अलविदा मिल्खा सिंह
वैसे तो मिल्खा सिंह ने अपने जीवन में सब कुछ हासिल किया था लेकिन उनका एक सपना अधूरा रह गया और वह इस अधूरे सपने के साथ जिंदगी को अलविदा कर गए।
विकास शर्मा, चंडीगढ़ : वैसे तो मिल्खा सिंह ने अपने जीवन में सब कुछ हासिल किया था, लेकिन उनका एक सपना अधूरा रह गया और वह इस अधूरे सपने के साथ जिंदगी को अलविदा कर गए। उड़न सिख पद्मश्री मिल्खा सिंह अक्सर कहते थे कि रोम ओलंपिक जाने से पहले उन्होंने दुनिया भर में कम से कम 80 दौड़ों में हिस्सा लिया था, इनमें उन्होंने 77 दौड़ें जीतीं थी। जो एक रिकार्ड बन गया था। सारी दुनिया ये उम्मीदें लगा रही थी कि रोम ओलंपिक में 400 मीटर की दौड़ मिल्खा ही जीतेगा। मैं अपनी गलती की वजह से मेडल नहीं जीत सका। मैं इतने वर्षो से इंतजार कर रहा हूं कि कोई दूसरा इंडियन वो कारनामा कर दिखाए, जिसे करते-करते मैं चूक गया था, लेकिन कोई एथलीट ओलंपिक में मेडल नहीं जीत पाया। एथलीट्स को चाहिए कोई एक रोल मॉडल
मिल्खा सिंह कहते थे कि अगर रोम ओलंपिक में मेडल जीत जाता तो आज देश में जमैका की तरह हर घर से एथलीट्स निकलते। मैं रोम में मेडल जीतने से नहीं चूका, बल्कि मैं इस देश को रोल मॉडल और सपने देने से चूक गया था। पीटी ऊषा और श्रीराम सिंह जैसे एथलीट भी मेडल जीतने से चूक गए, जिनसे देश को खासी उम्मीदें थी। अगर हम मेडल जीत गए होते तो एथलेटिक्स गेम्स के प्रति भी युवाओं में वो ही आकर्षण होता जो ध्यानचंद के समय हॉकी का और वर्ष 1983 में क्रिकेट वर्ल्ड कप जीतने के बाद क्रिकेट का था। मैं इतने सालों से इंतजार कर रहा, लेकिन मेरा इंतजार खत्म नहीं हुआ।
एथलेटिक्स गेम्स को भी मिले क्रिकेट की तरह तव्वजो
पद्मश्री मिल्खा सिंह अक्सर हर मंच से यह शिकायत करते थे कि क्रिकेट सिर्फ 10 से 14 देश खेलते हैं, बावजूद इसके उसे मीडिया की तरफ से ज्यादा कवरेज दी जाती है, लेकिन एथलेटिक्स गेम्स 200 से ज्यादा देश खेलते हैं, उस लिहाज से एथलेटिक्स गेम्स को तव्वजो नहीं दी दिया जाता है। इसलिए एथलेटिक्स में महत्व को हमें समझना होगा। मिल्खा सिंह को टोक्यो ओलंपिक में एथलीट हिमादास से खासी उम्मीदें थी। इस बाबत उन्होंने उन्हें तैयारी के टिप्स भी दिए थे।