गांव जवाहर नगर को सुविधाओं की दरकार
राज्य में पंचायती चुनाव का बिगुल बजने में चंद दिन बाकी रह गए हैं।
जीवन ¨जदल, रामपुरा फूल : राज्य में पंचायती चुनाव का बिगुल बजने में चंद दिन बाकी रह गए हैं। पंचायती चुनाव की घोषणा होते ही विभिन्न राजनीतिक दलों तथा चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों द्वारा लोगों को लुभाने के लिए वादों का सिलसिला भी शुरू हो जाएगा। राजनीतिक दलों द्वारा किए जाने वाले चुनावी वादे कितने सच साबित होते हैं इसका अंदाजा ब¨ठडा-बरनाला नेशनल हाईवे पर स्थित स्टैलको फाटक के समीप बसे गांव जवाहर नगर को देखकर आसानी से लगाया जा सकता है। करीब एक दशक पहले शहर से अलग कर गांव का दर्जा दिए जाने के बावजूद अभी तक गांव के लोगों को मूलभूत सुविधाएं नसीब नहीं हुई हैं। गत दस वर्षों के दौरान गांव में दो बार पंचायत चुनाव होने के बावजूद गांव में न तो कोई स्कूल, न डिस्पेंसरी, न आरओ प्लांट। यहां तक कि गांव के लोगों को पंचायत घर जाने के लिए तीन किलोमीटर दूर जाना पड़ता है।
गांव में स्कूल न होने के कारण बच्चों को करीब चार किलोमीटर का सफर तय करना पड़ता हैं। ऐसा ही हाल स्वास्थ्य सुविधाओं का भी है। गांव में कोई सरकारी डिस्पेंसरी न होने के कारण गांव के लोग हल्के बुखार के उपचार हेतु भी शहर में स्थित अस्पताल में आने को मजबूर हैं। ऐसे में यहां उनके समय और पैसे का नुकसान होता है वहीं बीमारी के बढ़ने का भी भय बना रहता है।
गांव में वाटर वर्कर्स तथा आरओ प्लांट की सुविधा न होने के कारण गांववासियों को अपने स्तर पर पानी का प्रबंध करने अथवा गांव के समीप से गुजरने वाले रजवाहे से पानी लेने को मजबूर होना पड़ता है। गांव की गलियों-नालियों की हालत इस कदर दयनीय है कि वाहन पर जाना तो दूर ज्यादातर मौकों पर पैदल चलना भी मुश्किल हो जाता है।
650 के करीब वोट हैं गांव में
रामपुरा तथा मौड़ की सीमा पर पड़ने वाला गांव जवाहर नगर विधानसभा हलका मौड़ का आखिरी गांव है। दो सौ के करीब घरों वाले इस गांव में 650 के करीब वोटर हैं। गांव की ज्यादातर आबादी दलित समुदाय तथा बाहरी राज्यों से मजदूरों की है। ज्यादातर लोगों के पास अपने मकान न होने के कारण वे झुग्गी-झोपड़ी में रहने को मजबूर हैं। दैनिक जागरण द्वारा एकत्र की गई जानकारी के मुताबिक वर्ष 1978 में मोहल्ला जवाहर नगर के रूप में आबाद हुआ। यह क्षेत्र करीब तीन दशक तक रामपुरा फूल के एक मोहल्ले के तौर पर जाना जाता था। करीब दस वर्ष पहले इसे गांव के दर्जा देकर इसकी अलग पंचायत बना दी गई। किन्तु न तो रामपुरा फूल के मोहल्ले तथा न ही गांव के रूप में इस क्षेत्र को कोई सुविधाएं मिल पाईं। सांसद हरसिमरत कौर बादल के लोकसभा हलका ब¨ठडा के इस गांव की हालत ज्यों की त्यों बनी हुई है। गांव के लोगों का कहना है कि चुनाव के समय गांव के विकास के बड़े-बड़े वायदे करने वाले राजनीतिक दलों के नेता चुनाव के बाद गांव में आने से भी कतराते हैं। लोगों द्वारा गांव में जल्द से जल्द पानी से लेकर स्कूल, डिस्पेंसरी इत्यादि सुविधाएं मुहैया करवाने की मांग की।
सुविधाओं से वंचित है लोग
गांव के पूर्व पंचायत सदस्य तथा सीनियर कांग्रेसी नेता गुरमेल ¨सह ने कहा कि शिअद सांसद हरसिमरत कौर के लोक सभा हलका ब¨ठडा का गांव होने के बावजूद दस वर्ष तक राज्य की सत्ता में रहने वाली शिअद-भाजपा गठबंधन सरकार द्वारा इस गांव की तरफ कोई ध्यान नहीं दिया गया। गांववासी जितेंद्र मेहरा ने कहा कि गांव में मूलभूत सुविधाओं की कमी का खामियाजा गांववासियों को भुगतना पड़ रहा है। गांव में पंचायत सचिव के पद रह चुके प्रदीप कुमार ने बताया कि गत समय में गांव में छह से सात लाख रुपये की ग्रांट आ चुकी है। इससे गांव की गलियों के अलावा स्ट्रीट लाइटों का काम करवाया गया है।