मोहाली में सेहत मंत्री सिद्धू का शिअद पर हमला, बोले- सिर्फ बलि देने के लिए उतारता है उम्मीदवार
मोहाली नगर निगम चुनाव को लेकर राजनीति पूरी तरह से गरमा गई है। सेहत मंत्री बलबीर सिंह सिद्धू शिरोमणि अकाली दल पर जमकर निशाना साध रहे है। सिद्धू ने कहा कि मोहाली विधानसभा क्षेत्र में हमेशा ही शिअद ने बाहरी उम्मीदवार को मैदान में उतारा है।
मोहाली, रोहित कुमार। मोहाली नगर निगम चुनाव को लेकर राजनीति पूरी तरह से गरमा गई है। सेहत मंत्री बलबीर सिंह सिद्धू शिरोमणि अकाली दल पर जमकर निशाना साध रहे है। सेहत मंत्री ने दैनिक जागरण से बातचीत में कहा कि शिअद तो मोहाली में अपना पैराशूट उम्मीदवार सिर्फ बलि देने के लिए उतारता है। बात चाहे पंजाब के पूर्व वित्त मंत्री स्वर्गीय कैप्टन कंवलजीत सिंह के बेटे जसजीत सिंह बन्नी की हो या फिर विधानसभा चुनाव में उतारे गए मोहाली के पूर्व डीसी टीपीएस सिद्धू की हो। 2022 में भी ऐसा करने की तैयारी की जा रही है, लेकिन सबको मुंह की खानी पड़ी है। बलबीर सिंह सिद्धू ने कहा कि कांग्रेस सिर्फ विकास के मुद्दे पर चुनाव लड़ेगी।
बता दें कि मोहाली विधानसभा क्षेत्र में हमेशा ही शिअद ने बाहरी उम्मीदवार को मैदान में उतारा है। लंबे समय से इस सीट पर सेहत मंत्री बलबीर सिंह सिद्धू का कब्जा है। वे लगातार तीन बार विधायक चुन कर आए, इसलिए उन्हें कैबिनेट मंत्री का पद भी मिला। 2007 में शिअद ने खरड़ विधानसभा हलके (उस समय मोहाली हलका नहीं था) से कैप्टन कंवलजीत सिंह के बेटे जसजीत सिंह बन्नी को खरड़ से टिकट देकर कांग्रेस बलबीर सिंह सिद्धू के खिलाफ मैदान में उतारा।
चूंकि कंवलजीत सिंह डेराबस्सी से लड़ते थे और बन्नी को खरड़ से लड़वाया, इसलिए जीत नहीं सके। 2012 में मोहाली विधानसभा हलके से शिअद ने बलवंत सिंह रामूवालिया पर दाव लगाया लेकिन वे भी हार गए। 2015 में रामूवालिया को ही मोहाली नगर निगम चुनाव की जिम्मेदारी दी गई। जिससे पूर्व मेयर कुलवंत सिंह नाराज हो गए और आजाद लड़ने का फैसला कर लिया। शिअद ने कुलवंत को बागी करार देते हुए पार्टी से बर्खासस्त कर दिया। 2017 में शिअद ने मोहाली विधानसभा हलके से पूर्व आईएएस अधिकारी टीपीएस सिद्धू को मैदान में उतारा लेकिन वे भी हार गए। दोनों के खिलाफ सेहत मंत्री ने ही चुनाव लड़ा।
शिअद पढ़े लिखे उम्मीदवारों को उतारेगाः चंदूमाजरा
श्री आनंदपुर साहिब से पूर्व सांसद सदस्य प्रो प्रेम सिंह चंदूमाजरा ने कहा कि पंजाब के लोगों पर चुनाव थोपा गया है। इसका असर किसान आंदोलन पर पड़ेगा। अगर कोई पार्टी के निशान पर चुनाव नहीं लड़ना चाहता तो क्या कह सकते है। किसी पर निशान थोपा तो नहीं जा सकता? लेकिन शिअद पढ़े लिखे उम्मीदवारों को ही मैदान में उतारेगा।