धर्म से मिटते हैं मानसिक व शारीरिक कष्ट: डा. राजेंद्र मुनि
जैन सभा प्रवचन हाल में डा. राजेंद्र मुनि ने आदिनाथ भगवान की स्तुति स्वरूप भक्तामर स्तोत्र की व्याख्या की।
संस, बठिडा: जैन सभा प्रवचन हाल में डा. राजेंद्र मुनि ने आदिनाथ भगवान की स्तुति स्वरूप भक्तामर स्तोत्र की व्याख्या करते हुए कहा कि इंसान अपने मन में हमेशा ही शुभ को पाने की अनंत लालसा जन्म से ही चाहता है, पर जीवन यात्रा इतनी अनिशचय के दौर में गुजरती रहती है।
उन्होंने कहा कि एक शवांस के बाद दूसरे शवांस की भी गारंटी नहीं दे सकता, फिर भी मन में तरह तरह की कल्पनाएं संजोये चला जाता है। यही जीवन का तनाव है। जो आज मौजूद है उसको तो नहीं देखता अपितु जो नजर नहीं आता उस कल के चितन में समय गुजार देता है। परिणाम न तो आज का आनंद ले पाता हैं और न अतीत के प्राप्त सुखों का स्मरण कर पाता है। उसकी सारी शक्तियां भविष्य के लिए बर्बाद हो जाती है। आदिनाथ भगवान के प्रबल पुण्य के उदय से उनका एक एक क्षण सुखद होता है उनके अनेक गुणों से निर्मित उनका आभा मण्डल अत्यधिक ओज तेज को लिए रहता है जो भी आत्मा उस आभा मंडल जिसको आज की भाषा में ओरा कहा जाता है की सीमा में प्रवेश करता है वह मानसिक वाचिक कायिक कष्ट का निवारण कर अनंत पुण्य का धर्म का भागीदार बनता है। सभा में साहित्यकार श्री सुरेंद्र मुनि जी द्वारा भक्तामर स्वाध्याय के साथ जीवन के सद गुणों का वर्णन विवेचन किया गया जिसे पाकर जीवन में कष्ट दूर होकर सुख का संचार होता है इस हेतु सदा प्रयत्न पुरषार्थ आवश्यक है। धर्म तत्व ही एक ऐसा तत्व है जो हमें जीवन का मार्ग प्रशस्त करता है। महामंत्री उमेश जैन द्वारा स्वागत व सूचनाएं प्रदान की गई।