जिला सिविल अस्पताल के पास नहीं अपना स्थाई रेडियोलाजिस्ट
जिले के सबसे बड़े सिविल अस्पताल के पास अपना स्थाई रेडियोलाजिस्ट ही नहीं है। मौजूदा हालत यह है कि अस्पताल प्रबंधकों द्वारा प्राइवेट रेडियोलाजिस्ट को ठेके पर रखकर सरकारी अल्ट्रासाउंड विग चलाना पड़ रहा है।
जासं, बठिडा : जिले के सबसे बड़े सिविल अस्पताल के पास अपना स्थाई रेडियोलाजिस्ट ही नहीं है। मौजूदा हालत यह है कि अस्पताल प्रबंधकों द्वारा प्राइवेट रेडियोलाजिस्ट को ठेके पर रखकर सरकारी अल्ट्रासाउंड विग चलाना पड़ रहा है। प्राइवेट रेडियोलाजिस्ट होने के चलते वह पूरे दिन में तीन से साढ़े तीन घंटे ही अल्ट्रासाउंड करते है, जिसके बाद सिविल अस्पताल में अल्ट्रासाउंड नहीं होते है। ऐसे में मरीजों को अल्ट्रासांउड करवाने के लिए अगले दिन जल्दी आकर अपनी बारी का इंतजार करना पड़ता है या फिर मजबूरन प्राइवेट अस्पतालों से महंगे दामों में करवाना पड़ता है।
पिछले कई सालों से यह स्थिति चलती आ रही है। सेहत विभाग पिछले पांच साल से ज्यादा समय से स्थाई रेडियोलाजिस्ट की भर्ती तक नहीं कर पाया और नहीं स्थानीय सेहत प्रशासन उच्चाधिकारियों से कहकर अन्य जिले से कोई स्थाई रेडियोलाजिस्ट को बठिडा में बदली करवाकर तैनात नहीं करवा पाया है। इससे पहले भी पीपी मोड पर रखे गए रेडियोलाजिस्ट अपनी नौकरी छोड़कर जा चुके है।
सिविल अस्पताल में महज 250 से 300 रुपये में अल्ट्रासाउंड होता है, जबकि निजी अस्पतालों से तीन गुणा 700 से 900 रुपये में होता है। अस्पताल में प्रतिदिन 70 मरीज अल्ट्रासाउंड के लिए आते हैं। इसमें ज्यादा तर गर्भवती महिलाएं होती है। कई बार तो मरीजों की संख्या 100 तक पहुंच जाती है, परंतु स्थाई रेडियोलॉजिस्ट नहीं होने के कारण मरीज काफी परेशान हैं, चूंकि अस्थाई तौर पर रखे गए रेडियोलाजिस्ट द्वारा तय किए समय में जितने अल्ट्रासाउंड होते है, वह करके चला जाता है, जबकि बाकी के बचे मरीजों को अगले दिन आने के लिए सेहत विभाग की तरफ से बोल दिया जाता है। ऐसे में दोपहर 12 बजे के बाद आने वाले मरीजों को अल्ट्रासाउंड करवाने के लिए परेशानी झेलनी पड़ती है या फिर उन्हें प्राइवेट अस्पतालों में जाकर करवाना पड़ता है।