कम कीमत पर खरीदी प्रॉपर्टी का बेचने पर कई गुना प्रॉफिट लेता है प्रशासन

शहर में कामर्शियल प्रॉपर्टी और निजी सोसायटियों के फ्लैटधारकों से प्रशासन ने चार्ज किए जाने वाले अन-अर्नड प्रॉफिट का मामला गरमा गया है।

By JagranEdited By: Publish:Sun, 17 Oct 2021 11:55 PM (IST) Updated:Sun, 17 Oct 2021 11:55 PM (IST)
कम कीमत पर खरीदी प्रॉपर्टी का बेचने पर कई गुना प्रॉफिट लेता है प्रशासन
कम कीमत पर खरीदी प्रॉपर्टी का बेचने पर कई गुना प्रॉफिट लेता है प्रशासन

राजेश ढल्ल, चंडीगढ़

शहर में कामर्शियल प्रॉपर्टी और निजी सोसायटियों के फ्लैटधारकों से प्रशासन ने चार्ज किए जाने वाले अन-अर्नड प्रॉफिट का मामला गरमा गया है। प्रशासक बनवारी लाल पुरोहित के दरबार में भी यह मामला पहुंच गया है। असल में यह अन-अर्नड प्रॉफिट उन प्रॉपर्टी पर चार्ज होता है जो कि प्रशासन ने शहरवासियों को प्रॉपर्टी अलॉट की गई है। प्रशासन ने दो साल पहले रेजिडेंशियल प्रॉपर्टी से अन-अर्नड प्रॉफिट चार्ज करने के फैसले को खारिज कर दिया है, ऐसे में यह सिर्फ कामर्शियल और निजी सोसायटियों से चार्ज किया जा रहा है। शहर के दक्षिणी सेक्टर में 130 निजी सोसायटियां हैं जहां हजारों फ्लैट हैं, जबकि नीलामी से खरीदी गई प्रॉपर्टी बेचने पर अन-अर्नड प्रॉफिट चार्ज नहीं होता है। ऐसे में शहरवासियों का कहना है कि एक शहर में एक ही तरह की प्रॉपर्टी पर अलग-अलग नियम क्यों लागू हो रहे हैं। चंडीगढ़ में सेक्टर-48 से 51 तक 108 ग्रुप हाउसिग सोसायटीज हैं। वहां लगभग 13 हजार परिवार रहते हैं। क्या है अन-अर्नड प्रॉफिट

जब अलॉट हुई प्रॉपर्टी को उसका मालिक किसी और को बेचता है तो रजिस्टरी के समय वर्तमान प्रॉपर्टी के वैल्यू का एक-तिहाई अनअर्नड प्रॉफिट का शुल्क प्रशासन चार्ज करता है, जबकि लोगों का यह भी कहना है कि अगर अन-अर्नड प्रॉफिट लेना ही है तो अलॉटमेंट वैल्यू का लिया जाना चाहिए। शहर में 50 फीसद दुकानें और शोरूम ऐसे हैं जो कि प्रशासन की ओर से अलॉट किए गए हैं। बाकी कामर्शियल प्रॉपर्टी नीलामी से मालिकों ने खरीदी है। नीलाम प्रॉपर्टी पर अन-अर्नड प्रॉफिट चार्ज नहीं किया जाता है। दो अलग अलग नियम

उद्योग व्यापार मंडल ने मामले में गृह मंत्रालय को भी पत्र लिखा है। उद्योग व्यापार मंडल के संयोजक कैलाश जैन का कहना है कि 40 साल पहले प्रशासन ने एक दुकान को दो लाख रुपये में अलॉट किया, जबकि उसके साथ वाले ने उसी तरह की दुकान सवा दो लाख रुपये में बोली लगाकर दुकान खरीदी। ऐसे में अगर दो लाख रुपये खरीदी गई दुकान अगर वह बेचता है तो इस समय उसकी मार्केट वैल्यू एक करोड़ रुपये है, ऐसे में उसे एक-तिहाई अन-अर्नड प्रॉफिट भी प्रशासन को जमा करवाना होगा। जो कि अलॉटमेंट में दी गई राशि के मुकाबले में कई गुना है। जबकि नीलामी से खरीदी गई प्रापर्टी बेचने पर यह नियम लागू नहीं होता है। उनका कहना है कि इसी कारण अलॉट प्रॉपर्टी पावर ऑफ अटार्नी पर बिक्री हो रही है इससे प्रशासन को ही नुकसान है, क्योंकि उन्हें स्टांप डयूटी नहीं मिल पा रही है। निजी सोसाइटियों में भी अगर कोई अपना फ्लैट बेचता है तो उसे फ्लैट की मार्केट वैल्यू का अनअर्नड प्रॉफिट अदा करना पड़ता है। प्रशासन ने कई साल पहले फ्लैट बनाने के सोसायटी की जमीन अलॉट की थी। अब हाल ये है कि अगर कोई भी व्यक्ति फ्लैट ट्रांसफर करवाता है तो उसने अनअर्नड प्रॉफिट के नाम पर आठ से 13 लाख रुपये तक भरने पड़ते हैं। इसके अलावा रजिस्ट्री का खर्चा और 18 प्रतिशत जीएसटी का भी भुगतान करना पड़ता है।

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