कृषि कानूनों पर शिअद का हाल, मंत्री पद छूटा, गठबंधन टूटा, फिर भी नहीं जीत पाए किसानों का विश्वास

कृषि कानूनों पर सबसे ज्यादा नुकसान अकाली दल को झेलना पड़ा। अकाली दल ने केंद्रीय मंत्री पद भी गंवाया भाजपा से वर्षों पुराना गठबंधन भी टूटा और फिर भी वह किसानों का विश्वास भी पार्टी नहीं जीत पाई।

By Kamlesh BhattEdited By: Publish:Fri, 23 Oct 2020 01:25 PM (IST) Updated:Fri, 23 Oct 2020 02:45 PM (IST)
कृषि कानूनों पर शिअद का हाल, मंत्री पद छूटा, गठबंधन टूटा, फिर भी नहीं जीत पाए किसानों का विश्वास
हरसिमरत कौर बादल व सुखबीर सिंह बादल। फाइल फोटो

चंडीगढ़ [कैलाश नाथ]। केंद्रीय कृषि कानूनों को लेकर देश की सबसे पुरानी क्षेत्रीय पार्टी शिरोमणि अकाली दल की हालत, न ख़ुदा ही मिला न विसाल-ए-सनम, न इधर के हुए न उधर के हुए जैसी हो गई है। कृषि कानून के मामले में अगर किसी ने सबसे ज्यादा खोया तो वो अकाली दल है। कृषि कानूूूूूनों के विरोध में अकाली दल ने केंद्रीय कैबिनेट से अपनी कुर्सी खोई। भारतीय जनता पार्टी के साथ 24 साल पुराना अपना रिश्ता खोया। किसानों का भरोसा जीतने के लिए जहां यह सब किया, वहीं न तो किसानों का भरोसा जीत पाए और न ही कानून को लागू होने से रोक पाए।

कृषि सुधार को लेकर आए तीन कानूनों ने अकाली दल की तस्वीर ही बदल कर रख दी। केंद्र सरकार जब अध्यादेश लेकर आई तब अकाली दल ने इसका समर्थन किया। अकाली दल के प्रधान सुखबीर बादल ने बकायदा वीडियो जारी कर इसको सही बताया और मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह पर यह आरोप लगाया कि वह किसानों को गुमराह कर रहे है।

यही नहीं, केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर का पत्र दिखाकर अकाली दल ने किसानों को यह बताया कि न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) बंद नहीं होगी, जो कि किसानों की सबसे बड़ी आशंका थी कि नए कानून के साथ उनकी फसल एमएसपी पर नहीं खरीदी जाएगी। अकाली दल के सारे प्रयास उस समय व्यर्थ हो गए जब किसानों ने उन पर विश्वास नहीं किया। इसके कारण कृषि बिल के लोकसभा में पेश होने के बाद अकाली दल ने अपना स्वर बदल लिया।

अकाली दल ने यह कहा कि जब तक किसानों की शंकाएं दूर नहीं हो जाएंं तब तक इसे पास नहीं होना चाहिए। बिल ने जब कानून की शक्ल ले ली तो अकाली दल ने केंद्रीय मंत्री हरसिमरत कौर बादल का इस्तीफा दिलवा दिया। जिसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तत्काल स्वीकार कर लिया। कैबिनेट की कुर्सी गंवाने के बाद अकाली दल ने घी-खिचड़ी (पूर्व मुख्यमंत्री व अकाली दल के संरक्षक प्रकाश सिंह बादल भाजपा के साथ के रिश्तों को संज्ञा देते थे) के रिश्ते को भी 24 साल बाद तोड़ लिया। रिश्ते तोड़ने के बावजूद किसान संगठनों का विश्वास अकाली दल पर नहीं जमा।

सरकार का साथ देकर भी हाथ खाली

पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने केंद्रीय कानूनों का प्रभाव कम करने के लिए विधानसभा में बिल लाने की घोषणा की। अकाली दल ने इन बिलों का समर्थन करने की घोषणा कर दी। 20 अक्टूबर 2020 को कांग्रेस सरकार द्वारा लाए गए कृषि बिलों व प्रस्ताव का अकाली दल ने 5.45 घंटे तक चली बहस में समर्थन किया। बिल पास होने के बाद अकाली दल के विधायक मुख्यमंत्री के साथ राजभवन में राज्यपाल वीपी सिंह बदनौर को बिल की कापी देने के लिए साथ में गए। यहां पर अकाली दल ने मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह के साथ संयुक्त रूप से प्रेस कांफ्रेंस भी की।

इसके दो दिन बाद ही अकाली दल प्रधान सुखबीर बादल ने कहा कि कैप्टन अमरिंदर सिंह ने किसानों व पंजाब के लोगों को बेवकूफ बनाया, जो बिल पास किए गए हैंं उससे केंद्रीय बिलों को रोका नहीं जा सकता है। अलबत्ता तो इस बिल पर राष्ट्रपति साइन नहीं करेंगे। अगर कर भी दे तो भी किसानों का फायदा नहीं होने वाला है, क्योंकि इस बिल में कहीं भी इसका जिक्र नहीं किया गया कि अगर केंद्र एमएसपी पर खऱीद नहीं करता है तो राज्य सरकार एमएसपी किसानों के देगी। अतः केंद्र का ही कानून लगेगा।

अहम बात यह है कि केंद्र का ही कानून अगर लागू होता है तो सब कुछ गंवा कर भी अकाली दल के हाथ खाली ही रह जाएंगे। अकाली दल को उम्मीद थी कि पंजाब विधान सभा द्वारा पास किए गए बिलों से किसान संतुष्ट नहीं होंगे, लेकिन किसान संतुष्ट भी दिखाई दे रहे हैंं किसानों ने अनिश्चितकाल के लिए रेल रोकने के अपनी काल में छूट भी दे दी। जिसके कारण 27 दिनों के बाद मालगाड़ियां रेल पटरी पर दौड़ने भी लगी हैं।

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