सिंडीकेट बॉडी होने के बावजूद हो रही तानाशाही

वाइस चांसलर सीनेट और सिडीकेट बॉडी को खत्म करने के इरादे में दिख रहे हैं।

By JagranEdited By: Publish:Mon, 07 Dec 2020 07:03 AM (IST) Updated:Mon, 07 Dec 2020 07:04 AM (IST)
सिंडीकेट बॉडी होने के बावजूद हो रही तानाशाही
सिंडीकेट बॉडी होने के बावजूद हो रही तानाशाही

सुमेश ठाकुर, चंडीगढ़ : पंजाब यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर सीनेट और सिडीकेट बॉडी को खत्म करने के इरादे में दिख रहे हैं। ऐसे में वाइस चांसलर भी सवालों के घेरे में आ रहे हैं। सीनेट का कार्यकाल 31 अक्टूबर को खत्म हो चुका है और सिडीकेट का 31 दिसंबर को कार्यकाल पूरा हो जाएगा, लेकिन दोनों में से किसी भी बॉडी के पुनर्गठन को लेकर कोई भी कार्रवाई पंजाब यूनिवर्सिटी में निकट भविष्य में होने में नहीं दिख रही है। कब बनी सिडीकेट और सीनेट

पंजाब यूनिवर्सिटी कैलेंडर का निर्माण 1947 में हुआ था, सिडीकेट और सीनेट का अस्तित्व उसी समय था। इन दोनों बॉडी का निर्माण यूनिवर्सिटी और इससे मान्यता प्राप्त कॉलेजों के लिए नियमों का निर्माण करना था। नियम बनने से पहले संबंधित विभाग की कमेटी मुद्दों को उठाती है जिसके बाद सिडीकेट बॉडी उस पर चर्चा करके उसे अप्लाई करनी की पहली मंजूरी देती है और उसके बाद दूसरी मंजूरी सीनेट बॉडी देती है। दोनों ही बॉडी में बुद्धिजीवी वर्ग के लोग जुड़े होते हैं। 1947 से अब तक सिडीकेट और सीनेट बॉडी में कई संशोधन भी हुए ताकि बेहतर निर्णय हो सके, लेकिन इन्हें खत्म करने की बात कभी नहीं हुई। सीएमओ को दी गई एक्सटेंशन और मकान की मंजूरी

पंजाब यूनिवर्सिटी के स्वास्थ्य केंद्र में सीएमओ डॉ. दविदर धवन को दो साल की एक्सटेंशन देने के बाद 62 साल की उम्र में सेवानिवृत्त किया गया, लेकिन वाइस चांसलर ने बिना किसी की सहमति के सीएमओ को दोबारा तीन साल की नियुक्ति दी और उसे कैंपस में मकान भी दे दिया गया, हालांकि वह पीयू से बाहर खुद का क्लीनिक चला रहे हैं। यूजीसी नियमों के अनुसार हर शैक्षणिक संस्थान में सेक्सुअल हरासमेंट कमेटी का गठन होना जरूरी है। उस कमेटी में किस-किस सदस्य को शामिल करना है, इसका फैसला भी सिडीकेट और सीनेट करती थी, लेकिन जुलाई-अगस्त 2020 में सेक्सुअल हरासमेंट कमेटी का गठन हो गया, लेकिन किसी को पता तक नहीं चला कि कमेटी में चुने गए सदस्यों का चयन किस आधार पर हुआ है। दिसंबर महीने में सालभर में इस्तेमाल किए गए फंड पर चर्चा और अगले साल के फंड लेने के बोर्ड ऑफ फाइनेंस की मीटिग होती थी। जिसके बाद सिडीकेट की मंजूरी होती थी और अंत में सीनेट की मुहर लगने के बाद उसे यूजीसी को भेजा जाता था ताकि अगले साल के लिए जरूरत के अनुसार फंड मिल सके, लेकिन सीनेट खत्म होने के बावजूद अभी तक बोर्ड ऑफ फाइनेंस की बैठक नहीं हो सकी है। पंजाब यूनिवर्सिटी का कैलेंडर लोकतंत्र पर आधारित है। वाइस चांसलर खुद निर्णय लेकर लोकतंत्र को खत्म कर रहे हैं, जोकि पूरी तरह से गलत है।

-डॉ. राजेश गिल, पूर्व सिडीकेट और सीनेट सदस्य यूनिवर्सिटी शिक्षा विश्वसनीय संस्थान है। जिस तरह के फैसले वाइस चांसलर ले रहा है, इसे देखकर यह साफ तानाशाही हो रही है। इस पर आने वाले समय में विश्वास करना मुश्किल होगा।

-अशोक गोयल, सिडीकेट सदस्य सिडीकेट और सीनेट को खत्म करने या फिर इनमें संशोधन के लिए विचार-चर्चा जरूरी है। यदि वाइस चांसलर अपने स्तर पर ही सारे निर्णय ले लेंगे तो पीयू कैलेंडर का क्या अर्थ रह जाएगा। सीनेट और सिडीकेट को खत्म करने से पहले कैलेंडर पर जरूर ध्यान देना चाहिए।

-डॉ. रविदर नाथ शर्मा, सिडीकेट सदस्य

chat bot
आपका साथी