दो साल पहले पंजाब में बना था फसल भावातंर कानून, नियम अब तक तय नहीं किए

केरल में स‍ब्जियों के लिए न्‍यनूतम समर्थन मूल्‍य तय किए जाने से पंजाब सहित अन्‍य राज्‍यों पर भी इसके लिए दबाव बन गया है। पंजाब में यूं तो दो साल पहले इसके लिए भावातंर कानून बन गया था लेकिन इसके लिए नियम तय नहीं हुए।

By Sunil Kumar JhaEdited By: Publish:Fri, 30 Oct 2020 04:30 PM (IST) Updated:Fri, 30 Oct 2020 04:30 PM (IST)
दो साल पहले पंजाब में बना था फसल भावातंर कानून, नियम अब तक तय नहीं किए
पंजाब में सरकार भावातंर कानून दो साल पहले बन गया था।

चंडीगढ़, [इन्द्रप्रीत सिंह]। केरल में सब्जियों पर न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) निर्धारित करने के बाद अब अन्य राज्यों में भी सभी फसलों का समर्थन मूल्य सुनिश्चित करने का दबाव बढऩे लगा है। पंजाब में फसल भावातंर कानून दो साल पहले बन चुका है, लेकिन इसके लिए नियम अब तक तय नहीं किए गए हैं। दूसरी ओर, पंजाब में तीन केंद्रीय कृषि सुधार कानूनों को बेअसर करने के लिए भले ही कैप्टन सरकार ने विधानसभा में संशोधन विधेयक जरूर पास किए हैैं, लेकिन इन पर राष्ट्रपति की मुहर लगने को लेकर अनिश्चतता बरकरार है।

किसानों के हित के लिए बनाए गए कानून को लागू करने के लिए नहीं उठाए कदम

किसानों को राहत देने के लिए जो काम आसानी से किया जा सकता था, वह किसान हितों की रक्षा की राजनीति में उलझकर रह गया है। पंजाब विधानसभा में 27 अगस्त 2018 को वित्त मंत्री मनप्रीत बादल ने भावांतर बिल पेश किया। उस समय सभी पार्टियों ने गेहूं और धान के अलावा अन्य फसलों के बाजारी मूल्य और न्यूनतम समर्थन मूल्य के गैप को पूरा करने के लिए फंड बनाने का स्वागत किया था। बिल पारित होने के बाद कानून भी बन गया लेकिन इसे लागू करने के लिए दो साल से नियम ही नहीं बनाए जा सके हैैं।

कारपस फंड ही नहीं बना पाई पंजाब सरकार

केंद्र सरकार हर साल 24 फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य निर्धारित करती है, परंतु खरीद केवल गेहूं और धान की ही की जाती है। इसलिए ज्यादातर फसलें बाजार में न्यूनतम समर्थन मूल्य से कम पर बिकती हैं। ऐसा न हो इसके लिए पंजाब सरकार ने 1000 करोड़ रुपये का कारपस फंड बनाने के लिए एक्ट में संशोधन किया गया। इसमें धान व गेहूं पर लगने वाली आढ़त, मंडी फीस और रूरल डेवलपमेंट फंड (आरडीएफ) में से कुछ हिस्सा लेकर यह फंड बनाया जाना था।

वित्त मंत्री ने बताया कि इस फंड के लिए जितनी राशि राज्य सरकार इकट्ठा करेगी, उतनी ही राशि केंद्र सरकार की ओर से दी जाएगी। क्योंकि इस फंड के लिए आढ़तियों को मिलने वाली राशि का बीस फीसद काटा जाना था इस विरोध को देखते हुए पंजाब सरकार ने कारपस फंड बनाने की इच्छा शक्ति ही नहीं दिखाई। परिणाम स्वरूप पंजाब के किसान धान व गेहूं के फसली चक्र से बाहर नहीं आ पाए।

कर्नाटक सरकार ने अपनाया सफल माडल

कर्नाटक किसान आयोग के पूर्व चेयरमैन डा. टीएन प्रकाश ने सब्जियों और लुप्त हो रहे मोटे अनाज को उचित कीमत पर बेचने के लिए वर्ष  2014 में इसी तरह की योजना तैयार की थी। उन्होंने किसानों से कहा कि जब भी वह फसल बेचने के लिए मंडी में आएं तो पहले आयोग की वेबसाइट पर उसका रेट देख लें। अगर व्यापारी उस रेट पर खरीद नहीं कर रहे हैं तो किसान सरकार की एजेंसी को फसल बेच दें।

आयोग ने सभी मिड डे मील, आंगनबाड़ी केंद्रों में दी जाने वाली भोजन की योजनाओं को इससे जोड़ दिया और कहा कि अगर उन्हें सब्जियां आदि चाहिए तो वह सरकारी एजेंसी से खरीदें। डा. प्रकाश का कहना था कि इससे दो फायदे हुए, पहला व्यापारी किसानों को उचित कीमत देते, दूसरा अगर सरकार को खरीदनी भी पड़ती तो जेलों, आंगनबाड़ी केंद्रों और स्कूलों के मिड डे मील आदि में उसकी खपत हो जाती थी। उन्होंने बताया कि मंडियों में बिकने वाले अनाज पर 1.5 फीसद टैक्स लगाकर कर्नाटक ने 1500 करोड़ की व्यवस्था की थी जिससे सब्जियां आदि खरीदी जातीं हैं।

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