बाणी से ही होती है नरक व स्वर्ग की प्राप्ति: राजेंद्र मुनि

जैन सभा प्रवचन हाल में संत डा. राजेंद्र मुनि ने आदिनाथ भगवान की प्रार्थना में आए भावों की विवेचना की।

By JagranEdited By: Publish:Tue, 19 Oct 2021 09:45 PM (IST) Updated:Tue, 19 Oct 2021 09:45 PM (IST)
बाणी से ही होती है नरक व स्वर्ग की प्राप्ति: राजेंद्र मुनि
बाणी से ही होती है नरक व स्वर्ग की प्राप्ति: राजेंद्र मुनि

संस, बठिडा: जैन सभा प्रवचन हाल में संत डा. राजेंद्र मुनि ने आदिनाथ भगवान की प्रार्थना में आए भावों की विवेचना करते हुए कहा कि वीतराग देव की वाणी पूर्णत: अध्यात्म को लेकर होती है। उनके वचनों में तनिक मात्र भी किसी भी प्रकार की सांसारिक बातों का उल्लेख ही नहीं मिलता। इसीलिए वह जिनवाणी कहलाती है।

उन्होंने कहा कि वर्तमान समय में दुनिया के लोगों में वह भाषा नहीं आ पाती जो पूर्णत: आत्म कल्याण की होती है। कारण, संसारी जीवों में राग द्वेष का अंश मौजूद रहता है, जबकि वे पूर्णत: मुक्त होते हैं। यही कारण है कि उनका एक-एक शब्द मन में त्याग वैराग्य को जागृत करता है। मुनि जी ने वाणी पर विचार रखते हुए कहा हमारी वाणी में असत्य, हिसा, लोभ और विकार का प्रयोग नहीं होना चाहिए। वाणी में मधुरता व मिठास होनी चाहिए। इतिहास गवाह है कि महाभारत का मूल कारण ही अपशब्द रहे हैं। अगर अपशब्द न बोले जाते तो शायद विनाश भी नहीं होता। आज घर परिवार संघ समाज में टूट फूट बढ़ती जा रही है। उसका मूल कारण वाणी व्यवहार ही है। सत्य वाणी को धर्म व असत्य वाणी को पाप कहा जाता है। दिनभर असत्य का प्रयोग कर हम निरर्थक पाप के भागीदार बनते हैं। स्वयं भी दुखी होते हैं एवं दूसरों को भी दुख पंहुचाते हैं। आज आवश्यकता है सर्वप्रथम हम अपनी वाणी में सुधार लाएं। तभी मन व तन में भी शांति उपलब्ध हो पाएगी।

सभा में साहित्यकार सुरेंद्र मुनि ने भक्तामर का सुंदर वर्णन विवेचन प्रदान किया। उन्होंने कहा कि भक्तामर जी का एक-एक शब्द अमृत व मोक्ष का प्रदाता है। इस भव परभाव को सुखी बनाने वाला है। भावों में उत्कृष्टता प्रदान करने वाला है। इसके अड़तालिस श्लोकों से मानसिक वाचिक संपूर्ण कष्टों का निवारण होता है। आवश्यकता है विश्वास के साथ इसका पठन पाठन करने की। महामंत्री उमेश जैन द्वारा स्वागत व सूचनाएं प्रदान की गई।

chat bot
आपका साथी