प्रभु प्रार्थना से तन-मन शुद्धि होते हैैं: डा. राजेंद्र मुनि

जैन सभा के प्रवचन हाल में डा. राजेंद्र मुनि ने कल्पतरु श्री भक्तामर जी स्त्रोत पर प्रकाश डाला।

By JagranEdited By: Publish:Tue, 14 Sep 2021 10:19 PM (IST) Updated:Tue, 14 Sep 2021 10:19 PM (IST)
प्रभु प्रार्थना से तन-मन शुद्धि होते हैैं: डा. राजेंद्र मुनि
प्रभु प्रार्थना से तन-मन शुद्धि होते हैैं: डा. राजेंद्र मुनि

संस, बठिडा: जैन सभा के प्रवचन हाल में डा. राजेंद्र मुनि ने कल्पतरु श्री भक्तामर जी स्त्रोत पर प्रकाश डालते हुए कहा कि आचार्य मानतुंग आदिनाथ भगवान की स्तुति के पहले वंदन स्वरूप अपने को बड़े-बड़े विद्वानों, आचार्यो, इंद्र व देव के सम्मुख बल से कमजोर मानते हुए कहते हैं कि कहां तो सूर्य का प्रकाश और कहां दीपक की मौजूदगी। हे प्रभु, आपके सामने मैं अल्प-सा दीपक हूं। आप सिधु हो। मैं तो उसमें एक बिदू तुल्य हूं।

भक्ति में विनय गुण की प्रधानता रहती है। विनय से विद्या आदि गुणों की प्राप्ति होती है। बड़ा व्यक्ति अपने मुंह से कभी भी अपने को बड़ा साबित नहीं करता। उसकी लघुता में ही प्रभुता छिपी रहती है। हीरा चाहे लाखों का हो या फिर करोड़ों का, अपने मुंह से वह अपनी महत्ता स्थापित नहीं करता। ग्राहक ही उसकी मूल्यवता पहचान लेता है। हमारे जीवन में भी यह विनय गुण प्राप्त हो जाए तो महत्ता स्वत: बढ़ जाती है। भक्त का ह्रदय नम्रता से भरपूर हो जाता है। मानव का भूषण विनय गुण ही है, लेकिन आज का मानव इस गुण से दिनों दिन दूर हो जाता है। अहंकार पतन की निशानी है इतिहास साक्षी है जब-जब देश के शासकों में अहंकार आया तब तब उनका पतन हुआ है।

सभा में साहित्यकार सुरेंद्र मुनि द्वारा विधि विधान से संपन्न भक्तामर जी का सामूहिक गान जाप सिद्धि की गई, जिससे जनता में अपार हर्श व्याप्त है एवं आदिनाथ भगवान की गुणगाथा श्रवण कर धर्म साधना करने कराने के भाव उत्पन्न है। प्रभु प्रार्थना में मन की शांति तन की शांति व सामाजिक जीवन में गुण वता प्रकट होती है। प्रार्थना से जीवन निर्विकारी बनता है। प्रार्थना से घर परिवार में वातावरण मंगलमय बनता है। महामंत्री उमेश जैन व प्रधान महेश जैन ने दिल्ली से आए समाज सेवियों का अभिनंदन किया।

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