंने कहा कि जीवन में ऐसा ही होता है। हम एक सत्कार्य से आरभ करें तो देखेंगे कि अन्य कई सकारात्मक कार्य होते जाते हैं और यदि एक गलती कर दी तो कई परेशानियों पैदा होती जाती है। वह परेशानियां हमें विकास के बजाए पतन की तरफ लेकर जाती है जिसका परिणाम हम भुगतते है और हमेशा दूसरों को दोष देते है।

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