Punjab Assembly Election 2022: पंजाब में सभी दलों की नजर हिंदू वोटरों पर, खास सियासी कार्ड की तैयारी

Punjab Assembly Election 2022 पंजाब के 2022 में होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर सियासी सरगर्मी तेज होने लगी है। इस बार सभी दलों की हिंंदू मतदाताओं पर खास नजर है और वे अपने तरीके से हिंदू कार्ड चलने की तैयारी कर रहे हैं।

By Sunil Kumar JhaEdited By: Publish:Fri, 22 Oct 2021 02:30 AM (IST) Updated:Fri, 22 Oct 2021 05:38 PM (IST)
Punjab Assembly Election 2022: पंजाब में सभी दलों की नजर हिंदू वोटरों पर, खास सियासी कार्ड की तैयारी
पंजाब विधानसभा चुनाव 2022 के लिए सभी दलों ने गतिविधियां शुरू कर दी है। (फाइल फोटो)

चंडीगढ़, [कैलाश नाथ]। Punjab Assembly Election 2022: पंजाब में अगले साल 2022 में होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर सियासी गतिविधियां जोर पकड़ने लगी हैं और सभी राजनीतिक दलों ने इसके लिए तैयारियां शुरू कर दी हैं। ये चुनाव इस बार 2017 से काफी अलग होगा और पार्टियां ने मुद्दे की तलाश के संग वोट बैं‍क की राजनीति पर अभी से फोकस करना शुरू कर दिया है। सभी पार्टियों की नजर इस बार खास तौर पर हिंंदू मतदाताओं पर है। वे हिदुओं को ध्‍यान में रखकर खास सियासी कार्ड चलने की तैयारी में हैं।     

सरकार बनाने में अहम भूमिका निभाएगा हिंदू वोट बैंक     

राज्य के ताजा राजनीतिक हालात को देखते हुए राजनीतिक पंडितों का कहना है कि इस बार के चुनाव पिछले चुनावों से अलग होंगे। इस बार के चुनाव पार्टी से ज्यादा व्यक्तिगत छवि पर हो सकते हैं। इसका मुख्य कारण कांग्रेस का अंतर्कलह और किसान आंदोलन बताया जा रहा है। इस सबके बीच पंजाब का हिंदू वोट बैंक को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए सभी पार्टियों ने कसरत शुरू कर दी है। कांग्रेस ने तो बाकायदा एक सर्वे भी करवाया है। इसके अनुसार हिंदू मतदाता जिस पार्टी के साथ जाते हैं तो सरकार उसी पार्टी की बनती है। आंकड़ों के हिसाब से राज्य में 38.49 फीसद हिंंदू और 31.94 फीसदी अनुसूचित जाति ( इनमें हिंदू और सिख दोनों ही हैं) के मतदाता हैं।

शिरोमणि अकाली दल करीबी बढ़ा रहा तो कांग्रेस को हिंदू मतदाताओं के छिटकने का डर

पंजाब में पहली बार एससी मुख्यमंत्री बनाने के बावजूद कांग्रेस खुद से छिटक रहे हिंदू वोट बैंक के कारण चिंतित है। शिरोमणि अकाली दल ने घोषणा की है कि उनकी सरकार बनने पर एक एससी और एक हिंदू को उपमुख्यमंत्री बनाया जाएगा। इससे एक कदम आगे बढ़ते हुए कांग्रेस ने एससी को मुख्यमंत्री और एक हिंदू (ओपी सोनी) को उपमुख्यमंत्री बना दिया है। इसके बावजूद कांग्रेस की परेशानी खत्म नहीं हो रही है। क्योंकि,  कांग्रेस के पास ऐसा कोई हिंदू चेहरा नहीं है जोकि राज्य के बड़े हिस्से में अपना प्रभाव रखता हो।

उधर कैप्टन अमरिंदर सिंह के अपनी पार्टी बनाने के एलान के बाद कांग्रेस की परेशानी और बढ़ गई है। क्योंकि,  अब तक पंजाब में हिंदू मतदाता कैप्टन के साथ रहे हैं। कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता के अनुसार पंजाब में हिंदू न तो फ्री बिजली चाहता है और न ही उनकी कोई बड़ी लालसा है। वह शांति और सुरक्षा की उम्मीद रखता है।

इसके बीच शिरोमणि अकाली दल ने हिंदू मतदाताओं को अपने पक्ष में करने के लिए मुहिम शुरू कर दी है। यही कारण है कि सुखबीर बादल ने नवरात्रि के दौरान माता चिंतपूर्णी मंदिर से लेकर अन्य मंदिरों में माथा टेका। इसके बाद आम आदमी पार्टी भी खासी बेचैन हो गई। आप के संयोजक और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने भी दिल्ली से सीधा जालंधर में श्री देवी तालाब मंदिर में जाकर माथा टेका।

वहीं किसान आंदोलन के कारण भाजपा एक बार फिर पूर्ण रूप से हिंदुओं पर निर्भर हो गई है। कृषि कानून के विरोध में हो रहे किसान आंदोलन के कारण भाजपा को इस बात की कतई उम्मीद नहीं है कि गांवों में व सिखों में उन्हें तरजीह मिल सकती है। यही कारण है कि भाजपा ने अपनी नजर उन 45 सीटों पर लगा रखी है जहां पर 60 फीसद से अधिक हिंदू आबादी है।

वहीं, 38 सीटें वह हैं जहां पर 60 फीसद से अधिक हिंदू और अनुसूचित जाति आबादी है। भाजपा यह बात अच्छी तरह से समझ रही है कि चुनाव से पहले अगर कृषि कानूनों का हल नहीं निकल पाया तो उनके पास सीमित विकल्प होंगे। ऐसे में शहरी हिंदू ही उसके लिए आक्सीजन का काम करेगा।

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