कांग्रेस और AAP के लिए मुसीबत पैदा करेेगी बसपा, पंजाब में हाथी पर बैठ सुखबीर ने साधा बड़ा निशाना
शिरोमणि अकाली दल के प्रधान सुखबीर सिंह बादल ने बहुजन समाज पार्टी के हाथी पर चढ़कर पंजाब में कांग्रेस और आम आदमी पार्टी पर बड़ा निशाना साधा है। बसपा 2022 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस और आप के लिए मुसीबत पैदा करेगी।
चंडीगढ़, [कैलाश नाथ]। शिरोमणि अकाली दल (SAD) के प्रधान सुखबीर बादल ने उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती की बहुजन समाज पार्टी (BSP) के हाथी पर सवार होकर पंजाब और आम आदमी पार्टी पर बड़़ा निशाना साधा है। बसपा 2022 के विधान सभा चुनाव में कांग्रेस (Congress) और आप (AAP) के मुश्किल पैदा करेगी।
दरअसल, सुखबीर ने बहुजन समाज पार्टी (BSP) के साथ समझौता करके बड़ी सियासी चाल चली है। उन्होंने इस कदम से कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के लिए अभी भी से मुश्किलें पैदा करनी शुरू कर दी हैं। शिरोमणि अकाली दल ने जिन 20 सीटों को बसपा के लिए छोड़ा है उसमें से 18 सीटों पर कांग्रेस के विधायक है। इस समझौते का सीधा असर कांग्रेस और आम आदमी पार्टी पर पड़ना भी तय है। बसपा ने भी सीट बंटवारे में 12 ऐसी सीटों पर चुनाव लड़ने का दम भरा है जोकि जनरल है। इससे साफ संकेत मिलते है कि बसपा पंजाब में केवल दलित सीटों पर ही सिमट कर नहीं रहना चाहती है।
दलित वोट बैंक में हाथी और तकड़ी ने की सेंधमारी तो सबसे अधिक नुकसान उठाना होगा कांग्रेस और आप को
आगमी विधान सभा को लेकर नए गठबंधन को लेकर अकाली दल ने एक ही तीर से कई निशाने भी साधने की कोशिश की है। एक तरफ उन्होंने कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के दलित वोटबैंक में सेंधमारी करने की कोशिश की है तो वहीं, उसने उस आरोपों को भी खारिज करने की कोशिश की कि गठबंधन टूटने के बावजूद अकाली दल और भाजपा अंदरखाते एक है। उसने बसपा को जो सीटें दी गई है उसमें से आठ एसी सीटें है जहां पर भाजपा का अच्छा जनाधार माना जाता रहा है। इनमें पठानकोट, सुजानपुर, जालंधर उत्तरी,जालंधर पश्चिमी, दसुहा, होशियारपुर, फगवाड़ा और भोआ शामिल है। हालांकि इसमें से वर्तमान में महज सुजानपुर ही ऐसी सीट है जहां पर भाजपा का उम्मीदवार जीता है। इसमें से अगर भोआ की सीट को छोड़ दिया जाए तो सारी सीटें ही शहरी क्षेत्र में आती है।
चूंकि कृषि सुधार कानून को लेकर किसान संगठनों के विरोध के कारण भाजपा के पास ग्रामीण क्षेत्रों में जाने के रास्ते बहुत सीमित हो गए है। वहीं, भाजपा को शहरी क्षेत्रों पर ही भरोसा करना पड़ रहा है। बता दें की पंजाब में दलित कोटे के लिए 117 सीटों वाली विधान सभा में 34 सीटें रिजर्व है।
2017 के चुनाव परिणामों पर नजर डाली जाए तो दलित सीटों पर कांग्रेस के बाद आम आदमी पार्टी का बोलबाला रहा। कांग्रेस ने 34 में से 21 सीटों पर विजय हासिल की थी। नौ सीटों पर आप के प्रत्याशी जीते थे। भाजपा के खाते में एक और अकाली दल के खाते में 3 सीटें आई थी। वो भी सारी दोआबा की थी। मालवा और माझा में अकाली दल का खाता भी नहीं खुल पाया था।
2019 में फगवाड़ा से विधायक रहे सोम प्रकाश के लोक सभा चुनाव जीतने के बाद सीट खाली होने पर कांग्रेस ने इस सीट को जीत लिया था। जिसके बाद कांग्रेस के पास 22 दलित विधायक हो गए थे। अकाली दल की नजर कांग्रेस और आप के उसी वोट बैंक पर है। वहीं, अकाली दल ने दोआबा की 8 सीटें बसपा को दी है। क्योंकि दोआबा में दलितों का दबदबा है। राजनीतिक पंडित भी मानते है कि दोआबा में दलित राजनीतिक के समीकरण का असर पूरे प्रदेश पर पड़ता है।
वहीं, आप विधायक दल के नेता हरपाल चीमा का कहना है, अपना अस्तित्व बचाने के लिए शिरोमणि अकाली दल ने बेमेल गठबंधन किया है। बसपा का आधार पहले भी नहीं था और शिअद का आधार खत्म हो चुका है। यह गठबंधन तो केवल एक दूसरी की पीठ खुजलाने के लिए है।
वहीं, कांग्रेस ने भी इस इस गठबंधन का आड़े हाथों लिया है। कांग्रेस के प्रदेश प्रधान सुनील जाखड़ का कहना है कि सुखबीर बादल के पास विकल्प न के बराबर है। उनके नेतृत्व में अकाली दल का जनाधार खत्म हो रहा है। यह बात उन्हें भी पता है। बेअदबी दल का गठबंधन उनकी 2022 में कोई मदद नहीं कर पाएगा।